परमात्मा की भक्ति करके हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं : त्रिपाठी
बरेली। बाबा त्रिवटीनाथ मन्दिर में मन्दिर सेवा समिति द्वारा आयोजित श्री रामचरितमानस कथा के प्रथम दिवस वाराणसी के सुविख्यात कथा व्यास परमपूज्य पं प्रभाकर त्रिपाठी का मन्दिर सेवा समिति के प्रताप चंद्र सेठ तथा मीडिया प्रभारी संजीव औतार अग्रवाल ने माल्यार्पण कर स्वागत एवं अभिनन्दन किया। कथा व्यास पं प्रभाकर त्रिपाठी ने कहा कि राम के चरित्र का मन से भाव के साथ सुमिरन करने को श्री रामचरितमानस कहते हैं।मानव जीवन का एक मात्र उद्देश्य परमात्मा के प्रेम को पाना है। मनुष्य को चौरासी लाख योनियों में जब मानव जीवन मिलता है तब इसके द्वारा परमात्मा की भक्ति करके हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। कथा व्यास कहते हैं कि जिस तरह से श्रीरामचरितमानस में सात काण्ड हैं उसी तरह भारत वर्ष में सात पुरी हैं।सातो पुरी के मध्य में काशी विश्वनाथ विराजमान हैं। कथा व्यास कहते हैं कि भगवान शंकर ने विष को श्री राम के नाम जो कि भगवान शंकर के मुख में तथा ह्रदय में भी विराजित रहता है और उसके मध्य में विष को मानो विश्राम कर लिया है।तात्पर्य है कि राम के नाम के जाप से कोई भी विपरीत परिस्थिति में भी सभी समस्याओं का हल मिल सकता है। कथा व्यास कहते हैं कि इस जगत में प्रकृति अपने कर्म के अनुसार व्यवहार करती है और इसी प्रकार चौरासी लाख योनियां में विचरण करने पर केवल कर्म कर सकती है परंतु मनुष्य का जीवन मिलने पर धर्म युक्त कर्म कर पाने का सौभाग्य मिलता है जिसमें सत्कर्म के द्वारा जीवन को सन्मार्ग पर किया जा सकता है तथा अपने जीवन को प्रभु भक्ति प्राप्त करके धन्य बनाया जा सकता है।शास्त्रों में जितने भी उपाय बताये गये हैं उसका एक ही फल होता है जोकि राम के चरणों में रति तथा भक्ति को प्राप्त करना है। कथा व्यास धर्म की व्याख्या करते हुए जाते है कि पशु तथा मनुष्य दोनों में समान सहज धर्म उपस्थित है परंतु मनुष्य को इससे एक अधिक धर्म करने का फल मिला जिस में परमात्मा की भक्ति है।
धर्म करने का भी फल दो प्रकार से मिलता है जिसमें पर धर्म और अपर धर्म है। पर धर्म अर्थात समान्य धर्म और अपर धर्म अर्थात विशेष धर्म।अग्नि,सूर्य आदि पर धर्म करते हैं अर्थात जो नियत है ।परंतु अपर धर्म में मनुष्य को ही करना प्राप्त हुआ है जिसमें हम परमात्मा की शरणागति प्राप्त कर सकते हैं। कथा व्यास इसका उदाहरण देते हुए कहते हैं कि श्री राम का अवतार धर्म के पालन के लिये हुआ और माता पिता की आज्ञानुसार वनवास स्वीकार कर लिया।भगवान राम अपने भ्राता लक्ष्मण से कहते हैं कि इस समय भरत और शत्रुघ्न भी यहां उपस्थित नहीं हैं अतः यहां पर रुक माता पिता की सेवा करो परंतु लक्ष्मण जी मना कर देते हैं और कहते हैं कि अपने कर्म का आप देखिए।मेरा कर्म है कि मैंने हर अवस्था में आपके साथ रहने का प्रण लिया है और इस कार्यक्रम आपके साथ वन चलूंगा।यही बात माता सीता ने प्रभु श्री राम से कहीं। कथा व्यास कहते हैं कि यहां पर श्रीराम पर धर्म का पालन कर रहे हैं और माता सीता तथा श्री लक्षमण जी विशेष धर्म का पालन कर रहे हैं जिसमें उन्हें प्रभु का सानिध्य तथा भक्ति प्राप्त होगी।
कथा में कथा व्यास प्रभाकर त्रिपाठी जी की प्रधान शिष्या रामो देवी ने श्री राम के चरित्र पर अपना व्याख्यान दिया।
कथा के उपरान्त काफी संख्या में भक्तजनों ने श्री रामचरितमानस की आरती की तथा प्रसाद वितरण हुआ।
आज की कथा में मन्दिर सेवा समिति के प्रताप चंद्र सेठ तथा मीडिया प्रभारी संजीव औतार अग्रवाल का मुख्य सहयोग रहा।