लद्दाख में चीन के ’72’ मिलिट्री सेटेलाइट की दादागिरी खत्म होगी
‘चंद्रयान-3’ की सफलता, भारत के लिए कई मायनों में एक बड़े बदलाव का प्रतीक बनेगी। विकास की नई राहें खुलने के अलावा ‘चंद्रयान-3’ की कामयाबी, बॉर्डर की सुरक्षा के मोर्चे पर भी काफी मददगार साबित होगी। लद्दाख व दूसरे क्षेत्रों में चीन ने बॉर्डर पर नजर रखने और भारतीय सेना की गतिविधियों का पता लगाने के लिए 72 ‘मिलिट्री’ सेटेलाइट छोड़ रखे हैं। ‘चंद्रयान-3’ की सफलता के बाद ड्रैगन की दादागिरी खत्म की जा सकेगी। शत्रु राष्ट्र की हरकत काबू में रहेगी। स्पेस कमीशन के सदस्य डॉ. किरण कुमार ने बताया कि चंद्रयान की सफलता के बाद, चीन जो बहुत कम अंतराल पर बॉर्डर के किसी न किसी हिस्से में घुसपैठ का प्रयास करता रहता है, उसकी सेना की मिनट-टू-मिनट मूवमेंट का पता चल सकेगा। भारत, चीन को अपनी क्षमता दिखा सकता है। पाकिस्तान और दूसरे देशों से लगती सीमा पर भी सटीक निगरानी हो सकेगी। डॉ. किरण कुमार ने बताया, भारत-चीन सीमा पर सर्विलांस करने में चंद्रयान 3, बहुत मददगार साबित होगा। भारत चीन सीमा पर कुछ वर्षों से घुसपैठ की गतिविधियां बढ़ रही हैं। चीन की सेना के भारतीय क्षेत्र में आने की खबरें आती रहती हैं। पिछले दिनों लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने चीन से लगती सीमा पर पेट्रोलिंग पॉइंट्स को लेकर केंद्र सरकार से कई सवाल पूछे थे। उन्होंने पूछा, क्या चीन बॉर्डर पर 65 में से 26 पेट्रोलिंग पॉइंट्स से भारत ने अपना अधिकार खो दिया है। क्या ‘बफर’ जोन भी भारत की जमीन में बने हैं। इस वर्ष जनवरी में आयोजित डीजीपी-आईजीपी सम्मेलन में प्रस्तुत किए गए एक विस्तृत सिक्योरिटी रिसर्च पेपर में भारत के क्षेत्र पर चीन के अवैध कब्जे जैसी स्थिति सामने आई थी। मनीष तिवारी ने लोकसभा में उसी सम्मेलन का हवाला देते हुए पूछा था कि मई 2020 से पहले भारत सभी 65 पेट्रोलिंग पॉइंट्स पर पेट्रोलिंग करता था। गलवान में मई 2020 के दौरान ही भारत के 20 बहादुरों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। चीन, भारत को यह तथ्य स्वीकार करने के लिए मजबूर करता है कि इन क्षेत्रों में लंबे समय से आईएसएफ या नागरिकों की उपस्थिति नहीं देखी गई है। कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, जो कई दिनों तक लद्दाख में रहे हैं, उन्होंने भी चीन द्वारा घुसपैठ करने का आरोप लगाया है। राहुल ने कहा है कि स्थानीय लोग जिस जगह पर अपने पशु चराने जाते थे, अब वहां नहीं जा सकते। कांग्रेस पार्टी का यह आरोप भी रहा है कि 2020 की गलवान की घटना के बाद दोनों देशों के बीच जो बफर जोन बना है, वह भारत के हिस्से में बना है। भारत से लगते बॉर्डर पर चीन ने उच्च तकनीक वाले उपकरण लगा रखे हैं। वह 72 सेटेलाइट के जरिए बॉर्डर पर सर्विलांस कर रहा है। भारत की ओर से उसके किसी भी तरह के दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब दिया जाता है। इंडियन स्पेस एसोसिएशन के डीजी ले.