बरेली। मधुमेह (डायबिटीज) अब उम्र के दायरे को तोड़कर बच्चों और किशोरों को चपेट में ले रहा है। ज्यादातर बच्चे टाइप-1 डायबिटीज की चपेट में हैं। विशेषज्ञ के मुताबिक अभिभावकों की अनदेखी बच्चों पर भारी पड़ रही है। बरेली के जिला अस्पताल के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. मयंक के मुताबिक अस्पताल में इलाज के लिए पहुंच रहे बच्चों की एनसीडी सेल में भी जांच कराई जा रही है। इसमें सात से दस साल के बच्चे डायबिटिक मिल रहे हैं। जाहिर है कि अब ये बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है। इसलिए अब सभी को वर्ष में एक बार डायबिटीज की जांच जरूर करानी चाहिए। बच्चे टाइप-1 की चपेट में हैं, जो वंशानुगत है। कुछेक में टाइप टू की भी पुष्टि हो रही है, जो अव्यवस्थित जीवनशैली और खानपान की वजह से होती है। उन्होंने बताया कि पैदाइशी यानी वंशानुगत डायबिटीज से पीड़ित बच्चे तो अच्छी संख्या में हैं, लेकिन 10 वर्ष के बच्चों का डायबिटीज की चपेट में आना चिंताजनक है। चिकित्सक इसे डायबिटीज (मधुमेह) और ओबेसिटी (मोटापा) मिलाकर डायसिटी नाम से भी संबोधित करते हैं। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अनीस अंसारी के मुताबिक बच्चों में डायबिटीज की वजह ज्यादातर मामलों में अभिभावक हैं। फास्ट फूड, देर तक सोने की आदत, कोल्डड्रिंक, टीवी, गेम से मोटापा बढ़ रहा है। मोटापा, शुगर होने का शुरुआती कारक होता है। ये बीमारी अंदर से शरीर को कमजोर करती है। समय से पहले बुढ़ापे के लक्षण नजर आने की आशंका है। शरीर के पैंक्रियाज में इंसुलिन कम पहुंचने पर खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है। इसे डायबिटीज या मधुमेह कहते है। इंसुलिन शरीर में भोजन को ऊर्जा में बदलता है और शुगर की मात्रा को नियंत्रित करता है। मधुमेह होने पर शरीर को भोजन से ऊर्जा बनाने में कठिनाई होती है। प्यास ज्यादा लगती है। बार-बार पेशाब आना। आंखों की रोशनी कम होती है। जख्म देर से भरता है। मरीज को चक्कर आते हैं, वह चिड़चिड़ा हो जाता है। ग्लूकोज स्तर की जांच कराएं। जीवनशैली में बदलाव करें। नियमित व्यायाम करें। कम से कम 3 किमी जरूर चलें कम कैलोरी वाली चीजें खाएं। मीठे से बचें। फल, हरी सब्जियां खाएं। बच्चे, किशोर, युवा और उम्रदराज लोग भी तनाव हावी न होने दें।