तीन रोज़ा उर्स-ए-हुजूर फातेह अजमेर का कुल शरीफ़ के साथ समापन

बरेली। परतापुर चौधरी मदार चौक स्थित दरगाह सय्यद मरग़ूब आलम जाफ़री में चल रहा तीन रोज़ा उर्स-ए-हुजूर फातेह अजमेर मंगलवार को कुल शरीफ़ की रस्म के साथ सम्पन्न हो गया। तीन दिनों तक चले इस उर्स के दौरान दरगाह परिसर इबादत, दुआ और मोहब्बत की रौशनियों से जगमगाता रहा। तीन रोज़ा उर्स-ए-हुजूर फातेह अजमेर का समापन अमन और मोहब्बत के पैग़ाम के साथ हुआ। पूरे उर्स में इंसानियत और भाईचारे की मिसाल देखने को मिली। यह आयोजन न सिर्फ़ धार्मिक महत्व रखता है बल्कि समाज को जोड़ने और गंगा-जमुनी तहज़ीब को मज़बूत करने का माध्यम भी है।
दूर-दराज़ से आए जायरीनों की भीड़ ने गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल पेश की। उर्स के तीसरे और आखिरी दिन की शुरुआत नमाज-ए-फजर के बाद कुरान-ए-पाक की तिलावत से हुई। नातख्वां हज़रात ने बारगाह में नातों का नजराना पेश किया। दरगाह परिसर में कुरान की तिलावत और नात की आवाज़ से एक रूहानी माहौल बना रहा। प्रोग्राम की सदारत सज्जादानशीन सय्यद जिल्ले महमूद जाफ़री ने की। उन्होंने कहा कि उर्स-ए-हुजूर फातेह अजमेर का आयोजन केवल एक धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि इंसानियत, मोहब्बत और भाईचारे का पैग़ाम है। उन्होंने जायरीनों को इल्म, अमल और इख़लाक़ की राह पर चलने का संदेश दिया।
सुबह से ही दरगाह पर जायरीनों का तांता लगा रहा। लोग अपनी मन्नतें लेकर आए और चादर पेशी, गुल पेशी का सिलसिला पूरे दिन चलता रहा। पुरुष, महिलाएं और बच्चे सभी दरगाह शरीफ़ पर हाज़िरी देने पहुंचे।
कार्यक्रम में उलेमा-ए-किराम ने
शिरकत करते हुए सय्यद मुक़तीदा हुसैन जाफ़री मदारी ने तकरीर में सीरत-ए-मुस्तफ़ा पर रोशनी डाली। उन्होंने कहा कि आज के दौर में पैग़ंबर-ए-इस्लाम की सीरत से रहनुमाई हासिल करना बेहद ज़रूरी है। उनके बताए रास्ते पर चलकर इंसानियत को सही मायनों में जिया जा सकता है। मौलाना मो. शफीक़ुल क़ादरी ने अपने खिताब में इल्म की अहमियत पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि इल्म इंसान को अंधेरे से उजाले की तरफ ले जाता है। इल्म के बिना न तो दुनिया की तरक्की मुमकिन है और न ही आखिरत की कामयाबी। उन्होंने नौजवानों से अपील की कि वे दीन और दुनियावी दोनों तरह का इल्म हासिल करें।
प्रबंधक डॉ. सय्यद इंतख़ाब आलम जाफ़री ने इल्म को ज़िंदगी का हुनर बताया। उन्होंने कहा कि जो लोग इल्म को अपनाते हैं वही समाज और मुल्क की तरक्की का कारण बनते हैं।
दोपहर 3 बजकर 17 मिनट पर कुल शरीफ़ की रस्म अदा की गई। इस मौके पर पूरा दरगाह परिसर दुआओं की रूहानियत में डूब गया। हाफ़िज़ जिया-उल-मदार ने दुआ की निज़ामत की। सज्जादानशीन सय्यद जिल्ले महमूद जाफ़री और सय्यद जावेद आलम जामरी ने मुल्क की शांति, अमन और तरक्की ,समाज में मोहब्बत-ए-इंसानियत की दुआएं मांगी गईं।
उर्स-ए-हुजूर फातेह अजमेर में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोगों ने शिरकत की। कई सामाजिक संगठनों ने भी दरगाह पहुंचकर चादर पेश की और आपसी भाईचारे का संदेश दिया। जायरीनों ने अमन और मोहब्बत का पैग़ाम देता है।
लंगर और सेवा व्यवस्था
दरगाह प्रबंधन की ओर से लंगर का इंतज़ाम किया गया। बड़ी तादाद में जायरीन ने लंगर का तबर्रुक हासिल किया। इस मौके पर सैकड़ों सेवक दिन-रात सेवा में जुटे रहे। सुरक्षा व्यवस्था भी पूरी तरह मुस्तैद रही।
उर्स में शरीक हुए जायरीनों ने कहा कि यहां आकर उन्हें सुकून और राहत मिलती है। कई जायरीन ने अपने घर-परिवार की खुशहाली और कारोबार की तरक्की की दुआ मांगी। कुछ जायरीनों ने कहा कि उर्स की खासियत यह है कि यहां अमन, इंसानियत और एकता का पैग़ाम हर दिल तक पहुंचता है।
जगह-जगह पर लंगर का इंतज़ाम किया था, जायरीनों ने तबर्रुक हासिल किया।