1947 के विभाजन में मरने वाले 20 लाख लोगों के लिए काशी में तर्पण

वाराणसी। ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की पहल पर काशी के शंकराचार्य घाट पर 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान मरने वाले 20 लोगों की आत्मा की मुक्ति के लिए भी श्राद्ध व तर्पण का अनुष्ठान पूर्ण हुआ। साथ ही कोरोना काल में मरने वाले एक करोड़ लोगों की सद्गति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध व तर्पण हुआ।शंकराचार्य के मार्गदर्शन में आचार्य पं. अवधराम पांडेय के आचार्यत्व में त्रिपिंडी श्राद्ध व तर्पण हुआ। हरियाणा से श्रीविद्यामठ में आए सुरेश मानचंदा ने शंकराचार्य से अनुरोध किया कि भारत पाकिस्तान विभाजन के समय मारे गए लोगों का उस समय अंतिम संस्कार भी नहीं हो पाया था। उन्होंने शंकराचार्य से निवेदन किया कि उन सभी की सद्गति के लिए भी श्राद्ध तर्पण किया जाए। शंकराचार्य की सहमति के बाद शंकराचार्य घाट पर ही विभाजन में मारे गए लोगों की सद्गति के लिए तर्पण की विधि संपन्न हुई। इस दौरान संजय पांडेय, डॉ. गिरीश चंद्र तिवारी, श्रीभगवान वेदांताचार्य, परमेश्वर दत्त शुक्ल, कमलाकांत त्रिपाठी, राजेंद्र तिवारी, शैलेंद्र सिंह योगी, रविंद्र मिश्रा मौजूद थे। कोरोना काल में मरने वाले लोगों की सद्गति के लिए सात दिनों तक चलने वाले धर्मानुष्ठान के दौरान शंकराचार्य की मुक्ति कथा को पुस्तक का रूप दिया गया है। शंकराचार्य की शिष्या साध्वी पूर्णाम्बा, साध्वी शारदाम्बा, गंगारविंद मिश्र, डॉ. लता पांडेय व डॉ. मंजरी पांडेय के सहयोग से यह पुस्तक तैयार हुई है। शनिवार को पुस्तक के रूप में शंकराचार्य को समर्पित किया और उन्होंने इस मुक्ति कथा ग्रंथ का विमोचन किया। शंकराचार्य ने कहा कि शारदीय नवरात्र पर श्रीविद्यामठ में शतचंडी महायज्ञ और रुद्राभिषेक का आयोजन किया जाएगा। चार हजार मोदकों से गणपति-पूजन, शतचंडी-महायज्ञ, महारुद्र यज्ञ, 64-योगिनियों के रूप में 64 कन्याओं का पूजन, भैरव-पूजन, 108 सुवासिनी पूजन, 11 रुद्र-दंपती पूजन कुंभकोणम् से पधारे प्रवीण के आचार्यत्व में संपन्न होगा। इसके उपरांत सवा लाख मोदकों से हवन होगा। यह अनुष्ठान 15 दिनों का होगा जिसके अंतर्गत यह सभी आयोजन श्रीविद्यामठ में संपन्न किए जाएंगे। शंकराचार्य महाराज अपराह्न दो बजे जबलपुर के बगलामुखी सिद्धपीठ के लिए रवाना हो गए। वहां पर वे आगामी नौ दिनों तक पराम्बा भगवती की आराधना संपन्न करेंगे।