नई दिल्ली। रोटी या चपाती भारतीय खाने का अहम हिस्सा है, जिसे लगभग सभी मील्स में जरूर खाया जाता है। रोटी को आमतौर पर तवे पर कुछ देर सेका जाता है और फिर सीधे चूल्हे की आंच पर चिमटे की मदद से पूरी तरह से पकाया जाता है। ऐसी कुछ रिसर्च हैं, जो बताती हैं कि तेज आंच पर खाना पकाने के तरीके से हेट्रोसाइक्लिक अमाइन्स (HCAs) और पॉलीसाइक्लिक अरोमैटिक हाइड्रोकार्बन्स (PAHs) का उत्पादन होता है, जो जाने माने कार्सीनोजन्स हैं। आइए जानें कि नई रिसर्च रोटी पकाने के इस तरीके के बारे में क्या कहती है।रोटी को पकाते वक्त कई लोग तवे पर रखी रोटी को किसी कपड़े से दबाते हैं, इससे रोटी सभी तरफ से पक जाती है और इसे सीधे गैस की आंच पर भी नहीं रखना पड़ता। हालांकि, जब से चिमटा आया है, तब से लोग आंधी रोटी तवे पर पकाते हैं और बाकी को सीधे आंच पर सेकते हैं। इससे रोटी जल्दी भी बन जाती है।फूड स्टैन्डर्ड्स ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के चीफ वैज्ञानिक, डॉ. पॉल ब्रेंट द्वारा साल 2011 में प्रकाशित हुई रिपोर्ट के मुताबिक, जब ब्रेड गैस की आंच के संपर्क में आती है, तो इससे एक्रिलामाइड नामक एक रसायन का उत्पादन होता है, जो खाना पकाने की प्रक्रिया के दौरान चीनी और कुछ अमीनो एसिड्स को एक साथ गर्म करने पर उत्पन्न होता है। हालांकि, यह रिपोर्ट जले हुए टोस्ट पर आधारित थी, लेकिन गेंहू के आटे में भी प्राकृतिक चीनी और प्रोटीन का कुछ स्तर होता है, जो गर्म होने पर कार्सीनोजेनिक केमिकल का उत्पादन करता है, जिसका सेवन करना सेहत के लिए सुरक्षित नहीं है।अगर हम हाल ही में हुई रिसर्च को देखें, तो चपाती को सीधे आंच पर सेक कर खाना सुरक्षित नहीं देखा जा रहा है। हालांकि, इसके खतरों को गहराई से जानने के लिए कुछ और स्टडीज की जरूरत है।