ठंडे बस्ते में पड़ी झोलाछाप मामले की जांच
- दोषी अधिकारी ने शासन को पत्र भेजकर स्वीकार की अपनी गलती
- फर्जी तरीके से योग, नेचरोपैथी डिप्लोमा धारकों का किया गया पंजीकरण
- भारतीय चिकित्सा परिषद ने माना अमान्य, डिप्लोमा धारकों नहीं है प्रैक्टिस की अनुमति
बदायू। प्रदेश में झोलाछाप डाॅक्टरों का मकड़जाल रोकने के लिए शासन ने स्वास्थ्य विभाग को कार्रवाई के लिए आदेशित किया था। इसके अनुपालन में सीएमओ ने अपंजीकृत डाॅक्टरों के खिलाफ विभिन्न थानों में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। शासन की इस मंशा पर क्षेत्रीय आयुर्वेदिक, यूनानी विभाग पलीता लगा रहा है। इस महकमे ने झोलाछापों को बचाने के मकसद से योगा व नेचरोपैथी डिप्लोपा धारकों को प्रैक्टिस करने की छूट दे दी। इस मामले में करोड़ों का गबन करने का आरोप है। फिलहाल जांच भी ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है।
एमपी सिंह और एमजेड अंसारी की शिकायत है कि सांठगांठ के तहत क्षेत्रीय आयुर्वेदिक, यूनानी अधिकारी ने झोलाछापों को कानूनी शिकंजे से बचाने की कोशिश की है। इसके लिए आर्थिक सांठगांठ कर उन्होंने योगा नेचरोपैथी डिप्लोमा धारकों को प्रैक्टिस की अनुमति दे डाली। इस मामले में डिप्लोमा धारकों से मोटी वसूली की गई है। नियम के खिलाफ योगा, नेचरोपैथी डिप्लोमा धारकों को चिकित्सा व्यवसाय की मान्यता दी गई।
मुहम्मद खालिद अहमद और अनस अंसारी ने सूचना के अधिकार का सहारा लेकर पूरे मामले की जानकारी चाही थी। इसके जवाब में क्षेत्रीय आयुर्वेदिक, यूनानी अधिकारी ने 17 चिकित्सकों की सूची जारी की। उसमें बताया गया कि योगा, नेचरोपैथी डिप्लोमा धारकों को चिकित्सा व्यवसाय करने का प्रमाण पत्र जारी किया गया है। इस मामले में खुद को बचाने के लिए गुमराह करके एक शासनादेश का हवाला भी दिया गया है, जो पूरी तरह से गलत है।
दूसरी तरफ शासन से भी इस मामले में सूचना चाही गई थी। प्रमुख सचिव चिकित्सा, रजिस्ट्रार बोर्ड ने 13 फरवरी 2020 को जनकारी दी कि योगा, नेचरोपैथी डिप्लोमा धारक को प्रदेश के भारतीय चिकित्सा परिषद में इन्हें पंजीकृत ही नहीं किया जाता है। इसलिए इन्हें चिकित्सा व्यवसाय की अनुमति देने का सवाल ही नही उठता। इसके बावजूद बदायूं में बडे पैमाने पर क्षेत्रीय आयुर्वेदिक, यूनानी अधिकारी कार्यालय में जमकर गोलमाल किया गया है। झोलाछापों को पुलिस, प्रशासन से बचाने का काम किया गया है।
इस मामले में जनसूचना कार्यकर्ता ने शासन से दोषियों कार्रवाई की मांग की। मुख्य सचिव ने सितंबर 2020 मे राजकीय आयुर्वेदिक कालेज बरेली के प्राचार्य प्रो. डी.के. मौर्य को जांच अधिकारी नामित कर रिपोर्ट मांगी। जांच अधिकारी को शिकायतकर्ताओं ने जरूरी दस्तावेज व बयान उपलब्ध कराए, लेकिन अभी तक जांच पूरी नहीं हुई है। हालांकि दोषी अधिकारी ने पत्रों को माध्यम से खुद अपनी गलती को स्वीकार किया है। इसके बावजूद जांच अधिकारी ने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। शिकायतकर्ताओं ने कमिश्नर समेत शासन के आला अफसरों से कार्रवाई की मांग की है।




















































































