छत्तीसगढ़ के बस्तर के डॉ राजाराम त्रिपाठी को मिला देश के सर्वश्रेष्ठ किसान का अवार्ड
दिल्ली। डॉ राजाराम के “प्राकृतिक ग्रीन हाउस माडल” तथा “मां दंतेश्वरी काली मिर्च-16″प्रजाति के विकास हेतु मिला राष्ट्रीय अवार्ड। 40 लाख का नैसर्गिक ‘पालीहाउस’ केवल डेढ़ लाख में तैयार कर रहे हैं डॉ राजाराम। सारा बजट रासायनिक खेती को और जैविक खेती को केवल ‘जीरो बजट’ का झुनझुना, कैसे बढ़ेगी जैविक खेती? डॉ राजाराम।देश के केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने बस्तर छत्तीसगढ़ के “मां दंतेश्वरी हर्बल समूह” के संस्थापक डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी को देश के “सर्वश्रेष्ठ किसान अवार्ड” से सम्मानित किया। उल्लेखनीय है कि देश के 5-पांच अलग-अलग कृषि मंत्रियों के हाथों,, 5 पांच बार देश के “सर्वश्रेष्ठ किसान का अवार्ड”* प्राप्त करने वाले देश के इकलौते किसान हैं। इस वर्ष का देश का प्रतिष्ठित “सर्वश्रेष्ठ किसान अवार्ड-2023 कोंडागांव छत्तीसगढ़ के जैविक पद्धति से दुर्लभ वनौषधियों की खेती के पुरोधा कहलाने वाले किसान डॉ राजाराम त्रिपाठी को 27 अप्रैल गुरूवार को आयोजित भव्य समारोह में प्रदान किया। यह अवसर था जैविक खेती के “बायो- एजी इंडिया सम्मिट व अवार्ड समारोह-2023 के शिखर सम्मेलन के समापन समारोह का । इस शिखर सम्मेलन में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की गरिमामय उपस्थिति के साथ ही देश के किसानों की आय दोगुनी करने हेतु गठित पीएम टास्क फोर्स के अध्यक्ष डॉ अशोक दलवई आईएएस, जीपी उपाध्याय आईएएस, डॉ. सावर धनानिया अध्यक्ष रबर-बोर्ड, रिक रिगनर ग्लोबल वीपी वर्डेसियन (यूएसए), डॉ. तरुण श्रीधर पूर्व सचिव भारत सरकार, डॉ. एमएच मेहता अध्यक्ष, जीएलएस, डॉ. एमजे खान, अध्यक्ष , आईसीएफए तथा बड़ी संख्या में देश विदेश से पधारी कृषि क्षेत्र की गणमान्य विभूतियां उपस्थित थीं।
डॉक्टर राजाराम को यह प्रतिष्ठित सम्मान 27 अप्रैल गुरूवार को दिल्ली में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में दिया गया। इस अवसर पर देश के कृषि मंत्री ने राजाराम त्रिपाठी द्वारा बस्तर में जैविक तथा हर्बल खेती किए गए कार्यों की सराहना करते हुए इसे भावी भारत का भविष्य बताया। डॉ राजाराम त्रिपाठी ने अपना यह सम्मान छत्तीसगढ़ बस्तर को समर्पित करते हुए कहा कि जैविक खेती की बातें तो बहुत होती है लेकिन जब बजट आवंटन का अवसर आता है तो सारा पैसा और अनुदान रासायनिक खेती को दे दिया जाता है और जैविक खेती को केवल झुनझुना थमा दिया जाता है। कृषि क्षेत्र तथा किसानों की स्थिति अत्यंत शोचनीय है तथा इसके लिए अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। डॉ त्रिपाठी को देश का यह सबसे ज्यादा प्रतिष्ठित सम्मान उनके द्वारा जैविक खेती के क्षेत्र में किए गए दीर्घकालीन विशिष्ट योगदान, विशेष रूप से काली मिर्च की नई प्रजाति (MDBP-16) के विकास एवं बहुचर्चित एटी-बीपी माडल (AT-BP Model) अर्थात ऑस्ट्रेलियन-टीक (AT) के पेड़ों पर काली मिर्च (BP)की लताएं चढ़ाकर एक एकड़ जमीन से 50 एकड़ तक का उत्पादन लेने के सफल प्रयोग हेतु दिया गया है। पिछले कई वर्षों से त्रिपाठी अपने इस प्रयोग को अन्य किसानों के साथ भी खुले दिल से साझा कर रहे हैं और अन्य किसानों की मदद भी कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलियन टीक और काली मिर्च की खेती करने वाले