नाइजर में आतंकवादी हमला: माली-बुर्किना सीमा के पास 34 सैनिक मारे गए, 200 से अधिक हमलावरों ने दिया हमला

वर्ल्ड डेस्क नाइजर। पश्चिमी अफ्रीका के सहेल क्षेत्र में स्थित नाइजर एक बार फिर भीषण आतंकी हिंसा का शिकार बना। गुरुवार सुबह नाइजर के पश्चिमी इलाके में माली और बुर्किना फासो की सीमा के पास बानिबांगू क्षेत्र में आतंकवादियों ने घातक हमला किया, जिसमें 34 सैनिकों की मौत हो गई और 14 अन्य घायल हुए हैं। यह जानकारी नाइजर के रक्षा मंत्रालय ने आधिकारिक रूप से दी है। रक्षा मंत्रालय के अनुसार, यह हमला सुबह करीब 9 बजे हुआ, जब भारी संख्या में हथियारबंद हमलावर आठ वाहनों और 200 से ज्यादा मोटरसाइकिलों पर सवार होकर आए और सैनिकों को निशाना बनाया। सरकार ने हमले के तुरंत बाद जवाबी कार्रवाई की और दर्जनों आतंकियों को मार गिराने का दावा किया है। इसके साथ ही शेष बचे हमलावरों की तलाश के लिए बड़े पैमाने पर ज़मीन और हवाई मार्ग से तलाशी अभियान चलाया जा रहा है। सरकार ने इन हमलावरों को ‘आतंकवादी’ बताया है और आशंका जताई है कि ये अल-कायदा या इस्लामिक स्टेट से जुड़े जिहादी संगठनों से संबंध रखते हैं। दरअसल, नाइजर, माली और बुर्किना फासो बीते एक दशक से ऐसे कट्टरपंथी समूहों के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं जो लगातार सीमा क्षेत्रों में हिंसा फैला रहे हैं। गौरतलब है कि हाल के वर्षों में इन तीनों देशों में सैन्य तख्तापलट हुआ है, जिसके बाद लोकतांत्रिक सरकारों को हटाकर सेना सत्ता में आ गई है। इन सैन्य सरकारों ने फ्रांस की सेनाओं को देश से निकाल दिया और उनकी जगह सुरक्षा सहायता के लिए रूस समर्थित भाड़े के सैनिकों, खासकर ‘वैगनर ग्रुप’ जैसे मर्सिनरी समूहों की मदद ली है। इन तीनों देशों ने हाल ही में मिलकर एक सुरक्षा गठबंधन ‘सहेल राज्यों का गठबंधन’ (Alliance of Sahel States) बनाने की घोषणा की है, जिसका उद्देश्य क्षेत्रीय आतंकवाद से सामूहिक रूप से निपटना है। हालांकि, सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इन देशों में सैन्य शासन आने के बाद से सहेल क्षेत्र की स्थिति और भी अधिक अस्थिर हो गई है। आतंकवादी हमलों में वृद्धि हुई है और आम नागरिक लगातार हिंसा की चपेट में आ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों के आंकड़ों के मुताबिक, सहेल क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस्लामी चरमपंथियों और सरकारी बलों – दोनों के हाथों आम लोगों की मौतें रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गई हैं। इस ताज़ा हमले ने एक बार फिर इस क्षेत्र की संवेदनशीलता और सुरक्षा चुनौतियों को उजागर कर दिया है। अब देखना यह है कि ‘सहेल राज्यों का गठबंधन’ अपने पहले ही वर्ष में इन खतरों से कैसे निपटता है और क्या यह गठबंधन नागरिकों को राहत देने में सफल होता है।