हिम्मत के बल पर अपने आप को स्थापित करने वाले अशोक मिश्रा को भुला नहीं पायेंगे उनके चाहने वाले
बदायूं।मेहनत और हिम्मत के बल पर अपने आप को स्थापित करने वाले अशोक मिश्रा को भुला नहीं पायेंगे उनके चाहने वाले, राजनीति, समाजसेवा, एवं कार्यक्षेत्र में अपने व्यवहार से पहचाने जाते थे मिश्रा , 21 दिन जिन्दगी की जंग लड़े किन्तु अन्त में हार गये कोराना से,
युवा बेटों ने लिया उनके अधूरे स्वप्नों को पूरा करने का संकल्प।

मूलत: उझानी निवासी और वर्तमान में बरेली आशीष रायल पार्क में निवास कर रहे श्री अशोक कुमार मिश्रा कोरोना संक्रिमित होने के बाद 21 दिन बरेली के निजी अस्पताल में कोराना से जिन्दगी की लड़ाई लड़े किन्तु अन्त में उनका शुक्रवार 21 मई को दुखद निधन हो गया। 55 वर्षीय श्री मिश्रा अपने मेहनत, मृदुल व्यवहार, सामाजिक रुप से प्रत्येक कार्य में सक्रिय रहने, हर एक के सुख दुख में सम्मिलित होने, राजनीतिक सक्रियता, एवं अपने राजकीय ठेकेदारी के कार्य में साफ सुथरे कार्य व छवि के कारण एक खास स्थान रखते थे।

उनके जाने से उनसे जुडे़ प्रत्येक क्षेत्र के सभी लोग आज आहत और दुखी हैं। बदायँू के उझानी कस्बे से बिना किसी आर्थिक मजबूती या सहारा के वे स्वनिर्मित व्यक्ति थे जिन्होंने अपनी मेहनत और बल पर राजकीय ठेकेदारी कर ए क्लास ठेकेदार की साफ सुथरी एवं निर्विवाद छवि बनाई। उनके सम्बन्ध प्रशासनिक, राजनैतिक एवं सामाजिक प्रत्येक क्षेत्र में थे। चाहें सामाजिक हो, राजनैतिक हो, धार्मिक हो, एवं प्रशासनिक हो सभी गतिविधियों में सदैव सक्रिय रहे और समर्पित कार्यकर्ता के रुप में अपने सहयोगियों को सहयोग किया। ग्रामीण विकास समिति के वे अध्यक्ष थे, साथ ही डॉ. उर्मिलेश जनचेतना समिति, बदायँू महोत्सव आयोजन समिति, अखिल भारतीय भगवान परशुराम सेवा ट्रस्ट के ट्रस्टी,

अखिल भारत वर्षीय ब्राह्मण महा सभा भी सक्रिय सदस्य थे। श्री मिश्रा के जाने से उनके परिजनों, मित्रों, सम्बन्धियों, कर्मचारी व सहयोगी सभी आहत और टूट चुके हैं। उनके परिवार में उनके पत्नी श्रीमती दीप्ति मिश्रा, भाई अरुण मिश्रा, चार पुत्र देवव्रत, मुकुल, अभिनव एवं अभय हैं एवं एक विवाहित पुत्री चंचल है जो चंढीगढ़ में निवास कर रही है। आज उनके निधन के बाद सभी पुत्र उनके जाने से दुखी हैं और वे चाहते हैं कि हमें उनकी स्मृतियों को संजोते हुये एवं उनके दिखाये सत्कर्मों पर चलते हुये उनके नाम को आगे बढ़ाने का प्रयास करना है। उनके अनुसार यही उनके पिता को सच्ची श्रद्धांजलि उन्हें होगी। उनके पुत्र चाहते हैं कि अपने पिता के शुभचिन्तकों, मित्रों के मार्गदर्शन में उनकी स्मृति में सामाजिक कार्यों द्वारा दीन दुखियों एवं जरुरतमंदो को मदद करने की कोशिश होगी।





















































































