बरेली। पर्वाधिराज दशलक्षण पर्व के अंतिम दिन शनिवार को भाद्रपद शुक्ल अनंत चतुर्दशी को जैन धर्मावलंबियों ने विशेष आराधना के साथ व्रत उपवास रख देश की खुशहाली व समृद्धि की कामना की। आज देवाधिदेव प्रथम बालयती बारहवें तीर्थंकर श्री 1008 वासुपुज्य जी के निर्वाण दिवस पर मंदारगिरी पर्वत की रचना से सुसज्जित लाडू चढ़ाया गया। तथा दशलक्षण पर्व के सभी 10 धर्मो को आत्मसात करने का संकल्प लिया गया। संस्कारशाला की प्रस्तावना में युवा वक्ता सौरभ जैन ने कहा कि उत्तम ब्रह्मचर्य में ब्रह्म का अर्थ आत्मा और चर्य का अर्थ आचरण करने से है। अर्थात अपनी आत्मा में रमना। देवता तरसते हैं इस धर्म को पाने के लिए पर संयम नहीं ले पाते, मनुष्य पर्याय में ही ब्रह्मचर्य धर्म को आत्मसात करना संभव है। पं विकास जैन ने कहा कि स्वस्थ मानसिकता, विषयों से विरक्ति, कल्याण मित्र की संगति और भगवान की भक्ति, ये सब ब्रह्मचर्य को हमारे जीवन में उद्घाटित करते हैं। चाम और काम से ऊपर उठकर, भोग के गुलाम नहीं मालिक बनो। बिहारीपुर मंदिर की धर्म चर्चा में प्रकाश चंद जैन ने कहा कि वर्तमान में समाज में बहन बेटियों के साथ अत्याचार हो रहा है, धर्म कहता है जो हीन पुरुष ब्रह्मचर्य व्रत को भंग करता है, वह नरक में पड़ता है और वहां सभी दुखों को भोगता है। कामुक लगाव एक पाप है जो केवल सांसारिक भटकावों के दुष्चक्र की ओर ले जाता है, जबकि ब्रह्मचारी को सर्वोच्च कुल, वंश और स्वर्गीय उन्नति प्राप्त होती है। मध्यान्ह 3 बजे श्री जिनेन्द्र भगवान का पुनः अभिषेक मंदिर जी में हुआ। सायंकाल में सामूहिक आरती के उपरांत भजन संध्या का आयोजन किया गया। आज के कार्यक्रम में, राजेश जैन, सृष्टि जैन, संजय जैन, सुनीता जैन, मीनेश जैन, सुनील कुमार जैन सेल टैक्स, सुधीर जैन, राजरानी जैन, अध्यक्ष विजय कुमार जैन, सोमेश्वर दयाल जैन, सुलेखा जैन,नीता जैन, छाया जैन, चेतना जैन ,अवनी जैन, मिताली जैन, दिनेश चंद्र जैन, ममता जैन, शालिनी जैन, सुधीर जैन, राजेंद्र जैन, हेमा देसाई जैन, साधना जैन आदि उपस्थित रहे।