बदायूं। गिन्दो देवी महिला महाविद्यालय में राष्ट्रीय सेवा योजना के अंतर्गत राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ मनाई गई। कार्यक्रम की शुरुआत प्रो. सरला देवी चक्रवर्ती ने माँ सरस्वती को पुष्प अर्पित करके की। उन्होंने छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि भारत आज अपने राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने का जश्न मनाकर एक ऐतिहासिक सांस्कृतिक मील का पत्थर साबित हो रहा है। यह एक ऐसा गीत है जिसने अपनी भक्ति, एकता और देशभक्ति के संदेश से पीढ़ियों को प्रेरित किया है। वंदे मातरम साहित्य से आगे बढ़कर भारत की राष्ट्रीय पहचान का एक शक्तिशाली प्रतीक बन गया। एनएसएस कार्यक्रम अधिकारी अवनीशा वर्मा ने वंदे मातरम की ऐतिहासिक यात्रा पर चर्चा की उन्होंने कहा कि वंदे मातरम पहली बार साहित्यिक पत्रिका बंगदर्शन में 7 नवंबर, 1875 को प्रकाशित हुआ था और बाद में इसे 1882 में प्रकाशित आनंदमठ में शामिल किया गया था। यह गीत पहली बार रवींद्रनाथ टैगोर ने 1896 में कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में गाया था। बंगाल में स्वदेशी और विभाजन-विरोधी आंदोलनों के दौरान इसका राजनीतिक महत्व उभरा, जब वंदे मातरम का नारा पहली बार 7 अगस्त 1905 को कोलकाता में हजारों छात्रों द्वारा सार्वजनिक रूप से लगाया गया था। गीत की अपील जल्द ही बंगाल से बाहर फैल गई, पूरे भारत में बढ़ते राष्ट्रवादी आंदोलन के लिए एक एकीकृत गान बन गया। अंत में शिक्षकों और छात्राओं ने वंदे मातरम गाया. डॉ निशा साहू, डॉ शिल्पी तोमर, डॉ अनीता सिंह उपस्थित थे।