राजद के मंच से ‘भूरा बाल’ गायब! जातीय जनगणना के माहौल में अगड़ी जातियों की भूमिका पर उठे सवाल

बिहार। में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले जातीय जनगणना और सामाजिक समीकरणों की राजनीति अपने चरम पर पहुंचती दिख रही है। ऐसे समय में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की राज्य परिषद की बैठक ने इस बहस को और गहरा कर दिया है। मंगनी लाल मंडल को पार्टी का नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है, जो धानुक समुदाय से आते हैं और अति पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस मंच से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह की चुपचाप विदाई कर दी गई। न वे मंच पर थे और न ही उनके लिए किसी बड़े नए पद का ऐलान किया गया, जबकि मीडिया में उन्हें सम्मानजनक भूमिका दिए जाने की अटकलें जोरों पर थीं। जगदानंद सिंह राजपूत समुदाय से आते हैं और उनके पुत्र सुधाकर सिंह खुद भी विधायक हैं। बैठक में राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने जहां दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक और किसान समाज की बात की, वहीं मंच की तस्वीर ने एक बार फिर उस पुराने नारे की याद दिला दी – “भूरा बाल साफ करो”। यह नारा लालू प्रसाद यादव ने अपने शुरुआती राजनीतिक दौर में दिया था, जिसमें भूमिहार (भू), राजपूत (रा), ब्राह्मण (बा) और लाला/कायस्थ (ल) को निशाना बनाया गया था।मंच और प्रेस विज्ञप्ति दोनों ने यह संकेत दिया कि अब राजद में अगड़ी जातियों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व हाशिये पर है। मंच पर भले ही राबड़ी देवी, अब्दुल बारी सिद्दीकी, मीसा भारती, संजय यादव, शक्ति सिंह यादव, शिवचंद्र राम जैसे नाम प्रमुखता से दिखे, लेकिन अगड़ी जातियों के नाम गिनती भर के ही थे। ब्राह्मण समुदाय से राज्यसभा सांसद मनोज झा और प्रवक्ता चितरंजन गगन का नाम जरूर आता है, लेकिन पार्टी में उनकी राजनीतिक ताकत सीमित है। शिवानंद तिवारी जैसे वरिष्ठ नेता भी इन दिनों संगठन से दूरी बनाए हुए हैं। कायस्थ समुदाय से भी कोई प्रमुख नाम अब पार्टी में सक्रिय नहीं दिख रहा। भूमिहार और राजपूत समुदाय का प्रतिनिधित्व लगभग शून्य जैसा हो चला है। हालांकि, तर्क यह भी दिया जा सकता है कि सामाजिक न्याय की राजनीति के केंद्र में पिछड़े, अति पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक समुदाय हैं और राजद इन्हीं वर्गों को संगठित करने की कोशिश में है। लेकिन, सवाल यह है कि क्या इस प्रक्रिया में पार्टी अगड़ी जातियों को पूरी तरह दरकिनार कर रही है?राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जातीय जनगणना के मुद्दे पर जब चुनावी रणनीति बनेगी, तब राजद को ‘भूरा बाल’ को लेकर नई व्याख्या करनी होगी। क्योंकि यदि सामाजिक समीकरण का संतुलन नहीं साधा गया, तो चुनावी लाभ हानि की गणना भी प्रभावित हो सकती है।