जितने भी देवी देवता हैं सब भगवान नारायण के अंग ही हैं

बरेली । प्राचीनतम एवं भव्यतम बाबा त्रिवटीनाथ मन्दिर सेवा समिति द्वारा मंदिर के श्री रामालय में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस पूज्य कथा व्यास पंडित देवेंद्र उपाध्याय जी ने कहा कि सबसे पहले व्यक्ति को सबसे पहले आसन जीतना चाहिए, उसके बाद स्वास पर काबू रखना चाहिए तदुपरांत अच्छे लोगों का संग करना चाहिए ।ऐसा करने से इंद्रियां वश में करने में प्राणी मात्र जब सफल हो जाता है तब उसे भगवान के चरणों में अर्पित करने का परम सौभाग्य प्राप्त कर सकता है और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। कथा व्यास कहते हैं कि जितने भी देवी देवता हैं सब भगवान नारायण के अंग ही हैं ।जैसे वृक्ष एक होता है उसकी डालियां अनेकों होती हैं और पत्ते भी अनंत होते हैं लेकिन उसकी जड़ तो एक ही होती है इसी तरह सब के मूल में भगवान नारायण विद्यमान हैं।सभी का हमें आदर करना चाहिए ऐसा करने से परमात्मा प्रसन्न होते हैं। कथा व्यास ने चार श्लोक की भागवत का वर्णन करते हुए कहा कि सबसे पहले भगवान नारायण ही थे जो कि जल में वास करते थे ।उनकी नाभि से कमल निकला जिस पर चार मुख बाले ब्रह्मा का प्राकट्य हुआ और भगवान नारायण ने उन्हें बताया कि सबसे पहले इस संसार में मैं ही होता हूं जब दुनिया बन जाती है तो समस्त देह धारियों के अंदर मैं नारायण ही होता हूं जब दुनिया समाप्त हो जाती है तो जो शेष बचता है वह मैं नारायण हूं । कथा व्यास ने बताया कि श्री नारायण कहते हैं कि जो वस्तु है नहीं ,फिर भी दिखती है ,यह मेरी माया ही है। कथा व्यास ने बताया कि भागवत के 10 लक्षण होते हैं जिनमें अत्र ,सर्ग, विसर्ग, स्थान पोषण आदि है। कथाव्यास ने बताया कि एक बार शुकदेव जी ने राजा परीक्षित से पूछा आपकी दृष्टि में भगवान किसे मिलते हैं धनवान को अथवा निर्धन को। यदि धनवान को मिलते तो सुदामा तो धनवान नहीं थे, सुंदर लोगों को मिलते तो कुब्जा सुंदर नहीं थी, अवस्था देख कर के मिलते तो ध्रुव को कभी नहीं मिलते, आचरण देख कर के मिलते तो बहेलिए को कभी नहीं मिलते। कथा व्यास कहते हैं कि भगवान केवल भाव कि भूखे हैं ।भाव के कारण ही भगवान ने धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन के 56 प्रकार के पकवान ,मेवा को ठुकरा दिया और भक्त विदुर जी के घर जो रुखा सुखा था ,उसको बड़े प्रेम से पाया। कथा व्यास ने माता सती एवं शिव चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि जिस पिता के सामने बेटी का अपमान,या अबहेलना होती है उस पिता को दंड मिलता है जैसे सती माता का अपमान दक्ष के यज्ञ में हुआ फिर शिवजी के गणों ने आकर के दक्ष का सिर काटा और देवताओं द्वारा प्रार्थना करने पर शिवजी ने दक्ष के देह पर बकरे का सिर स्थापित कर दिया ।दक्ष ने बार-बार शिवजी से क्षमा मांगी स्तुति की और शिवजी को प्रसन्न किया। कथा व्यास ने मनु शतरूपा का वर्णन करते हुए कहा जिसके पास मन है, वह मनु है और हम सब मनु महाराज की संतान है इसलिए मानव कहे जाते हैं, रही जाति की बात तो कोई भेद नहीं है ,यह केवल एक व्यवस्था है जैसे वृक्षों में जातियां होती हैं पशुओं में जातियां होती है पक्षियों में भी होती है फलों में भी होती यह दशहरी आम ,चौसा, आम ,लंगड़ा आम आदि। कथा व्यास ने बताया कि भगवान कपिल ने अपनी मां देवहुति को उपदेश देते हुए कहा मुझे प्राप्त करने के तीन मार्ग हैं जोकि ज्ञान मार्ग ,भक्ति मार्ग और कर्म मार्ग है।किसी एक मार्ग पर कोई निरंतर चलता रहे तो लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है आवश्यक बात यह है कि मार्ग पर तो चलना ही पड़ेगा चाहे कोई हो तभी लक्ष्य.की प्राप्ति होती है तथा रिणाम स्वरूप परय परमात्मा की प्राप्त होती है। कथा के उपरांत काफी संख्या में उपस्थित भक्तों ने आरती की तथा प्रसाद वितरण हुआ । आज की कथा में मंदिर कमेटी के प्रताप चंद्र सेठ, मीडिया प्रभारी संजीव औतार अग्रवाल, सुभाष मेहरा, हरिओम अग्रवाल तथा ब्रजेश मिश्रा का मुख्य सहयोग रहा।