10 सितम्बर बलिदान दिवस पर विशेष
8 पाकिस्तानी पेंटन टेन्कों को नष्ट करने बाले रणबांकुरे अब्दुल
भारतीय सेना के जाँबाज रणबांकुरे अब्दुल हमीद ने
भारत-पाक युद्ध के दौरान
बरेली । खेमकरण सैक्टर के आसल उत्ताड़ में लड़े गए युद्ध में अद्भुत वीरता का प्रदर्शन करते हुए वीरगति प्राप्त की जिसके लिए उन्हें मरणोपरान्त भारत का सर्वोच्च सेना पुरस्कार परमवीर चक्र मिला। इस युद्ध में
शहीद होने से पहले परमवीर अब्दुल हमीद मसऊदी ने मात्र अपनी “गन माउन्टेड जीप” से उस समय अजय समझे जाने वाले पाकिस्तान के “पैटन टैंकों” को नष्ट किया था।
वीर अब्दुल हमीद का जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धामूपुर गाँव में १ जुलाई १९३३ में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम सकीना बेगम और पिता का नाम मोहम्मद उस्मान था।
अब्दुल हमीद २७ दिसम्बर १९५४ को भारतीय सेना के ग्रेनेडियर रेजीमेंट में भर्ती हुए। बाद में उनकी तैनाती रेजीमेंट के ४ ग्रेनेडियर बटालियन में हुई जहां उन्होंने अपने सैन्य सेवा काल तक अपनी सेवाएं दीं। उन्होंने अपनी इस बटालियन के साथ आगरा, अमृतसर, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, नेफा और रामगढ़ में भारतीय सेना को अपनी सेवाएं दीं।
भारत-चीन युद्ध के दौरान अब्दुल हमीद की बटालियन सातवीं इंफैन्ट्री ब्रिगेड का हिस्सा थी जिसने ब्रिगेडियर जॉन दलवी के नेतृत्व में नमका-छू के युद्ध में पीपल्स लिबरेशन आर्मी से लोहा लिया। इस युद्ध में सेकेंड लेफ्टिनेंट जी.वी.पी.राव को मरणोपरांत अद्भुत शौर्य और वीरता के प्रदर्शन के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। अब्दुल हमीद के सम्मान से पहले इस बटालियन को भारत की स्वतंत्रता के पश्चात मिलने यह सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार था।
उन्होंने अपने सेवा काल में सैन्य सेवा मेडल, समर सेवा मेडल और रक्षा मेडल से सम्मान प्राप्त किया था।
भारत में अस्थिरता उत्पन्न करने और शासन-व्यवस्ता के खिलाफ विद्रोह भड़काने की अपनी योजना ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ के तहत पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सीमा में जम्मू-कश्मीर में लगातार घुसपैठ करने की गतिविधियां शुरू कर दीं। 5 से 10 अगस्त 1965 के बीच भारतीय सेना ने भारी तादाद में पाकिस्तानी नागरिकों के घुसपैठ को उजागर किया। पकड़े गए घुसपैठियों से मिले दस्तावेजों के जरिए इस बात के पुख्ता सबूत मिले कि पाकिस्तान ने कश्मीर पर कब्जा करने के लिए गुरिल्ला हमले की योजना बनाई थी। पाकिस्तान अपनी इस योजना को अंजाम देने के लिए 30,000 छापामार हमलावरों को इस खास उद्देश्य के लिए प्रशिक्षित किया था।
8 सितम्बर-१९६५ की रात में, पाकिस्तान द्वारा भारत पर हमला किया गया ।उस हमले का जवाव देने के लिए भारतीय सेना के जवान उनका मुकाबला करने को खड़े हो गए। वीर अब्दुल हमीद पंजाब के तरनतारन जिले के खेमकरण सेक्टर में सेना की अग्रिम पंक्ति में तैनात थे। पाकिस्तान ने उस समय के अपराजेय माने जाने वाले “अमेरिकन पैटन टैंकों” के के साथ, “खेम करन” सेक्टर के “असल उताड़” गाँव पर हमला कर दिया।
भारतीय सैनिकों के पास न तो टैंक थे और नहीं बड़े हथियार लेकिन उनके पास था भारत माता की रक्षा के लिए लड़ते हुए मर जाने का हौसला। भारतीय सैनिक अपनी साधारण “थ्री नॉट थ्री रायफल” और एल.एम्.जी. के साथ पैटन टैंकों का सामना करने लगे। हवलदार वीर अब्दुल हमीद के पास “गन माउनटेड जीप” थी जो पैटन टैंकों के सामने मात्र एक खिलौने के सामान थी।
वीर अब्दुल हमीद ने अपनी जीप में बैठ कर अपनी गन से पैटन टैंकों के कमजोर अंगों पर एकदम सटीक निशाना लगाकर एक -एक कर धवस्त करना प्रारम्भ कर दिया। उनको ऐसा करते देख अन्य सैनकों का भी हौसला बढ़ गया और देखते ही देखते पाकिस्तान फ़ौज में भगदड़ मच गई। वीर अब्दुल हमीद ने अपनी “गन माउनटेड जीप” से आठ पाकिस्तानी पैटन टैंकों को नष्ट किया था।
देखते ही देखते भारत का “असल उताड़” गाँव “पाकिस्तानी पैटन टैंकों” की कब्रगाह बन गया। लेकिन भागते हुए पाकिस्तानियों का पीछा करते “वीर अब्दुल हमीद” की जीप पर एक गोला गिर जाने से वे बुरी तरह से घायल हो गए और अगले दिन 10 सितम्बर को बे वीरगती को प्राप्त हुए ।
भारतीय तिरंगे ध्वज में लिपटा हुआ उनका पार्थिव शरीर जब उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर जिले में उनके पैतृक गांव पहुंचा तो उनके अन्तिम दर्शन के लिए विशाल जनसमूह उमड़ पड़ा ।
इस युद्ध में असाधारण बहादुरी के लिए उन्हें पहले महावीर चक्र और फिर सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया। सारा देश उनकी बहादुरी को प्रणाम करता है।
सुरेश बाबू मिश्र सेवानिवृत प्रधानाचार्य