आला हज़रत का नाम सुन्नियत की पहचान है – मौलाना अदनान रज़ा
बरेली। मरकज़-ए-अहल-ए-सुन्नत बरेली शरीफ़ में 106वें उर्स-ए-रज़वी और 9वें उर्स-ए-अमीन-ए-शरीअत के तीसरे और आख़िरी दिन ऑल इंडिया रज़ा एक्शन कमेटी (आरएसी) के मुख्यालय बैतुर्रज़ा पर क़ुल शरीफ़ का जलसा हुआ। नबीरा-ए-आला हज़रत व खलीफ़ा-ए-अमीन-ए-शरीअत व ताजुश्शरीआ हुज़ूर अफ़रोज़ रज़ा क़ादरी ने इस मुबारक महफ़िल की सरपरस्ती फ़रमाई और नबीरा-ए-आला हज़रत व आरएसी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अदनान रज़ा क़ादरी ने सदारत फ़रमाई।हाफ़िज़ नसीम आसी ने कलाम-ए-पाक की तिलावत से जलसे की शुरुआत की। नबीरा-ए-आला हज़रत मौलाना अदनान रज़ा क़ादरी ने अपनी तक़रीर में आला हज़रत का शेर पढ़ा “बेनिशानों का निशाँ मिटता नहीं, मिटते-मिटते नाम हो ही जाएगा” और फिर इस शेर के बारे में फ़रमाया कि आला हज़रत का नाम ऐसा रोशन हुआ कि पूरी दुनिया में आला हज़रत को जाना जाता है बल्कि उनका नाम मयार-ए-अहल-ए-सुन्नत बन गया है, सुन्नियों की पहचान बन गया है। आला हज़रत ने हमें समझाया कि पैग़म्बर-ए-इस्लाम की मुहब्बत ही असल ईमान है। अगर कोई क़ुरान को माने, नमाज़ पढ़े, रोज़ा रखे और बड़ी इबादात करता रहे मगर उसके दिल में हुज़ूर की मुहब्बत न हो तो वो मोमिन हो ही नहीं सकता। उन्होंने आला हज़रत का एक शेर और पढ़ा – “अल्लाह की सर ता-बा-क़दम शान हैं ये, इन सा नहीं इंसान वो इंसान हैं ये, क़ुरान तो ईमान बताता है इन्हें, ईमान ये कहता है मेरी जान हैं ये”। उन्होंने कहा कि आला हज़रत ने हमारे ईमान को बचाकर हमारी नस्लों पर एहसान किया है। उन्होंने नबी-ए-करीम की मुहब्बत देकर हमारा ईमान मुकम्मल कर दिया। हमें चाहिए कि उनके बताए रास्ते पर अमल करें और शरीअत की पाबंदी करें।जलसे का संचालन हाफ़िज़ इमरान रज़ा बरकाती ने किया। उन्होंने महफ़िल की रौनक़ में इज़ाफ़ा करते हुए मशहूर शेर पढ़कर पढ़ा “वादी रज़ा की कोहे हिमाला रज़ा का है, जिस सिम्त देखिए वो इलाक़ा रज़ा का है, अगलों ने तो लिखा है बहुत इल्मे दीन पर, जो कुछ है इस सदी में वो तन्हा रज़ा का है”।अल्लामा क़ारी सख़ावत हुसैन मुरादाबादी ने अपनी तक़रीर में कहा कि एक मर्तबा मुख़ालिफ़ों ने मुनाज़रे का चैलेन्ज किया। उस वक़्त आला हज़रत के गले में तकलीफ़ थी, हकीम ने बोलने से मना किया था। मगर बात दीन की आई तो आला हज़रत ने सेहत की परवाह न की। लोगों ने कहा कि बोलेंगे तो गले से ख़ून आ जाएगा, इस पर आला हज़रत ने जलाल करते हुए फ़रमाया कि मैं अपनी जान दे सकता हूँ मगर दीन पर बात आ जाए तो चुप नहीं रह सकता। ख़लीफ़ा-ए-ताजुश्शरीआ क़ारी दिलशाद रज़ा बनारसी ने कहा कि आला हज़रत तसव्वुफ़ (सूफ़िज़्म) के भी इमाम हैं। मुफ़्ती उमर रज़ा साहब ने अपनी तक़रीर में फ़रमाया कि आला हज़रत ने दीन का जो इतना बड़ा काम किया है, उसमें आपके मंझले भाई उस्तादे ज़मन अल्लामा हसन रज़ा