चुनावी मैदान में पसंदीदा उम्मीदवार उतारने के लिए राजनीतिक दलों को करें बाध्य
नई दिल्ली। हालांकि सभी राजनीतिक दलों ने 2024 के संसदीय चुनावों की अंदर खाने तैयारियां प्रारंभ कर दी हैं। लेकिन 3 दिसंबर 2023 को पांच राज्यों के नतीजे आने के बाद चुनावी सरगर्मियां और तेज होती नजर आएंगी। इन सरगर्मियों के साथ ही सभी राजनीतिक दल चुनावी मैदान में उतारने के लिए प्रत्याशियों के नाम तय करने पर भी विचार विमर्श करना प्रारंभ कर देंगे। लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में जहां एक तरफ सभी राजनीतिक दल अपनी तैयारी में जुट गए हैं वहीं दूसरी तरफ अभी इस देश के मतदाता इस बात का इंतजार करते नजर आएंगे कि कौन सा राजनैतिक दल किस प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतारेगा। बस इस लोकतांत्रिक देश की यही एक विडंबना है कि यहां की आम जनता योग्य और मनपसंद उम्मीदवार तय कराने के लिए राजनीतिक दलों को बाध्य नहीं करती है। जबकि सोशल मीडिया के वर्तमान युग में आम जनता के लिए यह बहुत सुविधाजनक हो गया है कि वह समय रहते हुए अपने मनोभावों का संदेश देकर मनपसंद प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारने के लिए राजनीतिक दलों को बाध्य कर सके। अगर ऐसी स्थिति में भी मतदाता अपनी भावनाओं को उजागर करके मनपसंद उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारने का और नापसंद उम्मीदवारों को चुनावी मैदान से हटाने का राजनीतिक दलों के आकांओं को संदेश देने में नाकामयाब रहते हैं तो इसके लिए राजनीतिक दलों को दोषारोपित करना बेमानी होगी। आमतौर हर चुनाव में देखा गया है कि जब राजनीतिक दल अपने-अपने उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतार देते हैं तब इस देश की आम जनता और मतदाता उनकी योग्यता और अयोग्यता पर चर्चाएं करना प्रारंभ करते हैं और ना पसंद उम्मीदवार को मैदान में उतारने पर राजनीतिक दलों पर दोषारोपण करते नजर आते हैं। लेकिन सच्चाई तो यह है कि अगर आम जनता और मतदाता अपने पसंदीदा और नापसंद उम्मीदवारों की चर्चा का सन्देश मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए समय रहते राजनीतिक दलों के आकांओं तक पहुंचाने का काम कर दें तो शायद चुनावी मैदान में प्रत्याशी उतारने से पहले राजनीतिक दल भी जन भावनाओं के अनुरूप प्रत्याशी उतारने के लिए मजबूर हो जाएं। अगर फिर भी कोई राजनीतिक दल जन भावनाओं के विरुद्ध उम्मीदवार थोपने का प्रयास करता है तो ऐसे राजनैतिक दलों के प्रत्याशियों को निश्चित रूप से जनता विरोध का आइना दिखा सकती है। लेकिन यह जानते हुए भी कि लोकतंत्र में असली ताकत जनता के पास होती है फिर भी न जाने क्यों पसंदीदा और जनप्रिय उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारने का संदेश सही वक्त पर देने में आम जनता कतराती है। शायद यही एक वजह है कि राजनीतिक दल कई बार नापसंद उम्मीदवारों को जनता पर थोप देते हैं। नागर प्रमुख ने आम जनता को आगाह करते हुए कहा कि आप जिस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं उस क्षेत्र में अपना मनपसंद उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारने के लिए और ना पसंद उम्मीदवार को चुनावी मैदान से हटाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया अथवा सोशल मीडिया के माध्यम से राजनीतिक दलों को अभी से जन संदेश देना प्रारंभ करें ताकि राजनीतिक दल जन भावनाओं का आदर करते हुए लोकप्रिय उम्मीदवार मैदान में उतारने के लिए बाध्य हो सकें। अन्यथा “फिर पछतावा होत क्या, जब चिड़ियां चुग गईं खेत।”
(कर्मवीर नागर प्रमुख)