बदायूँ। जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने अवगत कराया कि प्रदेेश की जलवायु फॉल आर्मी वार्म के लिए अनुकूल है विगत वर्षो से प्रदेश में इस कीट का प्रकोप देखा जा रहा है ये एक बहुभोजी कीट हेैै जिसके कारण मक्का के साथ साथ अन्य फसलें जैसे ज्वार बाजरा धान गन्ना आदि फसलों को भी हानि पहुॅचा सकता है इस कीट की पहचान एवं रोकथाम की जानकारी जिला कृषि रक्षा विभाग द्वारा दी गयी। इस कीट की पहचान एवं प्रवन्धन की सही जानकारी कृषकों को होना अत्यन्त आवश्यक है। उन्होंने इसकी पहचान के बारे में बताया कि कीट की मादा ज्यादातर पत्तियों की निचली सतह पर अण्डे देती है। कभी कभी पत्तियों की ऊपरी सतह एवं तनों पर भी अण्डे दे देती है। इसकी मादा एक से ज्यादा पर्त में अण्डे देकर सफेद झाग से ढक देती है। अण्डंे हल्के पीले या भूरे रंग के होते हेै इसका लार्वा भूरा धूसर रंग का होता हेै तथा इसके पार्श्व में तीन पतली सफेद धारियॉ और सिर पर उल्टा अग्रेजी अक्षर का वाई दिखता है। उन्होंने इससे क्षति का स्वरूप के बारे में बताया कि इस कीट की प्रथम अवस्था सूड़ी (लार्वा) सर्वाधिक हानिकारक होती है सामान्यतया यह कीट बहुभेाजी होता है लगभग 80 फसलो अपना जीवन चक्र पूरा कर सकता है इसमें मक्का, बाजरा, ज्वार, धान गन्ना प्रमुख है। परन्तु मक्का इस कीट की रूचिकर फसल है।यह कीट फसल की लगभग सभी अवस्थाओं मे हानि पहॅुचाता है। यह कीट मक्का के पत्तियों के साथ साथ भुटटा को भी प्रवाभित करता है। उन्होंने इसके प्रवन्धन के बारे में बताया कि फसल की नियमित निगरानी एवं सर्वेक्षण करे। अण्ड परजीवी जैसे टाईकोग्रामा प्रेटिओसम के 50 हजार अण्डे प्रति है0 की दर प्रयोग करने से इसकी संख्या की बढोत्तरी में रोक लगाई जा सकती है। यान्त्रिक विधि के तोैर पर शाम काल 6 से 9 बजे तक 3 से 4 की संख्या प्रकाश प्रपंच प्रति एकड़ लगाना चाहिए। 35 से 40 फैरोमैन टेªप प्रति है0 की दर से लगाकर प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता। 10 से 20 प्रतिशत क्षति की अवस्था में रसायनिक नियंत्रण प्रभावी होता है । इस हेतु क्लोरेन्टानिलीप्रोल 18.5 प्रतिशत एस. सी. 0.4 मिली0 प्रति0 ली0 पानी 200 मिली ली प्रति0 हेै0 अथवा थायोमेैथाक्सम 2.6 प्रतिशत ़ लैम्ब्डासाइहेैलाथ्रिन 9.5 प्रति0 0.5 मिली ली प्रति ली0 पानी में 250 मिली0 प्रति हेैक्ट0 की दर से घोल बनाकर छिकाव करना चाहिए।