जनरल (रि) एके भट्ट ने एक सेमीनार में कहा था, चीन से लगती सीमा पर भी बड़ी संख्या में ऐसे ड्रोन की उपस्थिति बताई गई है, जिन्हें बिना दूरबीन के देखना संभव नहीं होता। दुश्मन के ‘ड्रोन’ का मुकाबला करने के लिए भारत को भी वैसी ही तकनीक इस्तेमाल करनी होगी। आज स्पेस डोमेन का संघर्ष है। परंपरागत लड़ाई के तरीकों की जगह आज 3डी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, 5जी और क्वांटम तकनीक ने ले ली है। निजी सेटेलाइट का जमाना आ चुका है। मौजूदा समय में 92 देशों ने स्पेस में अपने सेटेलाइट उतार दिए हैं। खाड़ी देशों ने भी पैसे के बल पर यह स्थिति हासिल कर ली है। ‘इसरो’ आत्मनिर्भरता की राह पर है। मिलिट्री पॉजिशन, स्नूपिंग या आतंकियों की मदद में ड्रोन का प्रयोग होता है। चीन अपने मिलिट्री ड्रोन के जरिए जल, थल और वायु सटीक सर्विलांस करता है। इसके लिए उसने 72 सेटेलाइट तैयार किए हैं। युद्ध पोतों पर उसकी नियमित नजर रहती है। ऐसी स्थिति में चंद्रयान 3 की सफलता बहुत मायने रखती है। पूर्व वैज्ञानिक एवं प्रमुख रेडियो कार्बन डेटिंग लैब, बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान, लखनऊ, डॉ. सीएम नौटियाल के मुताबिक, चंद्रयान 3 मिशन की सफलता से ‘स्पिन ऑफ’ यानी कई तरह की दूसरी टेक्नीक विकसित होंगी। उद्योगों में उन वस्तुओं और तकनीक का भरपूर इस्तेमाल होता है। नए पदार्थ, यूनिट और सॉफ्टवेयर आदि विकसित होते हैं। नासा ने भी इस तरह की सफल लॉंचिंग के बाद विभिन्न उपकरणों और तकनीक का उपयोग उद्योगों में किया है। इसकी सफलता पर हर कोई गर्व करेगा। लॉंचिंग क्षमता, पे लोड उपलब्धि और सुरक्षा के मोर्चे पर, भारत की ताकत बढ़ जाएगी। भारत की मिसाइल तकनीक में एक बड़ी मदद मिलेगी। उपग्रह भेजने के लिए भारत की क्षमता बढ़ेगी। मौसम की सटीक भविष्यवाणी करना आसान होगा। भारी उपग्रह भेजने की क्षमता में अपेक्षित सुधार आएगा। इसके अलावा अंतरिक्ष की मैंपिंग के क्षेत्र में भी बड़े परिवर्तन देखने को मिलेंगे। प्राकृतिक संसाधनों की मैपिंग भी आसान हो जाएगी। चंद्रमा पर हीलियम-3 की मौजूदगी है। इसकी अच्छी खासी क्षमता है। अगर इसका इस्तेमाल हुआ तो दुनिया में ऊर्जा का संकट टल जाएगा। डॉ. सीएम नौटियाल बताते हैं, परमाणु रिएक्टरों में हीलियम-3 का इस्तेमाल करने से रेडियोएक्टिव ‘कचरा’ पैदा नहीं होता। सूरज से आने वाली किरणें ‘सौर पवन’, चंद्रमा की मिट्टी में घुसी हुई हैं। इसके चलते वहां हीलियम-3 की मात्रा बढ़ती रहती है। हीलियम-3, नाभकीय संलयन के लिए इंधन का काम करेगा। यह हीलियम-4 से ज्यादा कुशल होता है। इसके जरिए ज्यादा एनर्जी विकसित होती है। पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय तापनाभिकीय प्रायोगिक संयंत्र ‘आईटीईआर’ का प्रयोग हो रहा है। इसमें नाभकीय संलयन पर काम चल रहा है। इसके माध्यम से प्रदूषण मुक्त ऊर्जा पैदा हो सकेगी। भले ही उसमें एक दो या दो दशक का समय लगे। दुनिया के तमाम देशों की इस ओर निगाहें हैं। ‘चंद्रयान-3’ की सफलता का भू राजनीतिक महत्व है। इसकी कामयाबी के बाद हमें दूसरे ग्रहों पर जाने के लिए एक स्टेशन मिल जाएगा। अभी तक पृथ्वी से ही यह सब होता है। चंद्रयान 3 की कामयाबी हमें पृथ्वी के बाहर एक स्टेशन बनाने का अवसर देगी। चंद्रमा पर एक प्रयोगशाला बना सकेंगे। साथ ही चंद्रयान 3 की कामयाबी, देश को हैवी मिसाइल दागने के लिए एक विश्वसनीय प्लेटफार्म उपलब्ध कराएगी। जब भारत में ‘पे लोड’ की क्षमता बढ़ेगी तो दुनिया के कई देश अपने उपग्रहों की लॉंचिंग के लिए भारत से संपर्क करेंगे। इससे भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कमाने के नए दरवाजे खुल जाएंगे।