सहसवान । मां चाहे किसी भी धर्म से जुड़ी हो, किसी भी देश की हो लेकिन सारी माँ एक जैसी ही होती है , वो चाहे जितना मर्जी मारे , डांटे लेकिन वो मां जो ठहरी , बिना मतलब के अपनी औलाद को चाहने वाली इंसान “मां” । एक बूढ़ी माँ पुरानी सब्जी मंडी के आसपास भीख मांगकर अपना गुजारा कर रही थी । लेकिन बीते कुछ दिनो से वह बीमार है और सब्जी मंडी मे एक दुकान के चबूतरे पर पड़ी भूंखी प्यासी तड़प रही है कोई पानी देने वाला भी नहीं है । यह कहानी भी एक ऐसे ही वृद्ध मां की है जिसकी लालची औलाद ने शायद उनको सड़को पर बिना सहारे लाकर खड़ा कर दिया । शायद एक इंसान तो अपनी मां के साथ ऐसा नहीं कर सकता । हां , वो कोई लालची हेवान ही होगा जिसने अपने वृद्ध मां को बेघर कर घर से निकाल दिया होगा । कई बार बूढ़ी माँ से बात करने की कोशिश की कोन हो कहाँ से आई हो यहाँ कब से हो लेकिन वह बोल नहीं पाई । इस वृद्ध अवस्था में उनका कोई संतान भी नही है, या नही कोई जानकारी नहीं दे सकी । आसपास के दुकानदारों से मिली जानकारी के मुताबिक ये बोल नहीं पा रही है । मदर्सडे पर फेसबुक पर लंबी चौड़ी हाँकने वाले समाजसेवी ,गरीबों के मसीहा बनने वाले छुटभेय्या नेता ये सब नदारद हैं । एक बूढ़ी माँ गर्मी से बेहाल हाथ मे एक गत्ते का दुकडा लिए गरम फर्श पर तड़प रही है । मंडी रहने वाले लोग भी तमाशीन बने हुए है ।