सोशल इंजीनियरिंग के सहारे जातीय समीकरण साध रहे राजनीतिक दल, जानें रुहेलखंड का सियासी हाल
बरेली। बरेली, आंवला, बदायूं, पीलीभीत, शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी और धौरहरा सीट पर समीकरण के आधार पर निर्णायक भूमिका वाली सभी जातियों के चेहरों को मौका दिया जा चुका है। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में इन सीटों के लिए भाजपा ने दो कुर्मी, एक कश्यप, दो ब्राह्मण, एक दलित और एक शाक्य बिरादरी के चेहरे पर दांव लगाया है। सपा ने एक वैश्य, एक यादव, एक मौर्य, एक कुर्मी, एक कश्यप, एक राजपूत को उतारा है। उधर, बसपा ने तीन मुस्लिम चेहरों के साथ एक ब्राह्मण प्रत्याशी पर दांव लगाया है। इन सात लोकसभा सीटों के इतिहास भी जातीय समीकरणों को समेटे हैं।आठ बार सांसद संतोष गंगवार की जगह इस बार भाजपा ने छत्रपाल गंगवार को प्रत्याशी बनाया है। सपा-कांग्रेस गठबंधन ने वर्ष 2009 में भाजपा के गढ़ में सेंध लगा चुके प्रवीण सिंह ऐरन पर भरोसा जताया है। इस सीट पर पिछले नौ चुनाव में आठ बार कुर्मी बिरादरी के संतोष गंगवार ही चुनाव जीते हैं। एक बार प्रवीण सिंह ऐरन ने विजय अपने नाम की थी। इससे पहले इस सीट पर मुस्लिम सहित अन्य बिरादरी के नेता संसद पहुंच चुके हैं।आंवला सीट पर आजादी के बाद से क्षत्रिय बिरादरी के सांसद ने लंबे समय तक प्रतिनिधित्व किया। पूर्व सांसद बृजराज सिंह, सर्वराज सिंह, राजवीर सिंह यहां से सांसद बने। पहली बार 1980 में जयपाल सिंह कश्यप ने यहां से प्रतिनिधित्व किया। वर्ष 2009 में मेनका गांधी की जीत के बाद भाजपा के धर्मेंद्र कश्यप ने यहां से जीत दर्ज की। इस सीट पर भाजपा ने तीसरी बार कश्यप चेहरे पर ही दांव लगाया है। सपा ने नीरज मौर्य को यहां से उतारकर पिछड़ी जाति के मतों में बंटवारे की रणनीति अपनाई है।लखीमपुर खीरी लोकसभा सीट पर केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी ने पहली बार सवर्ण जाति के प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की थी। वर्ष 2009 में यहां से जफर अली नकवी सांसद थे। आजादी के बाद कुशवक्त राय, बाल गोविंद वर्मा, ऊषा वर्मा, गेंदन लाल कनौजिया, रवि प्रकाश वर्मा के रूप में पिछड़ा और अनुसूचित जाति के चेहरे ही संसद पहुंचे थे। यहां से सपा ने पूर्व विधायक उत्कर्ष वर्मा को प्रत्याशी बनाया है। फिलहाल, बसपा ने अभी पत्ते नहीं खोले हैं।वर्ष 2009 के परिसीमन से अस्तित्व में आई धौरहरा लोकसभा सीट पर पहले सांसद ब्राह्मण बिरादरी के जितिन प्रसाद बने थे। हालांकि इसके बाद वर्ष 2014 और 2019 में कुर्मी बिरादरी की रेखा वर्मा के नाम जीत का सेहरा बंधा। इस बार भाजपा ने फिर रेखा वर्मा पर ही भरोसा जताया है। सपा से आनंद सिंह भदौरिया दस साल बाद दूसरी बार गठबंधन से चुनाव मैदान में है। बहुजन समाज पार्टी ने यहां भाजपा के ही एक बागी श्याम किशोर अवस्थी को लोकसभा प्रभारी बनाया है।पीलीभीत लोकसभा सीट से सात बार कुर्मी बिरादरी के सांसद बने हैं। वर्ष 1989 में जनता दल के टिकट पर मैदान में उतरीं मेनका ने कुर्मी बिरादरी के भानु प्रताप सिंह को करारी शिकस्त दी थी। वर्ष 1991 में भाजपा के टिकट पर परशुराम गंगवार ने बमुश्किल चुनाव जीता था। उसके बाद से कुर्मी बिरादरी के दिग्गज चुनाव मैदान में तो उतरे लेकिन संसद में दाखिल नहीं हो सके। फिलहाल, इस सीट पर भाजपा ने ब्राह्मण चेहरे के रूप में लोक निर्माण मंत्री जितिन प्रसाद, सपा ने कुर्मी बिरादरी के भगवत सरन गंगवार और बसपा ने अनीस अहमद खां को मैदान में उतारा है।बदायूं में सपा ने दिग्गज नेता शिवपाल सिंह यादव तो भाजपा ने दुर्विजय सिंह शाक्य को मैदान में उतारा है। बसपा ने अभी पत्ते नहीं खोले हैं। इस सीट से बदन सिंह यादव, करण सिंह यादव, ओंकार सिंह यादव भी जीत दर्ज करने में कामयाब रहे थे। बिहार से आकर शरद यादव ने भी यहां भाग्य आजमाया था और सदन तक पहुंचे थे। पहली बार राम लहर में यादव गढ़ ढहा और चिन्मयानंद ने जीत दर्ज की। इसके बाद सलीम इकबाल शेरवानी ने चार चुनावों में जीत अपने नाम की। सपा ने वर्ष 2009 में धर्मेंद्र यादव को मौका दिया और वे सफल रहे। वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा की संघमित्रा मौर्य ने इस वर्चस्व को फिर तोड़ा दिया।शाहजहांपुर (आरक्षित) सीट पर जातीय समीकरण साधने वाले सियासी दल को ही जीत मिलती है। यहां से सिंधी खत्री प्रेम कृष्ण खन्ना, ब्राह्मण चेहरा जितेंद्र प्रसाद, यादव समाज के सत्यपाल सिंह यादव, कुर्मी समाज के राममूर्ति वर्मा भी सांसद बन चुके हैं। वर्तमान में भाजपा ने यहां से अरुण कुमार सागर को प्रत्याशी बनाया है। सपा ने राजेश कश्यप पर भरोसा जताया है। बसपा ने डीआर वर्मा ने को मैदान में उतारा है।




















































































