नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव मौसम चक्र को प्रभावित करने के साथ ही बारिश के पैटर्न को भी बदल रहे हैं। मात्रा के लिहाज से भले ही अभी भी पूरे साल और मानसून के दौरान सामान्य बारिश हो रही हो, लेकिन इसका वितरण असमान हो गया है। कहीं बारिश बहुत ज्यादा हो रही है, तो कहीं बहुत कम। इसके अलावा, भूजल स्तर में कोई सुधार नहीं हो रहा। कृषि क्षेत्र के लिए भी समस्या खड़ी हो गई है। भविष्य में इस समस्या के गंभीर होने की आशंका को देखते हुए मौसम विभाग क्लाउड सीडिंग तकनीक पर काम करने की तैयारी कर रहा है। इससे निपटने के लिए मौसम विभाग की शोध शाखा भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम), पुणे में क्लाउड चैंबर स्थापित कर रही है। इस चैंबर में बादलों पर शोध किया जाएगा। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, बादलों का आधार आमतौर पर धरती की सतह से एक से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर होता है। लेकिन, उनकी ऊंचाई 12 से 13 किलोमीटर तक हो सकती है। अब देश को ऊंचाई में होने वाले बदलावों के लिए तैयार किया जाएगा। इसमें नमी, हवा की गति और तापमान का आकलन शामिल होगा। बादलों का घनत्व कम करने के लिए उन इलाकों की ओर अधिक बारिश वाले बादलों को भेजने की कोशिश की जाएगी, जहां बारिश कम होती है। साल दर साल बारिश का पैटर्न बदल रहा है। इस पैटर्न को समझने और इस बदलते पैटर्न से निपटने की तैयारी है।