श्री राम की सेना में भालू,बंदर इत्यादि थे जो कि रावण की शक्तिशाली सेना के समान नहीं थे

बरेली। प्राचीनतम बाबा त्रिवटी नाथ मंदिर के श्री रामालय में आयोजित श्रीरामचरितमानस कथा के आज चतुर्थ दिवस परम पूज्य कथा व्यास पंडित प्रभाकर त्रिपाठी ने कहा कि श्री रामचरितमानस में दो बातें मुख्य हैं जो हैं राम का रामत्व और रावण का रावणत्व। कथा व्यास कहते हैं कि श्रीराम के रामत्व से पशुता भी मानवता में बदल सकती है वहीं रावण के रावणत्व से वह रावण जो कि उच्च ब्राह्मण कुल और महादेव का उपासक था लेकिन वह पतन के मार्ग पर चला जाता है और रावण का मार्ग पर चलने वाले उच्च ब्राह्मण कुल को आसुरी और निश्चर कुल में परिवर्तित कर देता है। कथा व्यास कहते हैं कि श्री राम की सेना में भालू,बंदर इत्यादि थे जो कि रावण की शक्तिशाली सेना के समान नहीं थे परन्तु रामत्व के साथ होने कारण ही वही पशुता को मनुष्यता में परिवर्तित हो जाती हैं और उनमें लोककल्याण और मानवता की स्थापना कर देता है। कथा व्यास कहते हैं कि प्रभु श्री राम समुद्र से लंका जाने के लिए मार्ग देने का अनुग्रह करते हैं परंतु समुद्र को इसका बिल्कुल मान नहीं होता है।प्रभु श्री राम के धनुष उठाने पर समुद्र को अपने अपराध का ज्ञान होता है और वह प्रभु श्रीराम से अनुनय विनय करता है और क्षमा मांगता है। कथा व्यास कहते हैं कि श्री राम का मर्यादा पूर्ण व्यवहार किसी से डरने की या किसी के भय में आने की प्रेरणा कभी नहीं सिखाता अपितु कर्मों की गति के साथ धनुष बाण उठा कर युद्ध की भी प्रेरणा देता है। कथा व्यास कहते हैं कि जो शक्ति अथवा अवस्था प्राणि मात्र को परमात्मा से मिलती है ,उसको सन्मार्ग के पथ पर लगा कर ही प्रभु कृपा और मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। कथा व्यास कहते हैं कि श्री रामेश्वरम की स्थापना प्रभु श्री राम ने लंका विजय पाने के लिए अपने आराध्य महादेव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए की थी। परंतु ईश्वरत्व में अपने से अधिक अपने आराध्य के लिए भाव होता है।संतों ने इसका अर्थ लिया मानो महादेव अपने आराध्य श्री राम के लिए कह रहे हैं कि राम जिनके ईश्वर वह रामेश्वर और प्रभु श्री राम अपने आराध्य महादेव के लिए कह रहे हैं कि राम के जो ईश्वर वह रामेश्वर। कथा व्यास कहते हैं कि वास्तव में श्री राम और श्री महादेव एक ही हैं और एक दूसरे के पूरक हैं परंतु एक दूसरे को अपने से अधिक महत्व दिया करते हैं। कथा व्यास कहते हैं कि माता सीता के स्वयंवर के समय माता प्रभु राम से मन ही मन आग्रह करती है कि आप विलम्ब न करें और अति शीघ्र धनुष की ओर बढ़ें ।प्रभु श्री राम मंद मंद मुस्कान के साथ उन्हें आश्वस्त रहने को कहते हैं और जब गुरु विश्वामित्र का आदेश होता है तभी अपने आसन से उठते हैं और धनुष भंग करते हैं। कथा व्यास कहते हैं कि जो जगत के स्वामी हैं,जिनके वश में सब कुछ है, वह भी परिस्थितिवश सीता स्वयंवर में गुरु के आदेशानुसार पालन करते हैं। आज की कथा में मंदिर के रामालय में उपस्थित काफी संख्या में भक्तजनों ने श्री रामायण की आरती करी तथा प्रसाद वितरण हुआ। आज की कथा में मंदिर कमेटी के प्रताप चंद्र सेठ , मीडिया प्रभारी संजीव औतार अग्रवाल ,सुभाष मेहरा का मुख्य सहयोग रहा।