नई दिल्ली। अब आटा-दाल के बाद कहना है कि अब नहाना-धोना भी महंगा पड़ सकता है। केंद्र सरकार साबुन, डिटरजेंट और शैंपू बनाने में काम आने वाले कच्चे माल जैसे सेचुरेटेड फैटी अल्कोहल (एसएफए) आदि पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी लगाने की तैयारी में है। नया शुल्क लगते ही साबुन, डिटरजेंट और शैंपू की कीमतें बढ़ जाएंगी। इस खबर पर चैंबर ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री (सीटीआई) ने चिंता जताई है और सीटीआई ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को इस मुद्दे पर पत्र लिखा है, सीटीआई चेयरमैन बृजेश गोयल और अध्यक्ष सुभाष खंडेलवाल ने बताया कि मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार साबुन, डिटरजेंट और शैंपू जैसे उत्पादों में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल पर सरकार एंटी डंपिंग ड्यूटी और काउंटर वेलिंग ड्यूटी लगाने जा रही है , अगर ये ड्यूटी लगा दी गई तो ये सब चीजें महंगी हो जाएंगी , दो महीने पहले वाणिज्य मंत्रालय के डिपार्टमेंट ने सिफारिश की थी कि इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड से इंपोर्ट किए एसएफए पर महंगी एंटी डंपिंग ड्यूटी और काउंटर वेलिंग ड्यूटी लगाई जाए, इस संदर्भ में वाणिज्य मंत्रालय ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिखा था । अगर ऐसा हुआ तो कंपनियां अपने उत्पादों के रेट बढ़ा देंगी। काउंटर वेलिंग ड्यूटी इंपोर्टिड माल पर लगती है। सीटीआई का कहना है कि पहले ही भारत में उपभोक्ता महंगाई दर काफी ऊंची है। इन सब ड्यूटी के लगते ही साबुन, डिटरजेंट और शैंपू के दाम बढ़ जाएंगे। कई देसी कंपनियों के बयान भी आ गए हैं कि उन्हें अपने प्रोडक्ट्स के दाम बढ़ाने होंगे। बृजेश गोयल ने कहा कि आज की तारीख में साबुन, डिटरजेंट और शैंपू हर आदमी की जरूरत बन गया है। अमीर, गरीब और मध्यम वर्ग सभी इसे अछूते नहीं हैं। कपड़े धोने, बाल धोने, नहाने और हाथ धोने में साबुन का यूज होता है। कोरोना काल में साबुन से हाथ धोने का प्रचलन बढ़ा है। साबुन की खपत बढ़ी है। सरकार ऐसे टैक्स नहीं लगाए। इससे आम जनता पर बोझ पड़ेगा। भारत में क्लिनिंग उत्पादों से जुड़ा उद्योग 2.5 अरब डॉलर का है। 10 हजार से ज्यादा लोगो सीधे तौर पर रोजगार से जुड़े हैं।