देशभर के प्रगतिशील किसान प्रतिदिन उनके फार्म पर इसे देखने, समझने, सीखने और अपने खेत पर भी इस खेती को करने हेतु आते हैं। क्या है आस्ट्रेलियन टीक (AT) ? उल्लेखनीय है कि इनकी संस्था द्वारा मूलतः बबूल जैसे कठोरतम जलवायु में भी सरवाइव करने वाले मातृ परिवार से विकसित ऑस्ट्रेलियन-टीक (एटी) की विशेष प्रजाति जोकि देश के लगभग सभी क्षेत्रों में हर तरह की जलवायु में, बिना विशेष सिंचाई अथवा देखभाल के बहुत तेजी से बढ़ता है। उल्लेखनीय इसके ग्रोथ की गति महोगनी, शीशम, टीक, मिलिया डुबिया यहां तक कि नीलगिरी से भी ज्यादा है। यह पेड़ लगभग 7 से 10 साल में ही काफी ऊंचा और मोटा भी हो जाता है। यह लकड़ी सागौन,महोगनी, शीशम से भी बेहतरीन मजबूत, हल्की, खूबसूरत बहुमूल्य इमारती लकड़ी देता है। इतना ही नहीं यह पेड़ अन्य इमारती पेड़ों की तुलना में 2 गुना लकड़ी देता है। इसका एक और महत्वपूर्ण फायदा यह है कि यह पेड़, वायुमंडल से नाइट्रोजन लेकर फसलों की नाइट्रोजन यानी ‘यूरिया’ की आवश्यकता को जैविक विधि से भली-भांति पूर्ति करता है। यह जल संरक्षण भी करता है साथ ही ही साल भर में प्रति एकड़ लगभग 3 से 4 टन बेहतरीन जैविक खाद भी देता है। इन पेड़ों पर चढ़ाई गई काली मिर्च की लताओं से मिलने वाली काली-मिर्च के भरपूर उत्पादन से प्रतिवर्ष अतिरिक्त लाभ भी होता है।इसे ही “कोंडागांव का एटी-बीपी माडल” कहा जाता है। डॉक्टर त्रिपाठी का यह सफल मॉडल (AT-BP) इस समय लगभग 25 राज्यों के प्रगतिशील किसानों के द्वारा सफलतापूर्वक अपनाया जा चुका है । बस्तर के कई आदिवासी किसानों के खेतों में भी अब इस नई प्रजाति की काली मिर्च की फसल लहलहाने लगी है। कैसे काम करता है डॉ राजाराम का बहुचर्चित “प्राकृतिक ग्रीन हाउस माडल”? दरअसल इनके द्वारा तैयार ऑस्ट्रेलियन टीक और काली मिर्च के पौधों का विशेष तकनीक से किया गया प्लांटेशन का यह माडल एक ‘प्राकृतिक ग्रीनहाउस’ की तरह कार्य करता है। एक और जहां वर्तमान तकनीक के पोलीथीन से कवर्ड तथा लोहे के फ्रेम वाले पालीहाउस बनाने में 1 एकड़ में लगभग 40 लाख का खर्च आता है, वहीं डॉक्टर त्रिपाठी के द्वारा विकसित इस “प्राकृतिक ग्रीन हाउस” के निर्माण में कुल मिलाकर प्रति एकड़ केवल “डेढ़ लाख” रुपए का खर्च आता है। यानी कि डेढ़ लाख रुपए में पालीहाउस से हर मायनों में बेहतर ,ज्यादा टिकाऊ और शत-प्रतिशत सफल ग्रीनहाउस तैयार हो जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस 40 लाख रुपए प्रति एकड़ लागत से लोहे और प्लास्टिक से बनने वाले ‘पालीहाउस’ की आयु ज्यादा से ज्यादा 7 से 10 साल की होती है और फिर तो यह कबाड़ के भाव बिकता है। जबकि डॉ राजाराम त्रिपाठी के द्वारा तैयार नेचुरल ग्रीन हाउस बिना किसी अतिरिक्त लागत की 10 साल में करोड़ों की बहुमूल्य इमारती लकड़ी देने के लिए तैयार हो जाता है, इसके साथ ही यह 25 पच्चीसों वर्षों तक कार्य करता है, साथ ही प्रति एकड़ रुपए 5 से ₹10 लाख तक काली मिर्च से सालाना नियमित आमदनी भी मिलने लगती है। कुल मिलाकर भारत जैसे देश के लिए यह मॉडल गेम-चेंजर माना जा रहा है। यह आयोजन “भारत कीआजादी के अमृत महोत्सव” के उपलक्ष में ‘जी-20 भारत’ , मिलेट्स-2023 मिशन, Bio-Ag 2023 , नाबार्ड , एपीडा, एग्रीकल्चर टुडे तथा इंटरनेशनल एग्रीकल्चर कंसल्टिंग ग्रुप आदि के संयुक्त तत्वाधान में दिल्ली एरोसिटी में संपन्न हुआ।
(दीपक कुमार त्यागी / हस्तक्षेप
स्वतंत्र पत्रकार)