अमर शहीद भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु का बलिदान हमेशा याद रखेगा हिन्दुस्तान – अभिनेता मोहित त्यागी
गाजियाबाद । आज देश को आजादी दिलवाने में अहम भूमिका का निर्वहन करने वाले मां भारती के अमर सपूत शहीद भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु का बलिदान दिवस है, देश की आजादी के लिए अपना जीवन तक अर्पित कर देने वाले मां भारती के सभी वीर सपूतों का ऋण हम भारतवासी कभी नहीं उतार सकते हैं। वैसे तो देश की आजादी की लड़ाई के यज्ञ में ना जाने मां भारती के कितने वीर सपूतों ने अपना जीवन स्वाहा करके अनमोल योगदान दिया है, कई ऐसे स्वतंत्रता सेनानी हुए जो वर्षों तक जेल की सलाखों के पीछे बंद रहे हैं, बहुत सारे नाम-अनाम लोगों ने जंग ए आजादी में अपना अलग-अलग प्रकार से योगदान देकर के देश की आजादी की राह को सरल बनाने का कार्य किया था। वैसे तो हर क्रांतिकारी व स्वतंत्रता सेनानी हम सभी भारतवासियों के लिए पूज्यनीय है, लेकिन आज महान देशभक्त शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की कुर्बानी को याद करने का विशेष दिन है। 23 मार्च ही वो दिन था जब ये मां भारती के तीनों सपूत हंसते-हंसते देश के आजादी के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए थे। 23 मार्च 1931 की रात भगत सिंह को सुखदेव और राजगुरु के साथ लाहौर षडयंत्र के आरोप में तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत ने लाहौर में गुपचुप ढंग से फांसी देने का कार्य किया दिया था। आज यही वजह है कि हम लोग हर वर्ष 23 मार्च का दिन इन तीनों वीर शहीदों की याद में शहीदी दिवस के तौर पर मनाने का कार्य करते हैं।
देश की आजादी की लड़ाई में तीनों ऐसे क्रांतिकारी थे जिनके विचार और व्यक्तित्व आज भी देश के करोड़ों युवाओं को प्रेरणा देने का कार्य करते हैं, आज हम सभी लोगों को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम महान देशभक्त शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की कुर्बानी को याद करते हुए उनको केवल औपचारिकता के लिए श्रद्धांजलि देना का कार्य ना करें, बल्कि दिल से उनका सम्मान करते हुए, उनके दिखाए मार्ग पर चलने का कुछ तो प्रयास करें, आज जरूरत है कि हम जिस भी क्षेत्र से जुड़े हुए हैं उस क्षेत्र में भारत को विश्व में सशक्त बनाने के लिए अपना योगदान देने का कार्य करें। आज जिस तरह से देश में जाति-धर्म के आधार पर लोगों बांटने का कार्य हो रहा है, उस समय हमकों भगत सिंह को पढ़ना होगा, क्योंकि शहीद-ए-आज़म भगत सिंह एक देशभक्त क्रांतिकारी होने के साथ ही साथ एक गंभीर अध्येता और विचारक लेखक भी थे, जिनकी शहादत को सच्ची श्रद्धांजलि उनके विचारों को अपनाकर ही दी जा सकती है, आज के युवाओं को उनके विचारों को पढ़कर उस पर मनन अवश्य करना चाहिए, आज के माहौल में जून 1928 के “किरती’ में प्रकाशित भगत सिंह के “सांप्रदायिक दंगे और उनका इलाज” वाले इस लेख में संदर्भ भले ही उस समय का हो, लेकिन इसमें व्यक्त उनके विचार राष्ट्रीय एकता, अखंडता की दृष्टि से आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। जिनको हम लोगों को समझना होगा और प्यारे देश की एकता, अखंडता व भाईचारे को बरकरार रखते हुए भारत को विश्वगुरु बनाने के मार्ग पर ले जाने का सकारात्मक प्रयास करना ही, मां भारती के सभी वीर सपूतों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।