बस्ती में प्यार की सनक दो हत्याओं तक पहुंची, समाज और युवा सदमे में
बस्ती में प्रेम संबंधों में बढ़ रही सनक और क्रूरता ने समाज को झकझोर कर रख दिया है। कभी जीवन का सबसे सुंदर और भावनात्मक अध्याय माना जाने वाला प्रेम अब खतरनाक अंजाम तक पहुंचने लगा है। बुधवार-बृहस्पतिवार की रात जिले में हुई दो घटनाओं ने लोगों को स्तब्ध कर दिया, जिनमें प्यार में अंधे युवा-युवतियों ने साथी को पाने या बचाने की सनक में हत्या तक कर डाली। इन घटनाओं का असर शादी की तैयारी कर रहे युवाओं में भी भय और असमंजस के रूप में देखा जा रहा है। जानकारों के अनुसार, अब युवा विवाह या निकाह से पहले संभावित जीवनसाथी की पूरी पड़ताल करने लगे हैं।
पहली वारदात परशुरामपुर के वेदीपुर गांव की है। यहां शादी के सिर्फ छह दिन बाद ही नवविवाहिता ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर 27 वर्षीय पति अनीस की हत्या करा दी। महिला अपने ननिहाल के प्रेमी से विवाह करना चाहती थी, लेकिन परिवार के विरोध के कारण ऐसा नहीं हो सका। इसपर दोनों ने खतरनाक योजना बनाई। गुरुवार रात बाजार से लौटते वक्त अनीस को बाइक सवार युवकों ने रास्ता पूछने के बहाने सिर में गोली मार दी। अस्पताल ले जाने पर उसकी मौत हो गई। पुलिस ने कुछ ही घंटों में पत्नी रुखसाना, प्रेमी रिंकू कन्नौजिया और वारदात में शामिल एक किशोर को गिरफ्तार कर लिया।
दूसरी घटना रुधौली में सामने आई। सिद्धार्थनगर के बांसी निवासी दिलीप अग्रहरि ने अपनी शादीशुदा प्रेमिका प्रीति मौर्य की हत्या कर दी। पूछताछ में पता चला कि प्रीति तीन बच्चों की मां थी और दिलीप से शादी का दबाव बना रही थी। गर्भवती प्रीति ने धमकी दी कि पेट में पल रहे बच्चे को दिलीप का बताकर उसे जेल भिजवा देगी। इस दबाव और डर में दिलीप ने उसे रुधौली बुलाया और हत्या कर दी। पुलिस ने आरोपी को घटनास्थल से ही हिरासत में ले लिया।
विशेषज्ञों का कहना है कि आज प्रेम भावनाओं की बजाय अधिकार, अवसाद और सनक का रूप लेता जा रहा है। मनोविज्ञानी डॉ. ए.के. दुबे के अनुसार, युवा भावनाओं में फैसले तो तुरंत ले लेते हैं, लेकिन उनके परिणामों को सहने की क्षमता कमजोर होती जा रही है। रिश्तों में संवाद की कमी, सोशल मीडिया और तनाव मिलकर विस्फोटक स्थिति पैदा कर रहे हैं।
काउंसलर डॉ. शैलजा मिश्रा का कहना है कि प्रेम में असफल होना जीवन की असफलता नहीं है। समस्या तब बनती है जब प्रेम को अधिकार समझ लिया जाता है। संबंध समझ और संयम से मजबूत होते हैं, जबकि हिंसा मानसिक असंतुलन का संकेत है। समाजशास्त्री डॉ. रघुवर पांडेय कहते हैं कि फिल्मों और सोशल मीडिया ने प्रेम को ग्लैमर और प्रदर्शन का माध्यम बना दिया है, जिससे युवा पल की भावनाओं में बह जाते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि परिवारों में खुलकर बात करने का वातावरण बनना चाहिए। स्कूल और कॉलेजों में काउंसलिंग को अनिवार्य किया जाए, ताकि युवा समझ सकें कि सोशल मीडिया जीवन नहीं, केवल दिखावे का मंच है। प्रेम में असफलता मंजिल का अंत नहीं, नए रास्ते की शुरुआत है।
