न्यूरो सर्जरी के क्षेत्र में हो रही है क्रांति, रीढ़ की मुश्किल समस्याओं का भी सफल इलाज
बरेली। मेडिकल साइंस लगातार हो रही तरक्की से गंभीर मामलों के इलाज भी आज संभव हो गए हैं. स्पाइनल न्यूरो सर्जरी के क्षेत्र में भी काफी एडवांसमेंट हुए हैं, जिसकी मदद से रीढ़ की समस्याओं से जूझ रहे मरीजों को नई उम्मीद मिली है. मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल साकेत (नई दिल्ली) में न्यूरो सर्जरी एंड स्पाइन सर्जरी के सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर वीरेंद्र कुमार ने बताया कि शानदार टेक्नोलॉजी और इनोवेटिव सर्जिकल तकनीक के साथ न्यूरो सर्जन रोग के डायग्नोज और इलाज में काफी सहयोग पा रहे हैं जिससे मरीजों के लिए अच्छे रिजल्ट आ रहे हैं। रीढ़ की समस्याएं रीढ़ से जुड़ी कई तरह की परेशानियां होती हैं जो रीढ़ के स्ट्रक्चर की इंटिग्रिटी और फंक्शनैलिटी पर असर डालती हैं. रीढ़ से संबंधित समस्याओं में हर्नियेटेड डिस्क, स्पाइनल स्टेनोसिस, स्पोंडिलोलिस्थीसिस, स्पाइनल ट्यूमर और डिजेनरेटिव डिस्क रोग शामिल हैं. ये बीमारियां लंबे समय तक दर्द देती हैं, इनसे न्यूरोलॉजी संबंधी कमियां होती हैं और गंभीर मामलों में पैरालिसिस भी हो जाता है।हर्नियेटेड डिस्क की समस्या तब होती है, जब रीढ़ की हड्डी की डिस्क का नरम आंतरिक जेल उसके सख्त बाहरी हिस्से से बाहर निकलता है और आसपास की नसों पर दबाव डालता है. स्पाइनल स्टेनोसिस में स्पाइनल कैनाल संकीर्ण हो जाती है, जो रीढ़ की हड्डी और तंत्रिकाओं को संकुचित कर सकती है. स्पोंडिलोलिस्थीसिस में एक कशेरुका का उसके नीचे वाले कशेरुका के ऊपर विस्थापन हो जाता है, जिसकी वजह से दर्द हो सकता है और ये नसों की क्षति का कारण बन सकता है।इनोवेटिव सर्जिकल इंटरवेंशनस्पाइनल न्यूरो सर्जरी के क्षेत्र में हुई हालिया प्रगति ने रीढ़ की इन समस्याओं के इलाज में क्रांति ला दी है. मिनिमली इनवेसिव सर्जरी (एमआईएस) इन नई तकनीक में सबसे आगे है. एमआईएस तकनीक से की जाने वाली प्रक्रिया में छोट कट लगाए जाते हैं, मसल डैमेज और ब्लड लॉस कम होता है, मरीज की तेजी से रिकवरी होती है और ऑपरेशन के बाद दर्द कम होता है।इसी तरह की एक एडवांस तकनीक है एंडोस्कोपिक स्पाइन सर्जरी. इसमें एक छोटे कैमरे और उपकरण को मामूली से कट के जरिए बॉडी के अंदर भेजा जाता है जिससे अंदर की अच्छी तस्वीर मिलती और डॉक्टर पूरी सटीकता के साथ सर्जरी कर पाते हैं. हर्निएटेड डिस्क और स्पाइनल स्टेनोसिस के मामले में ये काफी उपयोगी होती है, जिसमें खराब टिशू को बहुत ही टारगेटेड तरीके से हटा दिया जाता है और आसपास की शरीर की संरचना पर कोई गलत असर भी नहीं पड़ता।रोबोट की मदद से की जाने वाली स्पाइन सर्जरी भी एक अभूतपूर्व विकास है. मुश्किल मामलों में भी रोबोट की मदद से सटीकता और स्थिरता के साथ स्क्रू, छड़ और अन्य हार्डवेयर लगाने में सहायता मिलती है. यह तकनीक न केवल स्पाइनल फ्यूजन की सटीकता को बढ़ाती है बल्कि रिस्क को भी कम करती है, जिससे मरीज के लिए अच्छे रिजल्ट आते हैं।नेविगेशन सिस्टम का रोलकम्प्यूटर की मदद से नेविगेशन सिस्टम के जरिए सर्जरी के दौरान रियल टाइम गाइडेंस मिलता है. इससे थ्री-डी इमेज मिलती है और डैमेज हिस्से की पूरी संरचना की तस्वीर मिल जाती है. रीढ़ की संवेदनशील संरचना को भी सर्जन पूरे विश्वास के साथ देख पाते हैं जिससे सर्जरी में चूक होने की आशंका कम रहती है और मरीज के लिए अच्छे रिजल्ट आते हैं।ऑपरेशन के बाद केयर और रिहैबिलिटेशनस्पाइनल सर्जरी सिर्फ ऑपरेशन थिएटर में सही इलाज से सफल नहीं होती है बल्कि ऑपरेशन के बाद मरीज की देखभाल और रिहैबिलिटेशन भी मरीज की रिकवरी और रीढ़ के फंक्शन में महत्वपूर्ण रोल अदा करती है. मल्टी डिसिप्लिनरी टीम में थेरेपिस्ट, दर्द मैनेज करने वाले स्पेशलिस्ट और रिहैबिलिटेशन एक्सपर्ट शामिल होते हैं जो मरीज के लिए पर्सनलाइज्ड रिकवरी प्लान तैयार करते हैं।प्रारंभिक गतिशीलता, मरीज के हिसाब से एक्सरसाइज प्रोग्राम और दर्द मैनेज करने की रणनीतियां ऑपरेशन के बाद काफी अहम होती हैं. ये उपाय न केवल रिकवरी में तेजी लाते हैं बल्कि मसल अट्रोफी और जोड़ों की कठोरता जैसी समस्याएं रोकने में भी मदद करते हैं।स्पाइनल न्यूरोसर्जरी का भविष्य अपार संभावनाओं से भरा है. री-जनरेटिव मेडिसिन और टिशू इंजीनियरिंग में रिसर्च चल रही है जिसका उद्देश्य रीढ़ की हड्डी की चोटों और डिजनरेटिव स्थितियों के लिए इलाज के नए विकल्प तलाशना है।