नई दिल्ली। हर साल भारत में 17 नवंबर को नेशनल एपिलेप्सी डे मनाया जाता है। एपिलेप्सी एक गंभीर बीमारी है, जिसका कोई इलाज नहीं है। नेशनल एपिलेप्सी डे इस बीमारी के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए मनाया जाता है। एक दिमागी बीमारी है, जिसमें ब्रेन के इलेक्ट्रिक सिग्नल्स डिस्टर्ब हो जाते हैं, जिस वजह से व्यक्ति को दौरे पड़ने लगते हैं, जिसे एपिलेप्टिक सीजर कहा जाता है। ब्रेन के सिग्नल्स में गड़बड़ी की वजह से मरीज की चेतना, व्यवहार, बॉडी के पार्ट्स, भावनाओं आदि पर कंट्रोल नहीं रहता। इस बीमारी की वजह से, पीड़ित व्यक्ति का पूरा जीवन प्रभावित होता है। एपिलेप्सी जैसी खतरनाक बीमारी के बारे में लोगों के पास बेहद कम जानकारी है। इसलिए हमने साइबरनाइफ, आर्टिमिस हॉस्पिटल, गुरूग्राम के निर्देशक डॉ. आदित्य गुप्ता से बात की और यह जानने की कोशिश की कि एपिलेप्सी के मरीजों को दौरा पड़ने पर उनकी मदद करने के लिए क्या करना चाहिए। बेहोश होना मांसपेशियों पर कंट्रोल न रहना बोलने में तकलीफ होना आस-पास क्या हो रहा है समझ न आना धड़कन या सांसों का तेज होना डर लगना या होना एक जगह पर घूरते रहना सेन्सेस जैसे सुनने, देखने, स्वाद, स्मेल या महसूस करने में बदलाव आना एपिलेप्सी का दौरा पड़ने पर व्यक्ति को सुरक्षित रखने की कोशिश करें। सांस लेने में मदद करने के लिए, दौरे रुकने के बाद उन्हें एक तरफ करवट लेकर लिटाएं। अगर उन्होंने टाइट कपड़े पहने हैं, तो उन्हें लूज कर दें खासकर गर्दन के पास के कपड़े, ताकि उन्हें सांस लेने में तकलीफ न हो। उनके सिर पर चोट न लगे, इस बात का ध्यान रखें। उनके सिर को सहारा देने और चोट से बचाने के लिए उनके सिर के नीचे कुशन या तकिया रखें और आस-पास से किसी भी संभावित जोखिम को दूर करें।दौरे जब तक पूरी तरह से रुक न जाए और व्यक्ति पूरी तरह से उस दौरे से रिकवर न कर ले, उनके मुंह में कुछ भी न डालें।जब कोई दौरा पांच मिनट से अधिक समय तक रहे या उसके तुरंत बाद दूसरा दौरा पड़े, तो फौरन डॉक्टर से संपर्क करें और मेडिकल सहायता लें।दौरा खत्म होने के बाद व्यक्ति को आराम करने दें। उनके साथ रहें और उन्हें सहज महसूस करने में मदद करें।