नई दिल्ली। दिवाली का त्योहार बीत चुका है। लोग अब इस त्योहार की थकान दूर करने में लगे हुए हैं। इस त्योहार का लोग सालभर इंतजार करते हैं और धूमधाम से इसका जश्न मनाते है। इस त्योहार के साथ जहां खुशियां और ढेर सारी रोशन आती है, तो वहीं पटाखों के साथ बहुत सारा प्रदूषण भी आता है। दिवाली के बाद से ही दिल्ली समेत देश के कई बड़े शहरों की आबोहवा खराब हो गई है। राजधानी दिल्ली में तो प्रदूषण गंभीर स्तर पर पहुंच चुका है।जहरीली हवा में अब सांस लेना तक मुश्किल हो रहा है। हवा के खराब होती गुणवत्ता की वजह से लोग कई तरह की शारीरिक समस्याओं का शिकार होते जा रहे हैं। इतना ही नहीं बढ़ते प्रदूषण का असर सिर्फ हमारे शारीरिक ही नहीं, बल्कि पर भी गहरा असर पड़ता है। इस बारे में विस्तार में जानने के लिए हमने मनस्थली की संस्थापक-निदेशक और वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. ज्योति कपूर से बातचीत की।मानसिक स्वास्थ्य पर के प्रभाव के बारे में बताते हुए डॉक्टर ज्योति कपूर ने कहा कि, “वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर का मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। सूक्ष्म कण पदार्थ यानी फाइन पार्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5) और जहरीली गैसों जैसे प्रदूषकों के संपर्क में आने की यह से मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। इसकी वजह से कई तरह के मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक समस्याएं हो सकती हैं। लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से तनाव, चिंता और डिप्रेशन बढ़ जाता है।उन्होंंने आगे बताया कि वातावरण में मौजूद छोटे-छोटे प्रदूषक ब्लड स्ट्रीम में प्रवेश कर सकते हैं और फिर मस्तिष्क तक पहुंच सकते हैं, जिससे संभावित रूप से सूजन और ऑक्सीडेटिव तनाव पैदा हो सकता है, जो कॉग्नेटिव डेकलाइन और मेंटल डिसऑर्डर के बढ़ते जोखिम से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा बढ़ते वायु प्रदूषण की वजह से बेचैनी की समस्या भी हो सकती है, जो पहले से मौजूद मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ा सकती है। तेजी से बढ़ते प्रदूषण पर चिंता जाहिर करते हुए डॉक्टर ज्योति कहती हैं कि वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर को कम करने से न सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, बल्कि यह तेजी से बढ़ते शहरीकरण और प्रदूषित वातावरण में सुधार कर मानसिक स्पष्टता को भी बढ़ावा देने में मददगार होगा।