कल्याण सिंह के तीन मंत्रों से बीएल वर्मा मोदी कैबिनेट में पहुंचे
जीवन में कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा, सीधे राज्यसभा और अब हुए मोदी मंत्रीमंडल में शामिल
ऐसे केंद्रीय मंत्री जो बचपन में सुबह पहले खेत का काम निपटाते फिर पैदल 12 किलोमीटर दूर स्कूल जाते थे
पत्रकारिता, अखबार वितरण, एलआईसी में काम करते हुए राजनीति के शिखर पर पहुंच गए
बदायूं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रीमंडल का विस्तार हुआ है। केंद्रीय मंत्रीमंडल में 43 नये चेहरे शामिल हुए हैं। इसमें उत्तर प्रदेश के जनपद बदायूं से राज्यसभा सदस्य बीएल वर्मा भी मंत्रीमंडल में शामिल हुए हैं। देश के लोगों को जिज्ञासा है कि आखिर मोदी मंत्रीमंडल में शामिल होने वाले बीएल वर्मा कौन है, उनका राजनीतिक कैरियर कैसा है, बैकग्राउंड क्या है?उनमें क्या खूबियां हैं?तो उत्तर प्रदेश की जनता को उत्सुक्ता है यह जानने की कि बीएम वर्मा अचानक से कैसे मोदी मंत्रीमंडल तक पहुंच गए। उनकी राजनीतिक सफलता का मूलमंत्र क्या है? उनके राजनीतिक गुरु कौन हैं?
आइये हम आपको मोदी मंत्रीमंडल में आज शामिल हुए बीएल वर्मा के बारे में विस्तार से बताते हैं। उत्तर प्रदेश के पिछड़े जनपद बदायूं के थाना मुजरिया क्षेत्र के ग्राम ज्योरापारवाला में सात अगस्त 1961 को सामान्य किसान स्व.पन्ना लाल लोधी के घर बीएल वर्मा ने जन्म लिया। उनके दो भाई और दो बहन हैं। इस परिवार के पास जीवोकापार्जन के लिए थोड़ी बहुत खेती हुआ करती थी। उन्होंने कक्षा पांच तक गांव के ही स्कूल में शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद पिता ने उनका कछला के राधेलाल इंटर कालेज में कक्षा छह में एडमीशन करा दिया। उस समय परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं हुआ करती थी। बीएल वर्मा सुबह सूर्योदय से पहले विस्तर छोड़ देते और सीधे खेत पर पहुंच जाते। वहां कभी हल चलाते तो कभी खुरपी चलाते। पशुओं के भोजन पानी की व्यवस्था करते।
इसके बाद सुबह साढ़े सात बजे कधे पर स्कूल बैग टांग कर पथरीली और उबड़ खाबड़ सड़क पर पैदल 12 किलोमीटर दूर जाते और आते। यह सिलसिला तीन साल तक जारी रहा। पिता ने कक्षा नौ में पहुंचने पर बीएल वर्मा को साइकिल दिलाई थी। उन्होंने इस तरह संघर्ष करते हुए एमए तक शिक्षा ग्रहण की बीएल वर्मा के दो बेटे और पांच बेटियां हैं। वह खुद और उनकी पत्नी धार्मिक प्रवृति के हैं। गांव में मंदिर का सुंदरीकरण और निर्माण भी कराया है।
पत्रकार,अखबार वितरक और एलआईसी एजेंट से जीवन की शुरुआत की
बीएल वर्मा का शिक्षा पूरी करने के बाद जीवकोपार्जन के लिए नया संघर्ष शुरु हुआ। उन्होंने एक दौर में उझानी में पत्रकारिता भी की। हिन्दी दैनिक नवसत्यम और अमर उजाला में पत्रकारिता के साथ अखबार वितरण का काम भी संभाला। उन्होंने कुछ वर्ष पूर्व दिए अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने अखबार और पत्रिकाएं तक बेची थी। वह वर्ष 1984 में एलआईसी से एजेंट के रूप में जुड़े और 1992 में जिले में चेयरमैन क्लब के पहले सदस्य बनने का गौरव हासिल किया। वर्ष 2008 में एलआईसी में चीफ एडबाइजर बने और कानपुर जोन में प्रथम स्थान हासिल किया। एलआईसी में 25 वर्ष से अधिक होने की वजह से अब वह चेयरमैन क्लब के आजीवन सदस्य हैं। वह कहते हैं कि एलआईसी की आय और संपर्क राजनीति में बहुत काम आए। गांव छोड़ने के बाद उन्होंने उझानी में अपना स्थाई आवास बनाया।
बीएल वर्मा का राजनीतिक सफर कुछ ऐसा रहा
