यूपी भाजपा में बड़ा सियासी संकेत, पंकज चौधरी पर प्रदेश नेतृत्व का दांव
केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी को लेकर उत्तर प्रदेश की सियासत में अचानक हलचल तेज हो गई है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी उन्हें प्रदेश संगठन में बड़ी जिम्मेदारी सौंपने की तैयारी में है। माना जा रहा है कि यह कदम आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए सपा के पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक समीकरण को कमजोर करने की रणनीति का हिस्सा है। ओबीसी, विशेषकर कुर्मी समाज से आने वाले पंकज चौधरी को आगे कर भाजपा सामाजिक संतुलन साधने और पिछड़े वर्गों में अपनी पकड़ मजबूत करने का संकेत देना चाहती है।
भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष चुनाव 14 दिसंबर को प्रस्तावित है, जबकि करीब एक साल बाद ही प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में पार्टी संगठन के शीर्ष पद पर किस चेहरे को जिम्मेदारी दी जाती है, यह बेहद अहम माना जा रहा है। लोकसभा चुनाव में यूपी में पार्टी के अपेक्षाकृत कमजोर प्रदर्शन के पीछे सपा के पीडीए दांव को प्रभावी माना गया। इसी अनुभव से सबक लेते हुए भाजपा अब पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को दोबारा अपने पाले में लाने की रणनीति पर काम कर रही है और पंकज चौधरी का नाम इसी सोच के तहत तेजी से उभरा है।
पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शीर्ष नेतृत्व में पंकज चौधरी की अच्छी पकड़ मानी जाती है। संगठन में सबके लिए उपलब्ध रहने वाले नेता की छवि, कैडर से सीधा संवाद और विवादों से दूर रहने का उनका स्वभाव उन्हें अन्य दावेदारों की तुलना में मजबूत बनाता है। पार्टी के भीतर यह भी माना जा रहा है कि उनके नेतृत्व में संगठन को नई ऊर्जा और स्पष्ट दिशा मिल सकती है।
पंकज चौधरी का नाम चर्चा में आने से महराजगंज और आसपास के क्षेत्रों में भाजपा कार्यकर्ताओं में उत्साह है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी ने हमेशा उन पर भरोसा जताया है और उन्होंने भी हर जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा से निभाया है। पिछड़े समाज में उनकी मजबूत पकड़ के साथ-साथ संगठन में कभी किसी तरह का गतिरोध न होना, उन्हें भरोसेमंद चेहरा बनाता है। विरोधी दलों के नेता भी उनके व्यक्तित्व, सरलता और जनसंपर्क की क्षमता की सराहना करते रहे हैं।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि पंकज चौधरी अपना दल और अन्य सहयोगी दलों के साथ मिलकर पारंपरिक कुर्मी वोट बैंक को भाजपा के पक्ष में साधने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। संघ से उनकी नजदीकी और कैडर आधारित राजनीति में स्वीकार्यता उन्हें प्रदेश स्तर पर उपयोगी बनाती है। चुनावी रणनीति को जमीनी स्तर तक उतारने का अनुभव भी उनकी बड़ी ताकत माना जाता है।
गीता प्रेस के शताब्दी समारोह के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बिना तय कार्यक्रम और प्रोटोकॉल तोड़े पंकज चौधरी के घर जाना भी उनकी सियासी हैसियत को दर्शाता है। संकरी गलियों से पैदल जाकर पीएम मोदी का उनके घर पहुंचना पूर्वी उत्तर प्रदेश में चर्चा का विषय बना था। इस घटना के बाद न केवल उनका राजनीतिक कद बढ़ा, बल्कि कुर्मी समाज में उनकी पकड़ और मजबूत मानी जाने लगी।
पंकज चौधरी ने राजनीति की शुरुआत 1989 में गोरखपुर नगर निगम के पार्षद के रूप में की थी। वर्ष 1990 में वे भारतीय जनता पार्टी की जिला कार्यसमिति के सदस्य बने और 1991 में पहली बार महराजगंज लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। इसके बाद 1996 और 1998 में भी वे सांसद बने। 1999 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन 2004 में उन्होंने फिर वापसी की। 2009 में एक बार फिर हार के बाद 2014 से वे लगातार लोकसभा सदस्य हैं और 2024 में भी जीत दर्ज कर चुके हैं।
पंकज चौधरी केवल 1999 और 2009 में चुनाव हारे हैं। लंबे संसदीय अनुभव के साथ उन्होंने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और वन से जुड़ी संसदीय समितियों में भी काम किया है। वर्ष 2021 से वे केंद्र की मोदी सरकार में लगातार मंत्री के रूप में जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
कुर्मी बिरादरी में उनकी मजबूत पकड़ और अन्य बिरादरियों में प्रभाव ने उन्हें जिले की राजनीति में एक सशक्त चेहरा बनाया है। गोरखपुर से अलग होकर महराजगंज जिला बनने के बाद से जिला पंचायत पर भाजपा का वर्चस्व बना रहा है। उनके परिवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि भी उनकी जमीनी पकड़ को दर्शाती है। उनकी मां उज्ज्वला चौधरी और भाई प्रदीप चौधरी जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुके हैं और आरक्षण में बदलाव के बावजूद उनके विश्वसनीय सहयोगी इस पद पर लगातार चुने जाते रहे हैं।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के लिए 464 मतदाताओं की सूची जारी की जा चुकी है। इसमें पांच सांसद, 26 विधायक, आठ विधान परिषद सदस्य और 425 प्रांतीय परिषद सदस्य व जिला अध्यक्ष शामिल हैं। राष्ट्रीय महामंत्री और केंद्रीय चुनाव पर्यवेक्षक विनोद तावड़े की देखरेख में 13 दिसंबर को नामांकन प्रक्रिया पूरी होगी। चुनाव संपन्न कराने की जिम्मेदारी दोनों उपमुख्यमंत्रियों को सौंपी गई है।
कुल मिलाकर पंकज चौधरी का नाम प्रदेश नेतृत्व की जिम्मेदारी के लिए सामने आना भाजपा की बदली हुई चुनावी रणनीति का संकेत माना जा रहा है। यदि पार्टी उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपती है, तो यह फैसला न केवल संगठनात्मक संतुलन साधेगा, बल्कि मिशन 2027 के लिहाज से पिछड़े वर्गों में मजबूत राजनीतिक संदेश भी देगा।














































































