बीएलओ ड्यूटी के दबाव में सहायक अध्यापक सर्वेश गंगवार की संदिग्ध मौत, सिस्टम पर उठे सवाल

बरेली। भोजीपुरा ब्लॉक और थाना इज्जतनगर क्षेत्र के ग्राम परधौली में तैनात सहायक अध्यापक एवं बीएलओ सर्वेश कुमार गंगवार की बुधवार को ड्यूटी के दौरान स्कूल में अचानक हार्ट अटैक से मौत हो गई। घटना ने पूरे शिक्षा विभाग के साथ प्रशासनिक तंत्र पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। शिक्षक सर्वेश पर पिछले कई दिनों से बीएलओ की लगातार फील्ड ड्यूटी का अत्यधिक दबाव था।

अधिकारी पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे और घटनाक्रम की जानकारी ली। वहीं सीएमओ कार्यालय ने प्राथमिक जांच में मौत का कारण हार्ट अटैक बताया है। एसडीएम सदर प्रमोद कुमार ने बताया कि सर्वेश बरेली के कर्मचारी नगर में रहते थे, जबकि मूल निवास शाहजहांपुर के कतरा गांव के रहने वाले है। वर्तमान में बरेली के कर्मचारी नगर में रहते हैं सबसे दुखद पहलू यह है कि सर्वेश की पत्नी प्रभा की सितंबर 2025 में कैंसर से मौत हो चुकी थी। तब से वे अपने पांच साल के जुड़वा बच्चों की अकेले देखभाल कर रहे थे। परिजनों का कहना है कि पारिवारिक परिस्थितियों के बावजूद प्रशासन ने उनकी मानसिक स्थिति पर ध्यान नहीं दिया और लगातार बीएलओ ड्यूटी में लगाए रखा। मृतक के भाई योगेश कुमार गंगवार ने घटना को लापरवाही का परिणाम बताते हुए गैर-शैक्षिक कार्यों का बोझ कम करने, अध्यापक होते हुए भी सर्वेश को लगातार बीएलओ की फील्ड ड्यूटी में लगाया जाता रहा। मतदाता सूची पुनरीक्षण और घर-घर सत्यापन जैसे कार्यों ने उनकी परेशानी बढ़ा दी थी। सहकर्मियों का कहना है कि पत्नी की मौत और बच्चों की जिम्मेदारी के बावजूद प्रशासन ने उनकी स्थिति पर ध्यान नहीं दिया।
पत्नी की कैंसर से मौत के बाद उनके मानसिक हालात पर प्रशासन ने ध्यान क्यों नहीं दिया? छोटे बच्चों की जिम्मेदारी के बावजूद उन्हें निरंतर फील्ड ड्यूटी में क्यों रखा गया? घटना के बाद शिक्षक संगठनों में नाराजगी है। संगठनों का कहना है कि गैर-शैक्षिक कार्यों का बोझ कई शिक्षकों को मानसिक रूप से प्रभावित कर रहा है और सर्वेश की मौत लापरवाही का नतीजा है। वे मांग कर रहे हैं कि शिक्षकों पर बीएलओ जैसी अतिरिक्त ड्यूटी का दबाव कम किया जाए, मृतक के बच्चों के लिए सरकारी सहायता दी जाए, संबंधित अधिकारियों की भूमिका की जांच हो। परिवार का कहना है कि लगातार ड्यूटी के दबाव ने उन्हें मानसिक रूप से तोड़ दिया था। यह घटना एक बार फिर दिखाती है कि सरकारी कर्मचारियों, खासकर शिक्षकों पर अतिरिक्त कार्यभार का बोझ किस तरह उनकी निजी जिंदगी पर भारी पड़ रहा है।

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