नई दिल्ली। भाजपा को शिकस्त देने के लिए आम आदमी पार्टी (आप) व कांग्रेस में बढ़ी नजदीकी जमीन पर काम नहीं कर सकी। दोनों दलों का गठबंधन दिल्ली में धड़ाम हो गया। इसने दिल्ली की सत्ता पर 10 साल से काबिज आप को लगातार तीसरी बार बड़ा झटका दिया। वहीं, कांग्रेस भी इस बीच वापसी नहीं कर सकी। दोनों राजनीतिक पार्टियां मिलकर वोटर को समझाने में नाकाम रहीं। इससे वे अपने वोट दूसरे दल को शिफ्ट करने में नाकाम रहे। दो बड़े नेताओं की कैद व विवादों में रहा आप का चुनावी अभियान सिरे नहीं चढ़ सका। एक साथ कई कारकों ने मिलकर दिल्ली की सातों सीटों को लगातार तीसरी बार भाजपा की झोली में डाल दिया।कथित शराब घोटाले में आप के कई बड़े नेता जेल में बंद हैं। मनीष सिसोदिया व सत्येंद्र जैन लंबे समय से तिहाड़ में हैं। अक्तूबर में सांसद संजय सिंह को भी ईडी ने गिरफ्तार कर लिया। चुनावों के एलान के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी तिहाड़ पहुंच गए। शुरुआती दौर में इसका असर आप के प्रचार अभियान पर दिखा। मुख्यमंत्री की पत्नी सुनीता केजरीवाल को प्रचार अभियान की कमान अपने हाथ में लेनी पड़ी।जब संजय सिंह और अरविंद केजरीवाल जेल से बाहर आए तो ऐसा लग रहा था कि आप की मुहिम रंग दिखाएगी, लेकिन इसी बीच आप सांसद स्वाति मालीवाल का मामला सामने आ गया। मुख्यमंत्री आवास के अंदर मालीवाल से मारपीट के आरोपों पर पूरी पार्टी रक्षात्मक मुद्रा में आ गई। बड़े नेता इस मसले पर जगह-जगह सफाई देते दिखे। अमूमन आक्रामक रहने वाले केजरीवाल ने भी इस पर चुप्पी साध ली। इसके उलट भाजपा ने इसे महिला सुरक्षा का मुद्दा बना लिया। इससे आप के अभियान को धार नहीं मिल सकी।केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद आप ने जेल का जवाब वोट से कैंपेन चलाया। सलाखों के पीछे केजरीवाल को दिखाकर पार्टी को भरोसा था कि उसके पक्ष में सहानुभूति की लहर चलेगी और दिल्ली में 2-3 सीटें हासिल करने में आप कामयाब रहेगी, लेकिन हर दिन उठ रहे नए विवादों के बीच यह अभियान भी कारगर नहीं हो सका। ऐसे में आप एक भी सीट हासिल नहीं कर सकी।वोटों का बिखराव रोकने के लिए आप ने पहली बार कांग्रेस से सीटों का समझौता किया। उम्मीद थी कि एकमुश्त भाजपा विरोधी मत मिलने से दोनों का फायदा होगा, लेकिन गठबंधन को न तो जनता ने स्वीकार किया और न ही कई पार्टी नेताओं ने। दोनों दलों के जमीनी कार्यकर्ता और कई बड़े नेता भी इस गठबंधन को लेकर सहज नहीं थे। यहां तक कि तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने विरोध स्वरूप इस्तीफा दे दिया और अपने समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए।