बिल्सी। तहसील क्षेत्र के गांव दिधौनी में चल रही श्रीमदभागवत कथा के तीसरे दिन कथावाचक ममता शाक्य ने श्रवण कुमार की कथा सुनाते हुए कहा कि जब वह अपने नेत्रहीन माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर चार धाम की यात्रा कराने निकले थे। कावड़ के एक पलड़े में मां को बैठाया और दूसरी तरफ पिता को बैठाया और चार धाम की यात्रा करने के लिए चल पड़े। माता-पिता के प्रति लगाव और स्नेह के आगे श्रवण को कांवड़ का जरा भी भार महसूस नहीं हुआ। जब अयोध्या के जंगलों में पहुंचते ही माता-पिता को प्यास लगी तो श्रवण कांवड़ को रखकर सरयू नदी से पानी लाने चले गए। उस समय अयोध्या के राजा दशरथ शिकार पर निकले हुए थे। जब श्रवण कुमार नदी से जल लेने लगे तो उनकी आहट सुनकर राजा दशरथ को लगा कि नदी के किनारे पर कोई हिरन है और उन्होंने तीर चला दिया और तीर सीधे जाकर श्रवण के हृदय में लगा। जैसे ही श्रवण कुमार को तीर लगा उनकी चीख निकल गई और मनुष्य की चीख सुनते ही राजा दशरथ को अनहोनी का अहसास हो गया। उन्हें समझ आ गया तीर हिरन को नहीं बल्कि किसी और को लगा है। तलाश करने के बाद उन्हें श्रवण कुमार नदी के किनारे मरणासन्न अवस्था में मिले। जिसके बाद श्रवण कुमार के माता-पिता फूटफूटकर रोने लगे। राजा दशरथ अपने इस कृत्य के लिए क्षमा मांगने लगे। तब श्रवण कुमार के दुखी पिता राजा दशरथ को शाप देते हैं कि जिस तरह मैं पुत्र वियोग से मर जाऊंगा, राजन तुम भी वैसे ही पुत्र वियोग में तड़पोगे। यह कहकर श्रवण के माता-पिता तत्काल अपने शरीर को त्याग दिए। कथावाचक ने कहा कि कई वर्षों के बाद जब भगवान राम का राज्याभिषेक होता है तो कैकेयी को यह कतई स्वीकार नहीं था कि उनके पुत्र भरत की बजाए राम अयोध्या के राजा कहलाएं। फिर कैकेयी वचन के रूप से राजा दशरथ से राम के लिए 14 वर्षों का वनवास मांग लेती हैं। भगवान राम, लक्ष्मण और सीता के वनवास पर जाने के बाद राजा दशरथ भी शाप के कारण पुत्र वियोग में तड़पने लगते हैं और पुत्र वियोग में ही उनकी मृत्यु हो जाती है। इस मौके पर रामप्रकाश सिंह ठाकुर, कृष्णमुरारी, देवपाल, राधेश्याम, विवेक कुमार सिंह, लोकपाल शाक्य, रामगोपाल शाक्य, सुरेंद्र प्रजापति, मोहनलाल, संजीव, नेम कुमार ,मुन्नालाल, लीलाधर, यशपाल, सुमित शर्मा, नैना देवी, कोमल, प्रियांशी देवी, निकिता, अंशू देवी, शप्पी देवी, ज्योति रानी आदि मौजूद रही।