वाराणसी। संकटमोचन संगीत समारोह के शताब्दी समारोह की पहली निशा में जसबीर सिंह जस्सी के गानों पर विरोध शुरू हो गया है। जस्सी ने आधी रात के बाद दिल ले गई कुड़ी गुजरात दी और कोका कोका जैसे गीत सुनाकर श्रोताओं का मनोरंजन तो किया लेकिन अखिल भारतीय संत समिति ने इस पर ऐतराज जताया है। अखिल भाारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने इस पर बयान जारी करते हुए कहा कि संकट मोचन मंदिर में ‘दिल ले गई कुड़ी गुजरात दी’ और ‘कोका-कोका’ जैसे फूहड़ गानों का प्रदर्शन स्वीकार नहीं है। मंदिर के महंत यदि हनुमान जी की सेवा नहीं कर पा रहे हैं तो महंतई छोड़ दें। ये कौन सी हनुमान भक्ति हो रही है। इस बार कुल 13 मुस्लिम कलाकार इस समारोह में आ रहे हैं। कलाकारों से कोई आपत्ति नहीं है लेकिन क्या उनमें आत्मिक पवित्रता है क्या? ” पं. अमरनाथ मिश्र ने स्थापना की और उसे पं. वीरभद्र मिश्र ने आगे बढ़ाया। उन्होंने साधना माना। उन्होंने जो मानदंड रखे थे कि महोत्सव में वही प्रस्तुति दे सकता था जो आत्मिक रुप से शुद्ध हो और सद्चरित्र हो।स्वामी जितेंद्रानंद ने कहा, ‘इससे पहले गुलाम अली आए थे तो उनके गानों पर काफी विरोध हुआ। पूर्व के महंतों ने किसी भी फिल्मी कैरेक्टर को इस महान मंच पर जगह नहीं दी। पूर्व महंत पंडित वीरभद्र मिश्र ने तो सुप्रसिद्ध शास्त्रीय और फिल्मी पार्श्वगायिका कविता कृष्णमूर्ति को पांच मिनट के लिए भी गाने का मौका नहीं दिया था। वह दर्शक दीर्घा में ही बैठी रह गईं थीं।” पूर्व महंतों ने इसे हनुमान जी की आराधना उत्सव के रूप में शुरू किया था। अब इसके स्थान पर फूहड़ गानों का प्रचलन प्रारंभ होगा तो इसे हम अराधना नहीं मान सकते। और न यह स्वीकार किया जा सकता है। अत: वर्तमान महंत से आग्रह है कि उनके पूर्वजों द्वारा प्रारंभ की गई परंपरा को दूषित होने से रोके। अगर, वह यह नहीं करने में सक्षम हैं तो मेरा मानना है कि उन्हें महंतई नहीं करनी चाहिए।” वर्तमान में जो हो रहा है वह नैतिक दृष्टि से उचित नहीं है। उनको परंपरा तो अपने पूर्वजों की निभानी है। हमें कोई बैर नहीं है बस अपनी मर्यादाओं का ध्यान रखें।