समय से पहले जन्मे शिशुओं की नेत्र ज्योति बचाने के लिए जनजागरुकता कार्यक्रम आयोजित
चित्रकूट।परम पूज्य संत रणछोड़दास जी महाराज द्वारा स्थापित विश्व ख्याति प्राप्त श्री सद्गुरु नेत्र चिकित्सालय द्वारा समय से पहले जन्मे शिशुओं की नेत्र ज्योति बचाने के लिए लोगों को विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से जागरूक करने का काम किया गया। समय से पहले जन्म लेने वाले कुछ शिशुओं को आंखों की बीमारी हो जाती है जिसे रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी (ROP) कहते है इस बीमारी का मुख्य कारण समय से पहले जन्म लेना है, क्योंकि इससे रेटिना की रक्त वाहिकाएं पूरी तरह विकसित नहीं हो पाती हैं और असामान्य वृद्धि होती है। उपचार में स्थिति की गंभीरता के आधार पर लेजर या अन्य उपचार शामिल हैं, और कुछ मामलों में, ये असामान्य वाहिकाएं खुद ही ठीक हो जाती हैं।
सद्गुरु नेत्र चिकित्सालय में वर्ल्ड रेटिनोपैथी ऑफ़ prematurity डे के उपलक्ष्य में
1- सद्गुरु के सभी डॉक्टरों एवं अन्य स्टाफ के द्वारा इस बीमारी के बारे में लोगो को जानकारी दी गई और कामदगिरि परिक्रमा किया गया
2- अस्पताल में रंगोली प्रतियोगिता का कार्यक्रम भी कराया गया।
3- CME प्रोग्राम भी कराया गया जिसमे लगभग १३० लोग भाग लिए ।
रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी के कारण
• समय से पहले जन्म: गर्भावस्था के अंतिम सप्ताहों में रेटिना की रक्त वाहिकाएं विकसित होती हैं। समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं में यह विकास अधूरा रह जाता है, जिससे असामान्य रक्त वाहिकाएं बन सकती हैं।
• जन्म के समय कम वजन: जो शिशु 1,500 ग्राम से कम वजन के साथ पैदा होते हैं, उनमें ROP होने का जोखिम अधिक होता है।
• ऑक्सीजन थेरेपी: समय से पहले जन्मे शिशुओं को अक्सर अतिरिक्त ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, जो रेटिना में असामान्य रक्त वाहिका वृद्धि का कारण बन सकती है।
• ऑक्सीजन के स्तर में उतार-चढ़ाव: रक्त में ऑक्सीजन के स्तर में उतार-चढ़ाव असामान्य वाहिका निर्माण को ट्रिगर कर सकता है।
• अन्य कारक: संक्रमण, सूजन और आनुवंशिक कारक भी इसके जोखिम को बढ़ा सकते हैं।
ROP के उपचार
ROP के अधिकांश मामले अपने आप ठीक हो जाते हैं, लेकिन गंभीर मामलों में उपचार की आवश्यकता हो सकती है।
• लेजर फोटोकोएग्यूलेशन: यह एक सामान्य उपचार है जिसमें असामान्य रक्त वाहिकाओं को खत्म करने के लिए लेजर का उपयोग किया जाता है।
• एंटी-वीईजीएफ इंजेक्शन: बेवाकिज़ुमैब जैसी दवाएं सीधे आंख में इंजेक्ट करके असामान्य वाहिकाओं की वृद्धि को रोकती हैं।
• स्क्लेरल बकल: यदि रेटिना आंख की दीवार से अलग हो गया है, तो इसे अपनी जगह पर बनाए रखने के लिए आंख की सतह पर एक छोटा सा टुकड़ा (स्क्लेरल बकल) सिल दिया जाता है।
• विट्रेक्टोमी: यह सर्जरी है जिसमें आंख के जेली जैसे हिस्से (विट्रियस) को हटाकर उसकी जगह हवा, गैस या सिलिकॉन तेल भरा जाता है ताकि रेटिना को अपनी जगह पर रखने में मदद मिल सके।
निदान
• एक नेत्र विशेषज्ञ द्वारा केवल आंखों की जांच के माध्यम से ही इसका निदान किया जा सकता है, क्योंकि इसके प्रारंभिक चरण में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं।
• जन्म के तुरंत बाद जांच की जाती है।
• उपचार के बाद भी आजीवन (वार्षिक) अनुवर्ती निगरानी की आवश्यकता हो सकती है। वही रेटीना विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ आलोक सेन ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि सभी माता पिता एवं परिवार जनों की ये जिम्मेदारी बनती है कि समय से पहले अगर कोई शिशु जन्म लेता है तो उसकी आंख जरूर अपने किसी नजदीकीय नेत्र चिकित्सालय में ले जाकर किसी नेत्र विशेषज्ञ को दिखाएं जिससे समय रहते उसकी नेत्र ज्योति बचाई जा सके।इस मौके पर डॉ प्रधान्या सेन, डॉ सचिन शेट्टी, डॉ अमृता मेरे, डॉ अदिती अग्रवाल सहित सभी नेत्र चिकित्सक एवं कार्यकर्ता मौजूद रहे।




















































































