चार लाख श्रद्धालु 80 KM के पुण्य पथ पर निकले, कंकड़-कंकड़ शंकर का हुआ अहसास
वाराणसी। गंगा से भी प्राचीन मणिकर्णिका तीर्थ पर संकल्प लेकर शिवभक्त पंचक्रोशी परिक्रमा मार्ग पर निकल पड़े। चक्रपुष्करिणी कुंड पर स्नान व संकल्प के साथ 80 किलोमीटर का पुण्य पथ चार लाख से अधिक श्रद्धालुओं से गुलजार हो उठा। कंकड़-कंकड़ शंकर का भाव लिए शिवभक्तों की टोलियों ने रात्रि में प्रथम पड़ाव की ओर प्रस्थान किया।गुरुवार की शाम से ही श्रद्धालुओं का रेला मणिकर्णिका तीर्थ की ओर बढ़ने लगा था। शाम ढलने के साथ ही चौक के रास्ते से मणिकर्णिका जाने वाली गलियों में तिल रखने की जगह नहीं थी। पुण्यफल की कामना से मोक्षदायिनी गंगा में स्नान कर मणिकर्णिका घाट स्थित पौराणिक चक्रपुष्कर्णी कुंड में श्रद्धालुओं ने जलमार्जन किया। संकल्प लेकर घाट मार्ग से होते हुए अस्सी घाट की ओर बढ़े।भाल पर भष्म की त्रिपुंड लगाए, नंगे पांव, मार्ग पर्यंत डमरू नाद, हर-हर महादेव शंभू काशी विश्वनाथ गंगे… शिव भजनों का गान करते हुए प्रत्येक श्रद्धालु आस्था के रंग में सराबोर अपने गंतव्य स्थान की ओर चला जा रहा था। कोई हर हर महादेव का गगनभेदी उद्घोष तो कोई मौन होकर सांसों की माला में शिव को रमाए हुए, कहीं शिवभक्तों की टोली डीजे की धुन पर थिरक रही थी तो कोई शिवभक्तों की सेवा में जुटा हुआ था। जगह-जगह यात्रियों के लिए सहायता शिविर व सेवा कैंप लगाए गए थे।यात्रा कर रहे शिवम अग्रहरि ने अनुभव साझा करते हुए कहा कि अद्भुत अनुभूति कराने वाली इस यात्रा में हर कोई शिवस्वरूप माना जाता है। हर व्यक्ति एक दूसरे को भोले नाम से ही संबोधित करते हैं। केवल कुशवाहा ने बताया कि यह यात्रा काशी के कंकड़-कंकड़ में शंकर का सुखद एहसास कराती है। यात्रा के माध्यम से शिव को अत्यंत प्रिय पौराणिक नगरी अविमुक्त क्षेत्र काशी की समग्र परिक्रमा करना परम सौभाग्य की बात है।श्री लाटभैरव काशी यात्रा मंडल के सदस्यों ने भी फाल्गुन कृष्ण पक्ष के प्रदोष काल में ज्ञानवापी मुक्ति के संकल्प संग यात्रा प्रारंभ की। संकल्प के दौरान सभी ने सामूहिक रूप से ज्ञानवापी में भगवान आदिविश्वेश्वर का दर्शन शीघ्र भक्तों को प्राप्त हो की कामना की। यात्रा में उत्कर्ष कुशवाहा, रितेश कुशवाहा, रविशंकर, कुशवाहा, हिमांशु आदि शामिल रहे। श्रद्धालु प्रथम पड़ाव कंदवा स्थित कर्दमेश्वर महादेव, द्वितीय भीमचंडी, तृतीय रामेश्वर महादेव, चतुर्थ पंच शिवाला (पांचों पंडव), पांचवा और अंतिम पड़ाव कपिलधारा पहुंचेंगे। मणिकर्णिका घाट पर संकल्प पूर्ण करने के बाद यात्रा विराम लेगी।




















































