बीएल वर्मा किशोरअवस्था से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संपर्क में आ गए। संघ में खंड कार्यवाह, तहसील बौद्धिक प्रमुख बने,संघ का प्राथमिक शिक्षा वर्ग व संघ शिक्षा वर्ग का प्रथम प्रशिक्षण प्राप्त किया। वर्ष 1980 में भाजपा जिला कार्यसमिति के सदस्य बने। वर्ष 1986-87 में जब कल्याण सिंह भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बने तो वह उनके संपर्क में आ गए। वह कल्याण सिंह से इस कदर प्रभावित हुए कि उन्हें अपना राजनीतिक गुरु बना लिया। उनका स्नेह, आर्शीवाद, कुशल राजनीतिक मार्ग दर्शन मिलते ही बीएल वर्मा राजनीति की सीढ़िया चढ़ने लगे और फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उन्होंने कल्याण सिंह का दामन इतनी मजबूती से पकड़ा कि आज तक उनका दामन पकड़े हुए हैं। उनके अच्छे-बुरे दौर में हमेशा उनके साथ रहे। वह कल्याण सिंह के आर्शीबाद से ही पहले प्रदेश की राजनीति में और अब केंद्रीय राजनीति तक पहुंच गए। वह वर्ष 1997 भाजयुमो के प्रदेश मंत्री और उस समय यूपी में शामिल उत्तराखंड के प्रभारी भी रहे। एक समय कल्याण सिंह का बुरा दौर भी आया। वह मुख्यमंत्री पद से हटे भाजपा से निष्कासित हुए। बीएल वर्मा सत्ता, पार्टी, राजनीतिक कैरियर की परवाह किए बगैर अपने पद और भाजपा से इस्तीफा देकर कल्याण सिंह के साथ खड़े हो गए। वर्ष 1999-2000 में कल्याण सिंह ने राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाई तो बीएल वर्मा उसके जिला अध्यक्ष बन गए। वर्ष 2002 और वर्ष 2012 में कल्याण सिंह और बीएल वर्मा भाजपा में नहीं थे। उस समय जिले में भाजपा भी शून्य पर थी। दोनों बार के चुनाव में बदायूं में भाजपा का खाता तक नहीं खुला था। कल्याण सिंह की भाजपा में वापसी के साथ ही बीएल वर्मा भी भाजपा में वापस आ गए। वह दो बार भाजपा के प्रदेश मंत्री बने। बीएल वर्मा वर्ष 2016 में भाजपा ब्रज क्षेत्र के अध्यक्ष बने। वर्ष 2017 में भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष बने। भाजपा में उपाध्यक्ष रहने के दौरान ही सिड़को के अध्यक्ष बने और उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा मिला। बीएल वर्मा के लिए वर्ष 2021 बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ है। वह पहले राज्यसभा सदस्य, फिर भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने। आज मोदी मंत्रीमंड़ल में शामिल होकर केंद्रीय राज्यमंत्री बन गए हैं।
कल्याण सिंह के इन तीन मंत्र और दो वाक्य से बीएल वर्मा मोदी मंत्रीमंडल तक पहुंचे
आज बने केंद्रीय राज्यमंत्री बीएल वर्मा ने कुछ साल पहले अपने एक इंटरव्यू में रहस्योदघाटन करते हुए बताया था कि पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह ने उन्हें राजनीतिक जीवन और सार्वजनिक जीवन में आगे बढ़ने के लिए तीन मंत्र दिए थे। इसमें पहले कठोर परिश्रम, दूसरा निष्ठा, तीसरा धैर्य कभी नहीं खोना। कल्याण सिंह ने तीन मंत्र के अलावा दो वाक्य दिए, पहला वह कहते हैं कि राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में सोच-विचार करने के बाद ही बोले, दूसरा वह कहते हैं कि आप दो आंखों से देखते हैं,जबकि आपको हजार आंखें देख रही हैं,। बीएल वर्मा कहते हैं कि वह आज भी अपने राजनीतिक गुुरु कल्याण सिंह के तीन मंत्र और दोनों वाक्यों का पूरी तरह पालन कर रहे हैं।
कैसी अजीब बिडंबनाः आज राजनीतिक गुरु हाशिये पर और अस्पताल में जीवन के लिए संघर्ष कर रहा,
इसे समय का कालचक्र कहें, या अजीब बिडंबना कहे, समझ नहीं आ रहा। राज्यसभा और मोदी के मंत्रीमंडल में पहुंच कर आज केंद्रीय राज्यमंत्री बनने वाले बीएल वर्मा जिन राजनीतिक गुरु कल्याण सिंह का दामन पकड़ कर यहां तक पहुंचे। आज वही राजनीतिक गुरु कुछ समय से राजनीति में हाशिये पर हैं, या कहे उम्र अधिक और स्वास्थ्य खराब की वजह से भाजपा हाईकमान ने उन्हें अघोषित रूप से राजनीतिक रिटायर्डमेंट दे दिया। कल्याण सिंह पिछले कुछ दिनों से लखनऊ के राममनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती हैं और जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। आज वह राजनीति में सक्रिय और पूरी तरह से स्वस्थ्य होते तो उन्हें कितनी खुशी होती कि उनका राजनीतिक शिष्य राजनीति के शिखर तक पहुंच गया। जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। साथ ही बीएम वर्मा आज भी अपने राजनीतिक गुरु कल्याण सिंह के प्रति पूरी तरह से निष्ठावान,आस्थावान हैं। वह आज भी अपने राजनीतिक गुरु की बहुत फिक्र और हर मौके पर जिक्र जरूर करते हैं। वह आज भी राजनीतिक व्यस्तता के बावजूद जब भी मौका मिलता अपने राजनीतिक गुरु का हालचाल जानने के लिए उनसे लखनऊ जाकर मुलाकात करते रहते हैं।
