बदायूं।उत्तर प्रदेश प्रधानाचार्य परिषद ने प्रदेश में ८० फीसदी रिक्त चल रहे माध्यमिक प्रधानाचार्य पदों पर कार्यरत तदर्थ प्रिंसिपलों को , कठिनाई निवारण अध्यादेश लाकर , विनियमित करने की मांग फिर तेज कर दी है । परिषद ने चयनबोर्ड पर उदासीनता का आरोप लगाते हुए पठन पाठन को प्रभावित करने का जिम्मेदार बताया है । परिषद ने संस्था प्रधानों की समस्याओं शीघ्र निस्तारित न होने पर आगामी चुनाव में सरकार का खुला विरोध करने की धमकी भी दी है
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उत्तर प्रदेश प्रधानाचार्य परिषद के प्रंतीय अध्यक्ष ब्रजेश शर्मा ने २०१३ में विज्ञापित नियुक्तियों के सापेक्ष मांगे गए आवेदनों का रिकॉर्ड गायब हो जाने पर अफसोस जाहिर किया है । उन्होंने इसे परिषद की घोर लापरवाही बताते हुए तत्काल बोर्ड को भंग करने की मांग सरकार से कर डाली है । उन्होंने चयन प्रक्रिया में किये गए आपव्यय को भी दोषियों से वसूलने की मांग की है । अध्यक्ष ने सरकार की नियत व मंशा पर भी प्रश्न उठाया है कि नियंत्रण के अभाव में प्रदेश में ८० फीसदी के लगभग स्थाई प्रधानाचार्यों के पद लगातार दो दशक से रिक्त क्यों चल रहे हैं । उन्होंने इसे शिक्षा की प्रगति व गुणवत्ता कायम रखने में सबसे बड़ी बाधा बताया है ।
वहीं परिषद के प्रांतीय संयोजक डॉ विश्व नाथ दुबे ने इस विकराल समस्या का एक मात्र हल , तदर्थ प्रधानाचार्यों का विनियमितीकरण ही बताया है । उन्होंने इसके लिए सरकार व आयोग के सामने आ रही बहुत पुरानी व जटिल समस्या का एक मात्र हल कठिनाई निवारण अध्यादेश लाकर विनियमित करने का सुझाव दिया है । इससे पूर्व भी इसी प्रकार ही समाधान निकाला जा चुका है । महामंत्री डॉ मनोज कुमार ने स्थाई संस्था अध्यक्षों के बिना कालेजों में अनुशासन , नियंत्रण व कार्यक्षमता का होना संदिग्ध माना है ।
इंसेट उत्तर प्रदेश प्रधानाचार्य परिषद के प्रदेश प्रवक्ता सुनील मिश्र ने २०१३ में विज्ञापित ५९९ पदों के विज्ञापन को ही निरस्त करने की मांग शासन से की है । उन्होंने जिन चार हजार के लगभग आवेदकों का साक्षात्कार होना था , उनमें से अधिकांश तो मार्च २०२१ तक सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं । उन्होंने बताया कि यदि सरकार आयोग से समयान्तर्गत काम नहीं ले पा रही है तो आयोग को भंग करना ही एक मात्र समाधान है । उन्होंने तदर्थ को एक माह में विनियमित न करने पर आगामी चुनाव में सत्ता दल के खिलाफ माहौल कायम करने को अपनी व परिषद की मजबूरी बताया ।