भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 698.95 अरब डॉलर पहुंचा, लगातार दूसरे सप्ताह दर्ज की गई वृद्धि

नई दिल्ली। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी खबर है। देश का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार दूसरे सप्ताह वृद्धि दर्ज करते हुए 13 जून को समाप्त सप्ताह में 2.294 अरब डॉलर बढ़कर कुल 698.95 अरब डॉलर पर पहुंच गया। यह जानकारी भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने शुक्रवार को जारी साप्ताहिक आंकड़ों में दी। इससे पहले, 6 जून को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार में 5.17 अरब डॉलर की बड़ी बढ़ोतरी देखी गई थी, जिसके बाद यह 696.65 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। गौरतलब है कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार सितंबर 2024 के अंत में 704.885 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्चतम स्तर तक पहुंच चुका है।
विदेशी मुद्रा आस्तियों में मजबूती
13 जून को समाप्त सप्ताह के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में सबसे बड़ी हिस्सेदारी रखने वाली विदेशी मुद्रा आस्तियों (Foreign Currency Assets – FCA) में 1.739 अरब डॉलर की बढ़ोतरी दर्ज की गई, जिससे इनकी कुल राशि 589.426 अरब डॉलर हो गई।
RBI ने बताया कि विदेशी मुद्रा आस्तियों में अमेरिकी डॉलर के अलावा यूरो, ब्रिटिश पाउंड और जापानी येन जैसी अन्य प्रमुख मुद्राओं की विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव का भी असर होता है, जो इसकी कुल वैल्यू को प्रभावित करता है।
स्वर्ण भंडार में 428 मिलियन डॉलर की वृद्धि
केंद्रीय बैंक के अनुसार, रिपोर्टिंग सप्ताह के दौरान भारत के स्वर्ण भंडार में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह भंडार 428 मिलियन डॉलर बढ़कर 86.316 अरब डॉलर तक पहुंच गया। वैश्विक बाजारों में सोने की कीमतों में तेजी और घरेलू खरीद में मजबूती इसकी प्रमुख वजह मानी जा रही है।
SDR और IMF रिजर्व स्थिति में भी इजाफा
रिजर्व बैंक ने बताया कि स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स (SDRs) में भी 85 मिलियन डॉलर की वृद्धि हुई है, जिससे इनकी कुल राशि 18.756 अरब डॉलर हो गई है। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में भारत की आरक्षित स्थिति भी 43 मिलियन डॉलर बढ़कर 4.452 अरब डॉलर तक पहुंच गई है।
भविष्य के लिए क्या संकेत?
विदेशी मुद्रा भंडार में यह वृद्धि वैश्विक अनिश्चितताओं, व्यापार घाटे और विदेशी निवेश में उतार-चढ़ाव के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता और वित्तीय लचीलापन दर्शाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार हो रही वृद्धि से रुपये की स्थिरता को बल मिलेगा, साथ ही अंतरराष्ट्रीय लेन-देन और कर्ज भुगतान में भी राहत मिलेगी। इसके अलावा, यह विदेशी निवेशकों के लिए भी भारत को एक सुरक्षित निवेश गंतव्य के रूप में प्रस्तुत करता है।