साहित्यकार मधुरेश का कृतित्व अब अमरता की श्रेणी में है
बरेली। भारतीय पत्रकारिता संस्थान और मानव सेवा क्लब के संयुक्त तत्वाधान में देश के सबसे बड़े कथा आलोचक मधुरेश के साहित्यिक योगदान पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में अनेक हिंदी विद्वानों ने मधुरेश के आलोचना- कर्म पर चर्चा की। जिसमें वसीम बरेलवी ने भी उन्हें अच्छा समालोचक कहा। रोटरी भवन में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में मुक्तेश्वर से आए वरिष्ठ साहित्यकार कर्ण सिंह चौहान ने कहा कि मधुरेश ने पिछले छह दशकों में एक मौन साधक की तरह साहित्यिक तपस्या की है और इसके फलस्वरुप उन्होंने सत्तर से अधिक कृतियों के रूप में जो सिद्धियां प्राप्त की हैं। उन पर हिंदी जगत को गर्व है। उनका लेखन और कृतियां देश-काल की सीमाओं का अतिक्रमण करके अमरता की श्रेणी में आ गई हैं। मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध कथाकार एवं उ. प्र. के पूर्व पुलिस महानिदेशक शैलेंद्र सागर ने कहा कि रचना में कथ्य के सामाजिक सरोकार, अंतर्वस्तु की संरचना सहित रचना के सभी पक्षों की निष्पक्ष परख के कारण मधुरेश की आलोचना को व्यापक प्रशंसा मिली है। वर्तमान समय में मधुरेश सरीखे आलोचकों ने हिंदी आलोचना की विश्वसनीयता को बचाकर रखा है इस अवसर पर बोलते हुए मधुरेश ने कहा कि किसी साहित्यिक कृति की आलोचना की मेरी मुख्य कसौटी यह है कि वह कैसे और किस सीमा तक अपने समय में वैचारिक और कलात्मक हस्तक्षेप करती है। उन्होंने कहा कि आलोचना स्वेच्छाचारी ढंग से आलोचक को चीजों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने की छूट नहीं देती है। वस्तुनिष्ठ और पूर्वाग्रहमुक्त आलोचना ही अंततः विश्वसनीय आलोचना होती है। कमला नेहरू कालेज, दिल्ली की प्रोफेसर तथा आलोचक डॉ. साधना अग्रवाल ने कहा कि पिछले कई दशकों में हिंदी कथा आलोचना को जिन आलोचकों ने गति प्रदान की है उनमें मधुरेश अग्रिम पंक्ति में है। उन्होंने आलोचना के लिए स्वयं को पूर्ण समर्पित किया हुआ है। हाल ही में उनकी चार पुस्तकों का प्रकाशन 86 वर्ष की अवस्था में भी आलोचनात्मक लेखन के प्रति उनके उत्साह और निरंतर सक्रियता का परिणाम है। जयपुर से आए साहित्यकार हरिशंकर शर्मा ने कहा कि मधुरेश आत्मप्रचार से कोसों दूर रहे हैं। रूहेलखंड विश्वविद्यालय में उनके साहित्यिक अवदान पर कोई शोध न होना खेदजनक है। आलोचना के क्षेत्र में उनका समुचित मूल्यांकन होना अभी शेष है। लेखक रणजीत पांचाले ने कहा कि वामपंथी शिविर के आलोचक होने के बाद भी मधुरेश की सत्यनिष्ठा उनकी शिविरनिष्ठा से ऊपर रही है और विपरीत विचारधारा के साहित्यकार को भी वाजिब ‘ड्यू’ देने में मधुरेश ने कभी संकोच नहीं किया है।
आलोचक डॉ. नितिन सेठी ने मधुरेश की पुस्तक ‘ऐतिहासिक उपन्यास : इतिहास और इतिहास दृष्टि’ की विस्तार से चर्चा करते हुए मधुरेश के इतिहास बोध, विशेषकर विश्व इतिहास के प्रसंग में उनकी असाधारण जानकारी और समझ की मुक्तकंठ से सराहना की। कथाकार डॉ. लवलेश दत्त ने कहा कि मधुरेश की अध्ययन की बड़ी रेंज ने भी उनकी आलोचना को प्रभावशाली बनाया है। संगोष्ठी के दौरान मधुरेश का अभिनंदन किया गया और उनकी चार पुस्तकों- कथा वार्ता, सीढ़ियों पर उपन्यास, अपनों के बीच एवं कथाकार राजेंद्र यादव और मन्नू भंडारी पर केंद्रित पुस्तक तोता मैना की कहानी का लोकार्पण किया गया।
कार्यक्रम के आरंभ में भारतीय पत्रकारिता संस्थान के निदेशक सुरेंद्र बीनू सिन्हा ने सभी का स्वागत किया और अंत में संयोजक देवेंद्र उपाध्याय ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। राष्ट्रीय संगोष्ठी का कुशल संचालन साहित्यकार डॉ. अवनीश यादव और सुरेन्द्र बीनू सिन्हा ने किया। इस अवसर पर प्रदीप मधवार, अर्चना उपाध्याय, सुरेश बाबू मिश्रा, इंद्रदेव त्रिवेदी, संजय सक्सेना, राजीव जी, आलोक शर्मा, प्रकाश चंद्र सक्सेना, वंदना शर्मा, निर्भय सक्सेना, मधुरिमा सक्सेना, मधु वर्मा, सुधीर मोहन, साक्षी व राशि शर्मा, अरुणा सिन्हा, डॉ. अतुल वर्मा, सुनील शर्मा, जितेन्द्र सक्सेना सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। निर्भय सक्सेना




















































































