दीपावली में होता है अलग महत्व मिट्टी से बने दीयों का

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बदायूं।दीपों का पर्व दीपावली भले ही रंगीन सतरंगी बल्ब से शहर की भावना को रोशनी से चकाचौंध करता हो, परंतु आस्था के साथ बने मिट्टी के दीए का एक अलग महत्व है। हाईटेक युग में एक से बढ़कर एक रंगीन बल्ब खूबसूरती की छटा बिखेर रहे होते हैं। वहीं पुरातन काल से जलता हुआ मिट्टी का दिया परंपरा को जीवित रखकर तमसो मां ज्योतिर्गमय का संदेश देती है। इस आधुनिक युग में दीपावली के मौके पर घरों को रोशन करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा शहरों में भी मिट्टी के दीए जलाए जाते हैं। इस पुरातन परंपरा के जीवित रहने के कारण ही कुंभकारों के आंगन में परंपरागत रूप चाक पर दिया का निर्माण होता है। देशहित और जागरूकता के कारण की चाइनीज झालर की बजाए मिट्टी के दीए की मांग बढ़ी है।

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आधुनिकता के दौर में पुरानी परंपराओं को दरकिनार कर नई वैरायटी की लाइट लगा लेते हैं। यही वजह है कि क्षेत्र के कुंभकार दीया की डिमांड कम होने से कुछ दूसरे कामों की तलाश कर रहे हैं। कुंभकारों का कहना है कि मिट्टी के दिए और बनाने वाले अन्य सामान को बनाने के लिए सरकार द्वारा प्रोत्साहित नहीं किया जा रहा है। उम्मीद है कि सरकार यदि पूरी तरह चाइनीज सामान पर प्रतिबंध लगा दे तो यह धंधा चल जाएगा तथा कुंभकारों का परिवार फिर से अपने पुश्तैनी धंधे में वापस लौट सकते हैं। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में मिट्टी के दिए को महत्व दिया जाता है। वही दीपावली पर्व को लेकर बाजार सहित ग्रामीण क्षेत्रों में काफी चहल-पहल देखी जा रही है।

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