ख़ाँ साहब का बड़ा ताअव्वुन है। इसी तरह आला हज़रत के बड़े साहिबज़ादे हुज्जत उल इस्लाम मौलाना हामिद रज़ा ख़ाँ और छोटे साहिबज़ादे हुज़ूर मुफ़्ती-ए-आज़म हिंद मुस्तफ़ा रज़ा ख़ाँ साहब और फिर ख़ानवादा-ए-आला हज़रत के तमाम चश्मो-चराग़ और हमारे तमाम उलामा इकराम भी आला हज़रत के मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं। इस मौक़े पर मौलाना अबरार छत्तीसगढ़, मौलाना सैफ़ रज़ा ने भी तक़रीर फ़रमाई।इस मौक़े पर शायरे इस्लाम शुएब रज़ा बरेलवी, तनवीर क़ादरी इलाहाबादी, हमदम फ़ैज़ी, मीर हसन मुस्तफ़ाई, शबाब रज़ा वग़ैरह ने नातो-मनक़बत का नज़राना पेश किया। दोपहर 2.38 बजे क़ुल शरीफ़ हुआ। इसके बाद नबीरा-ए-आला हज़रत मौलाना अदनान रज़ा क़ादरी ने दुआ फ़रमाई।क़ुल शरीफ़ की मुबारक महफ़िल में मौलाना हम्माद रज़ा क़ादरी, मौलाना अब्दुल्लाह रज़ा क़ादरी, उस्मान रज़ा ख़ाँ, सय्यद अब्दुस्सुबूर, अब्दुल हन्नान, अम्मार वसीम, अली रज़ा क़ादरी, मुफ़्ती उमर रज़ा, हाफ़िज़ इमरान रज़ा बरकाती, मुशाहिद रफ़त, अब्दुल लतीफ़ क़ुरैशी, रबज अली साजू, राजू बाबा, हनीफ़ अज़हरी, सईद सिब्तैनी, मोहम्मद जुनैद, मुफ़्ती इमरान रज़ा, मुफ़्ती मुजीब रज़ा, मौलाना सुहेल रज़ा अमजदी, मौलाना अबरार रज़ा, मौलाना नदीम फ़ारूक़ी, मौलाना नईम, मौलाना साजिद रज़ा, मौलाना सद्दाम रज़ा, मौलाना मुसाहिब रज़ा, मौलाना हसन रज़ा, मौलाना शाहिद रज़ा, मौलाना ताज रज़ा, मौलाना ज़ीशान मख़दूमी, मौलाना तालिब रज़ा, मौलाना लियाक़त रज़ा, मौलाना सय्यद सफ़दर रज़ा, मौलाना सय्यद तौक़ीर रज़ा, मौलाना निज़ाम अख़्तर नूरी, मौलाना अज़हर रज़ा, मौलाना साजिद, हाफ़िज़ ज़ाहिद, मौलाना मोहम्मद रज़ा, मौलाना शाहिद नबी, हाफ़िज़ आरिफ़ रज़ा, मौलाना नईम, शायरे इस्लाम फ़हीम अख़्तर, आज़म तहसीनी, ग़ुलाम ग़ौस ग़ज़ाली, मीर हसन, गुलफ़ाम रज़ा हस्सानी, इमरान रज़ा, हाफिज अब्दुल हलीम खान शाहबाज़ रज़ा, इशरत रज़ा, मुज़फ़्फ़र अली, मोहम्मद चाँद, आरिफ़ रज़ा, यासीन गद्दी, राशिद रज़ा, समीर रज़ा, सलमान रज़ा, रिज़वान रज़ा, इशाक़त अल्वी, अज़हर रज़ा, रेहान अल्वी, समीरउद्दीन, नसीम रज़ा, आफ़ताब हुसैन, इश्तयाक़ हुसैन, सय्यद रिज़वान रज़ा, फ़ुरक़ान रज़ा, काशिफ़ रज़ा, मुईद रज़ा, शानू रज़ा, उवैस ख़ाँ, मोहम्मद अतहर, डॉ. साजिद, डॉ. कामरान, डॉ. मुख़्तार, अशहर ख़ाँ, अहद ख़ाँ, रिज़वान रज़ा, फ़रदीन रज़ा, इंज़माम रज़ा, आसिफ़ रज़ा, गुलफ़ाम रज़ा, ज़ुबैर रज़ा, इब्ने हसन, चाँद बाबू, अशरफ़ रज़ा, मोहम्मद यूसुफ़, अज़ीज़ रज़ा, फ़रमूद, सरताज रज़ा, सलमान रज़ा, इरशाद रज़ा, नाज़िर रज़ा, ग़ुलाम मुस्तफ़ा, बब्लू अंसारी, फ़हीम ख़ाँ, दानिश रज़ा, फ़रहाद रज़ा, मोहम्मद अहमद, ताहिर रज़ा, सय्यद नासिर अली, तुफ़ैल रज़ा, मोहम्मद वारिस अफ़ज़ल रज़ा सहित कई ख़ानक़ाहों के सज्जादा, मस्जिदों के इमाम और बड़ी तादाद में आरएसी के पदाधिकारी व कार्यकर्ता शामिल हुए।