ज्यादा फोन चलाने की आदत बना सकती है आपके बच्चे को मायोपिया का शिकार, जानें कैसे करें इससे बचाव

स्वास्थ्य। कोविड के बाद से बच्चों की लाइफस्टाइल में भी काफी बदलाव आया है। बाहर दोस्तों के साथ खेलने-कूदने के बदले, अब वे अपने कंप्यूटर स्क्रीन के आगे बैठना ज्यादा पसंद करते हैं। इस कारण से उनकी सेहत पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। इसका असर उनकी आंखों पर भी पड़ता है, जो उनके लिए परेशानी की वजह बन सकता है। इन नकारात्मक प्रभावों में मायोपिया भी शामिल है, जो उनके जीवन को काफी प्रभावित कर सकता है। आइए जानते हैं, क्या है मायोपिया और कैसे कर सकते हैं इससे बचाव। क्लीवलैंड क्लीनिक के मुताबिक, मायोपिया एक ऐसी कंडिशन है, जिसमें दूर की चीजें देखने में तकलीफ होती है। इसे नियरसाइटेडनेस भी कहा जाता है। इस कंडिशन में दूर की चीजों पर आंखें ठीक से फोकस नहीं कर पाती और दूर की चीजें धुंधली और दिखती हैं। यह आंखों में लाइट के ठीक से रिफ्लेक्ट न करने की वजह से होता है। इस वजह से, चीजें धुंधली दिखाई देती हैं। यह आमतौर पर बचपन में शुरू होता है, जो टीनेज के अंतिम सालों में बेहतर होने लगता है। सिर में दर्द दूर की चीजें धुंधली नजर आना, लेकिन पास की चीजें पास दिखना आंखों पर जोर पड़ना दूर की चीजों को देखने के लिए आंखों को स्कवींट करना टीवी आदि देखते समय काफी पास बैठना अधिक पलकें झपकाना बार-बार आंखों को रगड़ना बच्चों की लाइफस्टाइल में काफी परिवर्तन आया है, जिस कारण से वे बाहर खेलना कम पसंद करते हैं और ज्यादातर समय फोन या कंप्यूटर की स्क्रीन के आगे बिताते हैं। इस लाइफस्टाइल की वजह से, सबसे अधिक प्रभावित उनकी आंखें होती हैं, जिस कारण से बच्चों में मायोपिया का खतरा काफी बढ़ जाता है। इसलिए जरूरी है कि आप कुछ बातों का ख्याल रखें, जिनकी मदद से आप अपने बच्चों में मायोपिया के खतरे को कम कर सकते हैं। स्क्रीन टाइम कम करने की कोशिश करें। अगर आपका बच्चा अधिक समय तक, फोन, टीवी या कंप्यूटर का इस्तेमाल करता है, तो कोशिश करें कि उनके स्क्रीन टाइम को कम करने के लिए आप कोई रूल बनाएं। बाहर खेलने से आपके बच्चे को सिर्फ मायोपिया से बचाव ही नहीं बल्कि और भी कई फायदे मिल सकते हैं। इसलिए कोशिश करें कि आपका बच्चा रोज थोड़ी देर के लिए बाहर खेलने जाएं। कम रोशनी या अंधेरे में किताब पढ़ने या फोन का इस्तेमाल न करने दें। इससे बच्चों की आंखों पर स्ट्रेन पड़ सकता है। आंखों का नियमित चेकअप कराएं। इससे आंखों में होने वाली परेशानी को शुरुआती स्टेज में पता लगाकर इलाज कर सकते हैं।