वाटर वुमन शिप्रा पाठक ने ब्रिटिश संसद में भारतीय पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को गुंजायमान किया
नई दिल्ली। देश की सुप्रसिद्ध वाटर वुमन,पर्यावरणविद एवं पंचतत्व संस्था की संस्थापक शिप्रा पाठक ने आज ब्रिटेन की संसद में भारतीय संस्कृति,जल संरक्षण एव पर्यावरण संरक्षण में भारतीय प्रयासों के संदेश को सशक्त रूप से प्रस्तुत किया।

ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स और हाउस ऑफ़ कॉमन्स दोनों सदनों में उन्हें भारतीय प्रतिनिधि आमंत्रित वक्ता के रूप में चुना गया। लंदन की संसद में भारत की ओर से उन्हें वक्ता एव प्रतिनिधि के रूप चुना जाना एव सुना जाना देश औऱ भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता के लिए एक दुर्लभ गौरव की बात है।आपको बता दे कि वाटर वुमन शिप्रा पाठक हिंदुस्तान के राज्य उत्तर प्रदेश के जनपद बदायूं के उपनगर दातागंज की मूल निवासी है। शिप्रा पाठक की पर्यावरण यात्रा किसी साधना से कम नहीं है।
उन्होंने वर्षों की तपस्या में 13,000 किलोमीटर पैदल चलकर भारत के विभिन्न प्रदेशों में 55 लाख पौधों का रोपण कराया।
उनकी संस्था ‘पंचतत्व फाउंडेशन’ ने हजारों लोगों को जोड़ा और नदियों को पुनर्जीवित करने के जन-अभियान को स्वरूप दिया। इन्हीं अभूतपूर्व कार्यों के आधार पर ब्रिटिश संसद ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्रदान किया और उनके विचार सुनने के लिए विशेष आमंत्रण भेजा। ब्रिटिश सांसदों, विद्वानों और पर्यावरण विशेषज्ञों की उपस्थिति में शिप्रा पाठक ने अपने संबोधन में भारतीय सभ्यता के मूल मंत्र ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का उल्लेख करते हुए कहा— “भारत ने हमेशा पूरे विश्व को परिवार की तरह देखा है। इसलिए मेरी हर यात्रा, हर कदम, वैश्विक कल्याण के लिए है—सीमाओं, जाति, राजनीति और राष्ट्र से परे जाकर मानवता को सुरक्षित रखने के लिए।”
उन्होंने चेतावनी दी कि विश्व तेजी से बढ़ते जल संकट की ओर बढ़ रहा है।यदि सभी देश एकजुट नहीं हुए तो इसका परिणाम आने वाली पीढ़ियों को झेलना होगा।
ब्रिटिश संसद में अपने वक्तव्य में वाटर वुमन शिप्रा पाठक ने कहा कि भारत नदियों को केवल जल का स्रोत नहीं मानता बल्कि ‘जीवित इकाइयाँ’ मानकर उनकी पूजा करता है।
उन्होंने विशेष रूप से उल्लेख किया की गंगा – आध्यात्मिक शक्ति और सांस्कृतिक परंपरा की वाहक है।
गोमती – उत्तर प्रदेश की पहचान और जीवनधारा है तो नर्मदा – मध्य प्रदेश की पवित्र, प्राचीन और पर्यावरणीय रीढ़ है।उन्होंने कहा कि यदि नदियाँ सुरक्षित हैं तो सभ्यताएँ सुरक्षित हैं।
लंदन की संसद में शिप्रा पाठक ने कहा—“आपने हमारी संस्था ‘पंचतत्व’ के कार्यों को देखकर मुझे यहाँ बुलाया, यह मेरे लिए नहीं, बल्कि भारत की पर्यावरण संस्कृति के लिए सम्मान है।”
उनके संबोधन के बाद ब्रिटिश सांसदों ने उनके कार्यों को प्रेरणादायक बताया और भारत के नदी पुनर्जीवन मॉडल में रुचि व्यक्त की।
अपने कार्यक्रम के हिस्से के रूप में शिप्रा पाठक लंदन की थेम्स नदी के संरक्षण मॉडल का अध्ययन करेंगी और ब्रिटेन के पर्यावरण विशेषज्ञों के साथ “नदी संवाद” करेंगी।
इसके अलावा, वे लंदन की मेयर से शिष्टाचार भेंट भी करेंगी और शहर के महत्वपूर्ण पर्यावरणीय स्थलों का अवलोकन करेंगी।
वाटर वुमन शिप्रा पाठक की यह उपलब्धि भारतीय नारी शक्ति, भारतीय पर्यावरण विचार, और भारत की सांस्कृतिक परंपरा—सभी के लिए गर्व का विषय है।
उन्होंने यह साबित किया है कि—
नदी को बचाने की यात्रा भारत से शुरू जरूर होती है,लेकिन उसका संदेश पूरे विश्व तक पहुँचता है।
