मनरेगा की जगह वीबी-जी राम जी: रोजगार से आगे गांवों के विकास का नया मॉडल या अधिकारों में कटौती की आशंका
केंद्र सरकार ने लोकसभा में विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) यानी वीबी-जी राम जी विधेयक पेश कर दिया है। केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा विधेयक को पुनर्स्थापित किए जाने के बाद यह साफ हो गया है कि सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून यानी मनरेगा की जगह एक नए ढांचे को लागू करने की तैयारी में है। इस विधेयक के जरिए सरकार ग्रामीण रोजगार को केवल मजदूरी तक सीमित न रखकर उसे गांव के स्तर पर टिकाऊ विकास, आजीविका और बुनियादी ढांचे से जोड़ना चाहती है। हालांकि, विधेयक सामने आते ही विपक्ष ने इसके नाम, स्वरूप और प्रावधानों को लेकर तीखा विरोध शुरू कर दिया है।
सरकार का कहना है कि वीबी-जी राम जी के जरिए मनरेगा की उन संरचनात्मक कमियों को दूर किया जाएगा, जो बीते वर्षों में सामने आई हैं। नए विधेयक में रोजगार के दिनों को 100 से बढ़ाकर 125 करने का दावा किया गया है और ग्रामीण क्षेत्रों में किए जाने वाले सभी कार्यों को एक विकसित भारत राष्ट्रीय ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर स्टैक से जोड़ा जाएगा। इसके तहत जल सुरक्षा, ग्रामीण बुनियादी ढांचा, आजीविका से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर और आपदा व मौसमी घटनाओं के समय विशेष कार्यों को प्राथमिकता दी गई है। जल संरक्षण, सिंचाई, ग्रामीण सड़कों, स्कूल भवनों, स्वच्छता, नवीकरणीय ऊर्जा, कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, भंडारण, बाजार और कौशल विकास से जुड़े कार्यों के जरिए गांवों में स्थायी परिसंपत्तियों के निर्माण पर जोर रहेगा।
विधेयक में यह भी प्रस्ताव है कि विकास कार्यों की पहचान स्थानीय स्तर पर विकसित ग्राम पंचायत योजनाओं के जरिए की जाएगी, जिन्हें जीपीएस और पीएम गति-शक्ति जैसी तकनीकों से जोड़ा जाएगा। डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के तहत बायोमेट्रिक उपस्थिति, मोबाइल आधारित रिपोर्टिंग, रियल-टाइम डैशबोर्ड, एआई आधारित निगरानी और सख्त सोशल ऑडिट को अनिवार्य किया गया है। सरकार का दावा है कि इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और फर्जीवाड़े पर लगाम लगेगी।
हालांकि, राज्यों की भूमिका और वित्तीय जिम्मेदारी को लेकर सबसे बड़ा विवाद खड़ा हुआ है। नए विधेयक में राज्यों को यह अधिकार दिया गया है कि वे बुवाई और कटाई के चरम मौसम को ध्यान में रखते हुए एक वित्तीय वर्ष में 60 दिनों तक काम न कराने की अवधि तय कर सकें। इसके साथ ही खर्च साझा करने का नया मॉडल लाया गया है, जिसमें पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिए केंद्र 90 प्रतिशत और अन्य राज्यों के लिए 60 प्रतिशत खर्च वहन करेगा, जबकि शेष राशि राज्यों को देनी होगी। विपक्ष का आरोप है कि इससे राज्यों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा और योजना की गारंटी कमजोर होगी।
किसानों के संदर्भ में सरकार का तर्क है कि पीक सीजन में मनरेगा जैसे कार्य रुकने से खेतों में मजदूरों की उपलब्धता बनी रहेगी और मजदूरी लागत नियंत्रित होगी। मजदूरों के लिए काम के दिन बढ़ने से आय में इजाफा होने का दावा किया गया है, हालांकि मजदूरी दरों में फिलहाल किसी बदलाव का प्रावधान नहीं है।
विपक्ष का कहना है कि मनरेगा एक अधिकार आधारित कानून था, जिसे अब शर्तों से बंधी और केंद्र नियंत्रित योजना में बदला जा रहा है। कांग्रेस और वाम दलों ने महात्मा गांधी का नाम हटाने को वैचारिक कदम बताते हुए सवाल उठाए हैं। प्रियंका गांधी वाड्रा और शशि थरूर ने कहा कि मनरेगा ने दो दशकों तक ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सहारा दिया और बिना व्यापक चर्चा के इसके स्वरूप और नाम में बदलाव अनुचित है। वाम दलों का आरोप है कि डिजिटल अनिवार्यताओं, नॉर्मेटिव एलोकेशन और खर्च साझा करने के मॉडल से मजदूरों और राज्यों दोनों के अधिकार कमजोर होंगे।
कुल मिलाकर, वीबी-जी राम जी विधेयक सरकार के लिए ग्रामीण भारत में रोजगार और विकास को एक नई दिशा देने का प्रयास है, जबकि विपक्ष इसे मनरेगा की आत्मा पर चोट और अधिकार आधारित व्यवस्था से पीछे हटने के रूप में देख रहा है। अब इस विधेयक पर संसद में होने वाली चर्चा ही तय करेगी कि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए सुधार साबित होगा या विवादों का नया अध्याय।
