सिख धर्म के नौवें गुरु श्री गुरु तेगबहादुर का जीवन परिचय

नई दिल्ली। सिख धर्म के नौवें गुरु श्री गुरु तेगबहादुर जी का जन्म सन 1621 में श्री अमृतसर साहिब में हुआ था| इनके पिता सिख धर्म के छठे गुरु श्री गुरु हरगोबिन्द साहिब, माता बीबी नानकी जी, पुत्र सिख धर्म के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह तथा चार सुपौत्र बाबा अजीत सिंह जी, बाबा जुझार सिंह जी, बाबा जौरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी थे | औरंगजेब जो कि एक क्रूर मुग़ल बादशाह था, वह पूरे हिंदुस्तान में सिर्फ एक इस्लाम धर्म को ही लागू करना चाहता था, जिसकी वजह से उसने हिन्दूओं को जबरदस्ती इस्लाम कबूल करने को मजबूर किया तब गुरु तेगबहादुर जी ने तिलक और जनेऊ की रक्षा का वचन निभाते हुए आगरा, जहाँ आज गुरुद्वारा गुरु का ताल सुशोभित है वहाँ से अपनी गिरफ्तारी देते हुए अपने तीन अन्य सेवक भाई सती दास जी, भाई मती दास जी और भाई दयाला जी के साथ दिल्ली के चान्दनी चौक में अद्वितीय शहादत दी |भाई मतीदास जी के शरीर को आरे से चीरकर दो टुकडों में बांट दिया और धरती पर पडे हुए उनके शरीर में से जपुजी साहिब की बाणीं का जाप सुनायी दे रहा था | भाई दयाला जी को उबलते हुए कढाऐ में जिदां उबाल कर शहीद किया गया | भाई सतीदास जी को जिदां रुई में लपेटकर जलाया गया |तानाशाहों ने सोंचा कि ऐसा भयंकर दृश्य देख कर गुरु जी डर जाएगें, उन्होंने अंत में गुरु जी को प्रलोभन दिया, डराया और कहा कि या तो कोई करामात दिखाओ या फिर आपको भी नहीं छोडेंगे तो उन्होंने कहा कि हम अकालपुरख के हुक्म में कोई हस्तक्षेप नहीं करते तो उन्होंने गुरु जी का शीश धड़ से जुदा कर दिया तथा ये कहा कि कोई भी गुरु जी का पार्थिव शरीर नहीं उठाएगा फिर आसमान में काले बादल छा गए और बहुत ज़ोर से आन्धी चली तथा इतने में एक गुरू के प्यारे सेवक भाई लखी शाह वणजारा ने गुरु जी का धड़ उठा कर अपने घर ले जाकर अपने पूरे घर को ही आग लगाकर गुरु जी के धड़ का अंतिम संस्कार कर दिया, जिस जगह आज दिल्ली में गुरुद्वारा श्री रकाबगंज साहिब स्थित है तथा जहाँ गुरु जी का शीश उतारा गया था, वहाँ पर आज दिल्ली में गुरुद्वारा शीशगंज साहिब स्थित है तथा गुरु जी का शीश अपने साथ लेकर भाई जैता जी वीर गोबिंद राय( गुरु गोबिंद सिंह जी) के पास आनंदपुर साहिब पंजाब पहुंचे तथा गुरु जी के शीश का अंतिम संस्कार गुरुद्वारा शीशगंज साहिब (आनंदपुर साहिब) में बालक गोबिंद राय जी द्वारा किया गया |श्री गुरु तेगबहादुर जी को -“तेगबहादर हिन्द दी चादर ” भी कहा जाता है| इस प्रकार गुरु जी सन्1675 में जोती-जोत समां गये |
” तेग बहादर के चलत भयो जगत को सोक, है, है, है सब जग भयो जै, जै, जै सुर लोक