बदायूँ। युवा शब्द से उत्साह, उमंग, स्फूर्ति, सक्रियता आदि गुणों का बोध होता है। युवा सकारात्मक और सक्रिय व्यक्तित्व के गुणों का भी बोध कराता है। अविराम संघर्ष करने का जज्बा रखने वाला परिपूर्ण युवा है। जिसमें हर पल जीवन में कुछ नूतन करने की उमंग हो, प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अजेय मनःस्थिति हो, विनाश की विभीषिका में सृजन के कार्य करने की श्रेष्ठ सामथ्र्य हो, असफलताओं की ज्वाला में सफलता के प्रकाश को जन्म दे, निराश, हताश, निष्ठुर हृदयों को सजल संवेदनाएं भर सके। उत्कृष्ट और महान कार्य के लिए समर्पण भाव से लगे। ऐसे साहसी, दृढ़संकल्पी युवा आदर्श युवाओं की उत्कृष्ट श्रेणी में आते हैं। स्वामी विवेकानंद ने युवा शक्ति का केंद्र शारीरिक बल नहीं, मानसिक शक्तियों को सर्वोच्च माना है। सबल मन का निर्माण मनुष्य की अपनी सूझ-बूझ, एकाग्रता, स्थिरता एवं आंतरिक पराक्रम का प्रतिफल है। युवा संकल्पशक्ति, साहसिकता और दूरदर्शिता का परिचय देते हैं। उनका गुजारा साधनों में नहीं, जीवन साधना में है। युवाओं में संपन्नता नहीं, गौरव अर्जित करने का बुलंद हौसला होता है। श्रेष्ठ ज्ञान शक्ति का एक महान केंद्र है। प्रखर व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए उपयोगी होते हैं। उत्कृष्ट व्यक्तित्व की शक्ति स्थूल में नहीं, सूक्ष्म में होती है। स्वामी विवेकानंद की दृष्टि में सूक्ष्मशक्तियों को ग्रहण करना आ जाए तो विश्व की समस्त शक्तियां शीघ्र ही अधीन हो जाती हैं। मनुष्य के अद्भुत मन में पाप-पुण्य, अंधेरा-उजाला और स्वर्ग-नरक के द्वार खोलने की अनोखी सामथ्र्य है। मन को साधने से पवित्रता, एकाग्रता और श्रेष्ठ शक्तियों को अपार भंडार मिलता है। मन शक्ति और संवेदना का पवित्र संगम, शक्तियों का आधार है। एकाग्र मन और निर्मल अंतःकरण से युक्त युवा ही युग की मांग को पूरा कर सकते हैं। स्वामी विवेकानंद के स्वप्नों का युवा ही भारत की प्राचीन सभ्य, संस्कृति और संस्कारों की पुनः स्थापना कर धरती पर स्वर्ग और मानव में देवत्व का उदय कर सकता है।