73 ब्रह्मचारि-बटुको का सामूहिक यज्ञोपवीत संस्कार यज्ञ संपन्न
बरेली। रूहेलखंड मंडल का एकमात्र जीवन्त गुरुकुल श्री टीबरीनाथ सांगवेद संस्कृत महाविद्यालय, नैनीताल मार्ग, बरेली के प्रांगण में आज बसंत पंचमी पर प्रात: काल की बेला में 73 ब्रह्मचारि-बटुको का सामूहिक यज्ञोपवीत संस्कार यज्ञ आचार्य महेश चन्द्र शर्मा एवं वरिष्ठ छात्रों के कुशल निर्देशन में वैदिक सनातन परम्परानुसार गणेशाम्बिका पूजन, कलश पूजन, नवग्रह पूजन, सर्वतोभद्रममंडल्स्थ देव पूजन, अग्निस्थापन, होम, समावर्तन संस्कार क्रमानुसार पूजन किया गया। प्रात: काल से ही ब्रह्मचारि-बटुक गुरुकुल परिवेश में दण्ड धारण कर जीवन्त प्राचीन स्मृति की याद दिला रहे है । ब्रह्मचारि-बटुको ने प्रधानाचार्य बंशीधर पाण्डेय से विधिवत् दीक्षा-मन्त्र, गुरु-मन्त्र ग्रहण किया । ह्रदयस्पर्शी द्रश्य से अभिभावक जनों के नेत्र सजल हो गए । तत्पश्चात भिक्षा प्राप्ति हेतु ब्रह्मचारि ने दोनों हाथ फैला कर स्वजनों से याचना की जिससे अहम् का त्याग होवे , संचय कर वृत्ति ना पनपे। उपस्तिथ जनसमुदाय द्वारा भिक्षा प्रदान करते समय वातावरण भावुक हो गया । यह प्राचीन गुरुकुल परंपरा का नित्य नियम भिक्षा को होता था । वर्तमान शिक्षा प्रणाली रोजगार के दृष्टिकोण से ही विकसित है । जिसमे नैतिक व चारित्रिक गुणों की विशेषता का कोई प्रावधान नहीं है ।
प्रधानाचार्य ने बताया कि यज्ञोपवीत संस्कार के उपरांत ही ब्रह्मचारि वेदाध्ययन का अधिकारी माना जाता है I इसी प्रकार ज्ञान की देवी सरस्वती की आराधना का पर्व ऋषियो , मुनियों , ज्ञानी जनों की साधना का दिवस अमृत महोत्सव भी है I संस्कार द्वारा ही संस्कार युक्त जीवन प्रारंभ होता है । यज्ञोपवीत की तीन सूत्र , तीन ऋण-देव, ऋषि व पितृ है । साथ ही तीन प्रकार की मानवीय वृतियां सत, रज, व तम के भी परिचायक है । यह पर्व मेघा वृद्धि के यज्ञआरम्भ का प्रतीक है। यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।सरस्वती देवी की आराधना का पर्व गुरुकुलो का विशिष्ट पर्व है। परमात्मा ने अनेकानेक सुन्दर भोग्य पदार्थो को मनुष्य एवं प्राणियों हेतु उत्पन्न किए है । जिनका मानव विकास एवं जीवन यापन में सहयोग है इसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन देव ऋण है । माता-पिता संतान उत्त्पत्ति के पश्चात स्वयं कष्ट सहन कर उसका लालन –पोषण करते है , उनके प्रति दायित्त्वों का निर्वहन पितृ ऋण है । शिष्य को गुरु शिक्षा प्रदान कर उसे संसार के कष्टों को सहन करने , संघर्षो का सामना करने हेतु तैयार करते है , उन मनीषीजनों के प्रति कृतज्ञता ऋषि ऋण है । इस अवसर पर प्रबंध समिति के अध्यक्ष प्रेमशंकर अग्रवाल, मंत्री सुधीर गोयल, मुकेश अग्रवाल (कोषाध्यक्ष) ,विकास शर्मा उपमंत्री , अनिल अग्रवाल, जगऔतार शर्मा (पूर्व प्रधानाचार्य) आदि गणमान्य जन एवं दूर-दूर से आये अभिभावक जन उपस्तिथ रहें । कार्यक्रम में मुख्य अतिथि कैंट विधायक माननीय संजीव अग्रवाल जी उपस्थित रहे विद्यालयीय व्यवस्थाओ में डॉ सुरेश चन्द्र शर्मा निधि सक्सेना , प्रशांत कुमार, ओम पाठक, अतुल शर्मा, संतोष शर्मा, राजीव अवस्थी, शिवबालक शर्मा , सुरेन्द्र , अरुण, जोगेंद्र, आशीष का योगदान रहा है ।