श्रमिक हितों की लड़ाई लड़ते रहे सुरेश चन्द्र सक्सेना
बरेली। सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों अथवा फैक्ट्रियों में कार्यरत कर्मचारियों सरकार द्वारा घोषित लाभ व अधिकार दिलाने के लिए सुरेश चन्द्र सक्सेना जीवन भर कानूनी हथियारों से संघर्ष करते रहे। उनके मन में अपने श्रमिक साथियों के प्रति इस कदर लगाव था कि वकालत की पढ़ाई न करने के वावजूद वह सदैव ही अपने कानूनी दांवपेचों से मुकदमे का रूख अपने साथियों के पक्ष मेें करने में सफल रहे।
बरेली के जकाती-चाहबाई निवासी जमींदार छत्रपति राय के घर 4 नवम्बर 1923 को जन्मे श्री सुरेश चंद्र सकसेना की दीक्षा केडीएम व अन्य कालेज में हुई। पढ़ाई के उपरांत अंग्रेजी हुकूमत काल में ही केन्द्रीय उत्पाद शुल्क विभाग में उनकी सर्विस लग गयी। उनकी तैनाती बदायूं जनपद की बिसौली तहसील में की गयी जहां वह घोड़े से जाया करते थे। 15 फरवरी 1945 को कासगंज निवासी अशर्फी लाल जौहरी की पुत्री शकुंतला देवी से उनका विवाह हुआ। पारिवारिक परिस्थितियों के चलते सन् 50 के बाद सरकारी नौकरी छोड़ कर उन्होंने वेस्टर्न इंडिया मैच कंपनी (विमको) बरेली में सर्विस कर ली। सेवा काल के दौरान इनकी कानून के प्रति रूचि व योग्यता को देखते हुए विमको प्रबंधन ने उन्हें विमको के माचिस उत्पाद चिन्ह (लोगो) की नकल या मिलते जुलते मुकदमों में वकीलों को आवश्यक जानकारी उपलबध कराने की जिम्मेदारी सौंप दी। इस जिम्मेदारी का निर्वाह करते हुए वह हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट तक भी गये। इस दौरान उन्होंने हिन्द मजदूर सभा के पदाधिकारी के रूप में विभिन्न राज्यों की श्रम समस्याओं का अध्ययन करके प्रदेश व केन्द्रीय अध्यक्ष को रिपोर्ट सौंपी। विमको के अलावा अन्य फैक्ट्रियों के श्रमिक नेता सर्व श्री रामस्वरूप शुक्ला;कत्था फैक्ट्रीद्धजे.बी. सक्सेना, अभय शर्मा कैम्फर जेसी पालीवाल रेलवे, चै. हरसहाय सिंह गिरीश भारती, शंभूदत्त बेलवाल भी मंत्रणा करने उनके आवास पर अक्सर आया करते थे।
कवीर पुरस्कार से सम्मानित जे. सी. पालीवाल समाजसेवी बताते हैं कि सुरेश सक्सेना जी दलगल राजनीति से ऊपर उठकर केवल श्रमिक हित पर ही बात करते थे। श्रमिक पर पैसा हो या न हो श्रम विभाग में उसकी पैरवी श्री सुरेश चन्द्र जी करते थे। श्रम न्यायालय में भी सभी उनका सम्मान करते थे। श्री पालीवाल जी बताते है सुरेश चन्द्र के निवास पर सभी श्रमिक नेता श्रमिकों को कानूनी रूप से मदद दिलाने पर मंथन करते थे। सन् 80 के दशक में विमको से सेवा निवृत्त होने के बाद उन्होंने बरेली श्रम न्यायालय में लेबर लाॅ एडवाइजर के रूप में श्रमिक साथियों को सेवायें देना शुरू कर दीं। सीटू व भारतीय मजदूर संघ के बरेली मंडल के अधिकांश श्रमिक मुकदमों की पैरवी वह ही करते थे। कानपुर के कांग्रेसी नेता विमल मेहरोत्रा उनसे मिलने बरेली आते थे। उनकी कानूनी जानकारी व लेटर ड्राफ्टिंग के समकालीन श्रम विभाग के पीठासीन अधिकारी भी कायल थे। उन्होंने कभी भी अपनी और से कमी दिखा कर श्रमिक के मुकदमे की तारीख आगे बढ़ाने का प्रयास नहीं किया। उनके मित्रों का कहना है कि वह कभी भी श्रमिकों का कोई मुकदमा श्रम न्यायालय में नहीं हारे और पैसे के लिए कभी भी किसी वादकार पर उन्होंने दवाब नहीं डाला। यही नही कभी भी प्रबंधन की और से श्रमिक के विरुद्ध कोई भी केस नही लड़ा। बरेली कायस्थ सभा अध्यक्ष रहे लक्ष्मी नारायण सक्सेना, हर स्वरूप, शिव कुमार बरतरिया, ईशवर दयाल मोहन, जितेंद्र जोहरी आदि साथ कायस्थ सभा के विभिन्न पदों पर रहते हुए उन्होंने समाज को एकजुट करने में महतवपूर्ण भूमिका निभायी। 22 सितम्बर 2008 को उनका स्वर्गवास हो गया। वह अपने पांच पुत्र व एक पुत्री रेखा प्रधान सहित भरा पूरा परिवार छोड़ गये थे। उनके ज्येष्ठ पुत्र निर्भय सक्सेना ‘दैनिक जागरण’ में कार्यरत रहे।