बदायूं। मौर्य भवन जवाहरपुरी में स्व.वीरेन्द्र कुमार सक्सेना की स्मृति में कविसम्मेलन और सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। काव्यदीप हिन्दी साहित्यिक संस्थान द्वारा यह लगातार चौथा आयोजन है। बरेली के मशहूर कवि हिमांशु श्रोत्रिय मुख्य अतिथि, सुप्रसिद्ध कवि–शायर विनय साग़र जायसवाल अध्यक्ष और जानी मानी कवयित्री सत्यवती सिंह सत्या विशिष्ट अतिथि थीं। कार्यक्रम का संचालन कवि सुनील शर्मा समर्थ एवं शैलेन्द्र देव मिश्र ने किया। सर्वप्रथम अतिथियों द्वारा सरस्वती मां के आगे दीप प्रज्ज्वल कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। तत्पश्चात कवयित्री सत्यवती द्वारा सरस्वती मां की सरस वंदना प्रस्तुत की गई। इसी शृंखला में अध्यक्ष द्वारा हृदयस्पर्शी गीत ग़ज़ल सुनाए गए,”ज़िन्दगी चैन से गुज़र जाये,बोझ दिल का अगर उतर जाये। तू है दरिया तो यह ख़याल भी रख, कोई प्यासा यहाँ न मर जाये।।” हिमांशु श्रोत्रिय जी ने फरमाया,”जो कँगूरों के कुलों के आत्मज हों,नींव का इतिहास क्या खाकर गढेंगे। जो स्वयम् ही स्वर्णमृग बन कर विचरते, त्याग के दुष्कर ककहरे क्या पढ़ेंगे।” पीलीभीत से हास्यकवि उमेश त्रिगुणायत ने पढ़ा,”इन आँखों में पसरी नमी देख लेते, औ पैरों से खिसकी ज़मी देख लेते। हमें टोंकने की भी क्या घसघसी थी, तभी टोंकते जब कमी देख लेते।” बदायूं से ओजस्वी जौहरी ने सुनाया,”मैं बेचता हूँ आईने अंधों के शहर में, कंघे बना रहा हूँ गंजों के शहर में।” बरेली से कवयित्री मिथलेश राकेश ने फरमाया,”जिनको भी माँ-बाप की, सेवा आई रास। बरस रही उन पर कृपा, वे ईश्वर के ख़ास।।” बदायूं से राजवीर सिंह ने पढ़ा,”ऑंखों में लाज बातों में रसधार दीजिए, सब अपनी बेटियों को ये संस्कार दीजिए।” कवि अमन मयंक शर्मा ने सुनाया,”चटक धूप सी जिंदगी,नही दूर तक छाॅंव। बिना पिता जी आपके,जलते मेरे पाँव।।” अभिषेक अग्निहोत्री ने कहा,”दांव लगा दी है मैंने तनहाई तक,कोई तो पहुंचे दिल की गहराई तक। एक क़फ़स है दुनिया जिसमें क़ैद सभी, जीना ही पड़ता है यहां रिहाई तक।” राज शुक्ल ग़ज़लराज ने पढ़ा,”बच्चों के बिना एक पल भी रह नहीं सकता, बच्चों पे कोई कष्ट भी वो सह नहीं सकता” इसके अलावा कवि पत्रकार शमशुद्दीन शम्स, दीपक मुखर्जी, अचिन मासूम, दीप्ति सक्सेना, मंजु सक्सेना, आलोक शाक्य, रामस्वरूप गंगवार मौज आदि उपस्थित रहे।