बदायूँ। देवी मंदिर से झंडी रवानगी के साथ शुरू होगा रुहेलखंड का मिनी कुंभ, गंगा किनारे होता है भव्य आयोजन बदायूं के कादरचौक में गंगा किनारे लगने वाले मिनी कुंभ ककोड़ा मेले की औपचारिक शुरुआत आठ नवंबर को ककोड़ा देवी मंदिर से झंडी रवाना होने के साथ हो जाएगी। ऐसे में जिला पंचायत की ओर से तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। टैंट को लगाया जा रहा है। झूलों का लगना भी शुरू हो गया है। बिजली व्यवस्था सुचारु करने के लिए भी काम तेजी से चल रहा है। रुहेलखंड के मिनी कुंभ के नाम से प्रसिद्ध मेला ककोड़ा आठ नवंबर से 22 नवंबर तक चलेगा। 15 दिनों तक चलने वाले इस मेला को भव्यता देने के लिए तेजी से काम किया जा रहा है। सड़कों का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। टैंट को लगाना शुरू कर दिया है। सबसे पहले वीआईपी टेंट को लगाने का काम शुरू कर किया गया। साथ ही वहां पर मेला स्थल के चारों ओर सिरकी पाल से चहारदीवारी बनाने का काम किया जा रहा है। वहीं, मेले में झूलों को लगाने का काम शुरू कर दिया गया है। हर बार की तरह इस बार भी मेला ककोड़ा में मौत का कुआं लगाया जा रहा है। जो आकर्षण का केंद्र रहेगा। प्रकाश की व्यवस्था के लिए बिजली के खंभों का लगना शुरू हो गया है। ग्लैंडर्स फारसी की वजह से कई वर्षों से बंद है घुड़दौड जिले में करीब सात साल पहले घोड़ों में ग्लैंडर्स फारसी नामक बीमारी पाई गई थी। इसके बाद में मेला ककोड़ा में होने वाली घुड़दौड़ को प्रतिबंधित कर दिया गया था। जो पिछले साल तक प्रतिबंधित रही। हालांकि पिछले तीन-चार वर्षों से जिले में एक भी ग्लैंडर्स फारसी का केस सामने नहीं आया। ऐसे में इस बार लोग घुड़दौड़ होने का अनुमान लगा रहा है। स्थानीय ग्रामीण रामदीन, मैकू लाल, धनश्याम, रामौतार का कहना है कि मेले में घुड़दौड़ आकर्षण का केंद्र था। इसको शुरू होना चाहिए। ककोड़ा घाट पर विधि-विधान से स्थापित होगी झंडी कादरचौक के ककोड़ा गांव में ककोड़ा देवी का मंदिर स्थापित है। यहां पर आठ नवंबर को हवन पूजन का आयोजन किया जाएगा। उसके बाद में मंदिर से झंडी ले जाकर मेला ककोड़ा स्थल पर विधि विधान से स्थापित की जाएगी। इसके साथ ही गंगा मैया की पूजा अर्चना की जाएगी।ककोड़ा देवी मंदिर के बाबा नन्हें दास ने बताया कि मेला में झंडी पहुंचने के पीछे का रहस्य यह है। कालांतर में देवी के मंदिर के पास ही मेला लगता था, लेकिन लगातार गंगा पीछे हटती गई। इसके बाद मेले में देवी के स्वरूप के रूप में मंदिर की झंडी मेला में स्थापित की जाती है। तब से गंगा मंदिर के पास ही रहती हैं।