आजम के गढ़ को भेदने का लोधी को मिला इनाम, सपा नेता के भी करीबी रहे… बसपा से भी लड़े थे चुनाव

रामपुर। 2022 के लोकसभा उपचुनाव में घनश्याम सिंह लोधी ने सपा प्रत्याशी आसिम राजा को सीधे मुकाबले में 42192 मतों से हराकर जीत दर्ज की थी। पार्टी ने उन्हें इस जीत का इनाम देते हुए फिर से प्रत्याशी बनाया है। उपचुनाव में मिली जीत भाजपा की 1991 के बाद दूसरी सबसे बड़ी जीत थी।1991 में भाजपा प्रत्याशी राजेंद्र शर्मा ने कांग्रेस प्रत्याशी जुल्फिकार अली को 49,809 मतों से हराया था।भाजपा अभी तक रामपुर लोकसभा सीट से चार बार चुनाव में बाजी मार चुकी है। जिसमें घनश्याम लोधी ने उपचुनाव में सपा को सीधे मुकाबले में 42,192 वोटों के अंतर से हराकर संसद पहुंचे थे।आजम खां के गढ़ में सीधे चुनाव में उन्होंने सपा के प्रत्याशी आसिम रजा को हराया था। इस जीत के साथ वो पार्टी का एक बड़ा चेहरा बनकर उभरे हैं, यही कारण है दोबारा पार्टी ने उन पर भरोसा जताया है। 1991 में भाजपा प्रत्याशी राजेंद्र शर्मा ने पहली बार रामपुर लोकसभा सीट पर कमल खिलाया। उन्होंने कांग्रेस के जुल्फिकार अली खां उर्फ मिक्की मियां को 49,809 वोटों से हराकर सबसे बड़ी जीत दर्ज की थी। 1998 में मुख्तार अब्बास नकवी ने कांग्रेस की प्रत्याशी बेगम नूरबानो को 4966 वोट के बेहद करीबी मुकाबले में हराया था। वहीं 2014 लोकसभा चुनाव में डॉ. नेपाल सिंह ने सपा के नसीर अहमद खां को 23,435 वोट से हराया था।2019 के लोकसभा चुनाव में यहां आजम खां ने जीत दर्ज की थी, लेकिन 2022 में आजम खां के इस्तीफा देने के बाद उपचुनाव में घनश्याम लोधी पर भाजपा ने दांव खेला था। जिसमें घनश्याम लोधी सौ में सौ अंक लेकर पास हुए थे। रामपुर लोसभा सीट पर 31 साल बाद दूसरी बड़ी जीत मिली तो 2024 चुनाव के लिए पार्टी ने फिर से घनश्याम लोधी पर भरोसा जताया।रामपुर में मुस्लिम मतदाता सबसे ज्यादा हैं, लेकिन लोधी, सैनी और दलित मतदाताओं की संख्या भी काफी है। कहा जाता है कि घनश्याम लोधी इन जातियों पर अच्छी पकड़ रखते हैं। इसके अलावा अन्य ओबीसी और सामान्य वर्ग ने भी भाजपा का साथ दिया। कांग्रेस नेता और 2019 लोकसभा में कांग्रेस के प्रत्याशी रहे नवेद मियां ने भी भाजपा के समर्थन का एलान किया था। ऐसे में उनके समर्थक भी भाजपा के लिए प्रचार कर रहे थे। घनश्याम को इसका फायदा मिला। वहीं, अखिलेश यादव ने उपचुनाव में प्रचार से दूरी बना ली थी, जिसका असर नतीजों में देखने को मिला।रामपुर की सरजमीं शुरुआत से ही राजनीति का बड़ा केंद्र रही है। रामपुर से लोकसभा का पहला चुनाव अबुल कलाम आजाद ने लड़ा था और जीतने के बाद वह देश के पहले शिक्षा मंत्री भी बने थे। बाद के वर्षों में आजम खां ने रामपुर की सियासत में अलग ध्रुव बनाया, जबकि मुख्तार अब्बास नकवी, जयाप्रदा जैसे नेता और अभिनेताओं को भी रामपुर ने संसद तक का सफर कराया। यही कारण है रामपुर सीट पर देशभर की नजरें रहती हैं।भोट क्षेत्र के खैरुल्लापुर निवासी 57 वर्षीय घनश्याम लोधी पुराने राजनीतिज्ञ रहे हैं। रामपुर के लिए वो बेहद पुराने हैं। उनकी राजनीति भी भाजपा से ही शुरू हुई थी। तब वह उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेहद करीबी थे। साथ ही पार्टी के जिलाध्यक्ष भी रहे। कल्याण सिंह ने भाजपा छोड़कर राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाई तो घनश्याम लोधी भी उसमें शामिल हो गए। 2004 में घनश्याम लोधी को इसका इनाम मिला। राष्ट्रीय क्रांति पार्टी ने सपा के साथ गठबंधन करके घनश्याम को बरेली-रामपुर एमएलसी सीट से अपना प्रत्याशी बनाया, वह जीत भी गए।1999 में वह भाजपा छोड़कर बसपा में शामिल हो गए और लोकसभा चुनाव भी लड़ा, लेकिन जीत नहीं पाए। तब घनश्याम लोधी तीसरे नंबर पर रहे। इसके बाद भाजपा में चले गए, जबकि 2009 लोकसभा चुनाव के दौरान फिर से बसपा का दामन थाम लिया। बसपा ने उन्हें रामपुर से उम्मीदवार बनाया, लेकिन वह जीत नहीं पाए। तब समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी और अभिनेत्री जयाप्रदा ने जीत हासिल की थी। चुनाव में मिली हार के बाद 2011 में घनश्याम एक बार फिर सपा में शामिल हो गए।रामपुर में घनश्याम लोधी ने सपा के पक्ष में खूब माहौल बनाया। 2012 में उन्होंने काफी मेहनत भी की। इसके बाद 2014 लोकसभा चुनाव और फिर 2019 लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने सपा के लिए प्रचार किया। घनश्याम को आजम खां का करीबी माना जाता था। हालांकि, 2022 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लोधी ने सपा छोड़कर भाजपा ज्वाइन कर ली। उपचुनाव में टिकट मिला तो उन्हें जीत के साथ भाजपा रास आ गई।